जयशंकर ने यूरोप को दिखाया आईंना, रूस-यूक्रेन जंग को लेकर कहा- आपको मानसिकता बदलने की जरूरत
New Delhi : विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा है कि भारत की विदेश नीति सिर्फ इसलिए बंधी हुई नहीं हो सकती है क्योंकि उसकी नीति कुछ देशों के अनुकूल न हो। रूस-यूक्रेन युद्ध पर नई दिल्ली के रुख के बारे में जयशंकर ने कड़े शब्दों में कहा कि मैं सिर्फ इसलिए बाड़ पर नहीं बैठा हूं क्योंकि मैं आपसे सहमत नहीं हूं। इसका मतलब है कि मैं अपनी जमीन पर बैठा हूं।
जयशंकर ने समझाया, दुनिया ऐसे काम नहीं करती!
ग्लोबसेक कार्यक्रम में भारत चीन संबंध में वैश्विक मदद की उम्मीद को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि यह विचार कि मैं एक संघर्ष में लेन-देन करता हूं क्योंकि यह किसी और संघर्ष में मदद करेगा। दुनिया ऐसे काम नहीं करती है। उन्होंने आगे कहा कि चीन में हमारी बहुत सारी समस्याओं का यूक्रेन, रूस से कोई लेना-देना नहीं है। वे पहले से ही हैं।
यूरोप की समस्या दुनिया की समस्या?
यूरोप को लताड़ते हुए उन्होंने कहा है कि ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर यूरोप ने बात नहीं की। यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि यूरोप की समस्या दुनिया की समस्या है लेकिन दुनिया की समस्या यूरोप की समस्या नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि आज चीन और भारत के बीच संबंध बन रहे हैं और यूक्रेन में क्या हो रहा है। चीन और भारत यूक्रेन से बहुत पहले हुए थे। मैं इसे एक बेहतर तर्क नहीं मानता। दुनिया के सामने सभी बड़ी चुनौतियों का समाधान आखिरकार भारत से आ रहा है।
रूस-यूक्रेन मसले को अनदेखा नहीं कर रहा भारत
रूस-यूक्रेन स्थिति पर भारत की अनदेखी के सवाल पर जयशंकर ने कहा कि भारत ने बुका हत्या की निंदा की और जांच की मांग की। यूक्रेन संघर्ष में जो हो रहा है, उसके संदर्भ में हमारा रुख बहुत स्पष्ट है कि हम हिंसा को तत्काल समाप्त करने के पक्ष में हैं। ऐसा नहीं है कि जब तक आप पुतिन और जेलेंस्की को फोन नहीं करते हैं, तब तक इसे अनदेखा समझा जाए।
कोई देश नहीं है जो अपने हितों की अवहेलना करता हो।
उन्होंने साफ कहा कि अगर भारत किसी के पक्ष में नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह किसी दूसरे के पक्ष में है। मैं दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा हूं। भारत दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी में से है। इतिहास और सभ्यता की बात छोड़ दीजिए, वह सभी को पता है।
उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि मैं अपना पक्ष रखने का हकदार हूं। मैं हकदार हूं अपने हितों को तौलने के लिए, और अपनी पसंद बनाने के लिए। मेरी पसंद मेरे मूल्यों और मेरे हितों का संतुलन होंगे। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जो अपने हितों की अवहेलना करता हो।