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प्यार में क्यों मिलता है धोखा ? वैज्ञानिकों ने 12 प्वाइंट में सुनाई 2 लफ्ज़ों की असली कहानी

किसी से पहली बार मिलते ही उसकी हर चीज़ आपको अपने जैसी लगने लगती है. लगता है आप एक-दूसरे को बरसों से जानते हैं. प्यार बढ़ता है और रिलेशनशिप (Science Behind Love and Relationship) की शुरुआत हो जाती है. हालांकि हर प्रेम कहानी का सुखांत नहीं होता, रास्ते में मिल जाता धोखा और दिल टूट जाता है.

क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर प्यार, इकरार और फिर धोखे के पीछे का वैज्ञानिक कारण (Scientific Reason of Betrayal) क्या है? जी हां, वैज्ञानिकों ने बताया है कि ये सिर्फ दिल का ही नहीं बल्कि कैमिकल्स का भी गेम है.

सोचिए, कुछ जादू ही तो है, जो इंसान को प्यार में सब पराये लगने लगते हैं, एक शख्स को छोड़कर सब बेकार और गलत दिखते हैं. जनाब विज्ञान कहता है कि ये जादू नहीं बल्कि कैमिकल रिएक्शन है, जो आपके दिमाग को ऐसा सोचने पर मजबूर कर देता है.

जर्नल ऑफ कंपेरेटिव न्यूरोलॉजी में इससे जुड़ी एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है. इस रिपोर्ट को तैयार किया है रटगर्स यूनिवर्सिटी की मानवशास्त्री हेलेन फिश और उनकी टीम ने12 प्वाइंट में सुनिए प्यार की कहानी …

साल 2017 में आर्काइव ऑफ सेक्सुअल बिहेवियर में पब्लिश रिपोर्ट के मुताबिक शरीर में डोपामाइन नाम के रसायन का अधिक रिसाव होने की वजह से आप एक ही इंसान के बारे में ज्यादातर वक्त सोचते रहते हैं. यानि आपका ध्यान इसी कैमिकल की वजह से केंद्रित रहता है और आपको सारी दुनिया बेकार लगने लगती है.

प्यार के दूसरे स्टेप में आपकी बॉडी के अंदर सेंट्रल नोरेपाइनफ्रिल नाम का रसायन निकलता है, जो याददाश्त को रिपीट कर देता है. जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी के मुताबिक तब इंसान को सिर्फ अपने पार्टनर की खूबियां ही दिखाई देती हैं और सारी दुनिया निगेटिव लगने लगती है. कुल मिलाकर आप सपनों में खोए रहते हैं.

आपने सुना होगा कि प्यार में नींदें उड़ जाती हैं और भूख खत्म हो जाती है. दिल की धड़कन बढ़ना, सांसें तेज़ चलना, बेचैनी और तनाव आपको किसी नशेड़ी इंसान की तरह दुनिया के अलग-थलग कर देता है. फिलॉसफी, साइकेट्री एंड साइकोलॉजी जर्नल में साल 2017 में प्रकाशित रिपोर्ट कहती है कि प्यार शरीर पर किसी ड्रग्स की तरह असर दिखाता है.

यही वजह है कि नशा खत्म होने के बाद इंसान कमज़ोर हो जाता है.मानवशास्त्री हेलेन फिर के मुताबिक सेंट्रल डोपामाइन ही वो हॉर्मोन है, जो तीव्र आकर्षण पैदा करता है. ऐसे में जब प्रेमी-प्रेमिका किसी बात से दुखी होते हैं तो उनका आकर्षण तेज़ी से बढ़ता है. इतना ही उनकी आपस की लड़ाई के बाद इस हॉर्मोन के न्यूरॉन्स और एक्टिव हो जाते हैं.

अगले स्टेप के तौर पर प्रेमी या प्रेमिका का व्यवहार ऑब्सेसिव यानि जुनूनी होने लगता है. साल 2012 में साइकोफिजियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक 85 फीसदी सोच पर एक ही शख्स का काबिज होना दिमागी तौर पर बीमार होने जैसा है. ऐसा दिमाग में सेरोटोनिन हॉर्मोन का लेवल कम होने की वजह से होता है.

इस दौरान भावनात्मक तौर पर निर्भरता भी बढ़ती जाती है. खुद को मजबूत करने के बजाय किसी और का सहारा लेने की तत्परता और कमज़ोर करती है. इस वक्त दिमाग के अगले हिस्से में मौजूद सिंगुलेट गाइरिस नाम का हिस्सा एक्टिव होता है और हालत किसी ड्रगिस्ट या नशेड़ी की तरह हो जाती है.

प्यार और बढ़ता है तो इंसान आगे की ज़िंदगी के सपने बुनना शुरू कर देता है. हॉवर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि इस वक्त सेरोटोनिन हॉर्मोन का स्तर कम होकर ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन बढ़ता है. इसके न्यूरोट्रांसमीटर पार्टनर्स में ज्यादा गहरे संबंध की ओर उसे धकेलने लगते हैं.

love की सबसे अच्छी बात है कि इस वक्त इंसान के अंदर सहानुभूति की भावना सबसे तीव्र होती है. मसलन पार्टनर के दर्द को वो अपना लेते हैं और बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं. हेलेन फिशर की स्टडी कहती है कि ऐसा शरीर के मिरर न्यूरॉन्स की वजह से होता है.

प्यार में लोग एक-दूसरे की पसंद अपना लेते हैं, उन्हें अपना ख्याल तक नहीं रह जाता. ये भी हॉर्मोन ही है जनाब. टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की वजह से ऐसा होता है और आप अपने पार्टनर से ज्यादा जुड़ जाते हैं.इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्राइनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म के मुताबिक ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन लोगों में प्यार के दौरान पोज़ेसिवनेस बढ़ा देता है. तीव्र भावनात्मक जुड़ाव आपके पार्टनर के साथ किसी और को बर्दाश्त ही नहीं करता और आपकी अधिकार की भावना बढ़ जाती है.

हेलेन फिशर बताती हैं कि रिलेशनशिप के अगले पड़ाव पर रिश्ता भावनात्मक से शारीरिक होने लगता है. वे बताती हैं कि साल 2002 में की गई उनकी एक स्टडी के मुताबिक 64 फीसदी लोगों ने प्यार में शारीरिक संबंधों को महत्व दिया. इतना ही नहीं प्रेम में इंसान अपना नियंत्रण खो देता है और उसे समाज, संस्कृति और देश-कानून कुछ भी याद नहीं रहता.

अब आता है सबसे अहम पड़ाव- धोखा. आखिर प्यार में धोखा क्यों मिलता है? हेलेन फिशर बताती हैं कि प्यार दरअसल एक अस्थाई प्रक्रिया है. कोई भी इंसान, दूसरे के साथ ज्यादा दिन प्यार में नहीं टिका रह सकता है. ये कुछ महीनों या सालों बाद खत्म होने लगता है. अगर कोई बाध्यता न हो, तो इस संबंध में पहले जैसा स्पार्क बचता ही नहीं है. कई मनोवैज्ञानिक इस बात को मान चुके हैं कि ऐसे संबंध अगर नेचुरल तरीके से चलते रहें, तो 3 साल से ज्यादा नहीं टिकते हैं.

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