UP का वह अनोखा बाजार, जहां तौलकर बिकते हैं कपड़े; प्रतिकिलो के भाव में पैंट-कमीज से लेकर साड़ियां तक मिलती
कानपुर । कानपुर न्यारा है, अलमस्त है और हर कोने में अलग-अलग रंग वाला शहर है। चाहे वह कारोबार हो, किसी चकल्लस या खानपान से जुड़ी चीजें सबकी रंगत अलग दिखती है। वह भी यूं ही नहीं, अलग-अलग वजह भी हैं इसके पीछे। कभी लाल इमली, एल्गिन, स्वदेशी काटन, एनटीसी जैसी बड़ी-बड़ी मिलों में निर्मित कपड़ों के कारण देश-दुनिया तक यह शहर मशहूर रहा तो यहां वर्तमान में कपड़े समेत अन्य सामान के अनोखे बाजार भी हैं। हर गली खुद में कुछ न कुछ समेटे है।
किसी सड़क से भले आप रोज गुजरते होंगे, लेकिन उससे सटी अंदर जा रही हर गली में होने वाला कारोबार क्या है, उसका कहां तक जुड़ाव है, कितनों को रोजगार मिल रहा है, ये नहीं पता होगा। आइए, आज हम आपको रूबरू कराते हैं, ऐसे ही एक अनोखे कपड़ा बाजार से, जहां तौल (प्रतिकिलो) के भाव में कपड़े और साड़ियां बिकती हैं। यहां से थोक में खरीदारी कर इन्हें फुटकर में बेचकर शहर समेत आसपास के जिलों तक हजारों लोग रोजी-रोटी कमा रहे हैं।
जरीब चौकी चौराहा से अफीम कोठी जाते समय चंद्रिका देवी चौराहा से बायीं तरफ मुड़कर कोकलस मिल रोड होते हुए परेड चौराहा जाने पर रास्ते में मिलता है घनी आबादी वाला क्षेत्र तलाक महल। यहां की किसी भी गली में घुस जाइए तो आपको कपड़े का यह अनोखा और चौंकाने वाला बाजार मिल जाएगा।
कपड़े की आलीशान दुकान, शोरूम और वहां रखा तराजू। खरीदार ने माल पसंद किया और तराजू पर तौलाई शुरू हो गई। कोई भी यह देखे तो एक बारगी चौंकना तय है, लेकिन यह है सोलह आना सच।
इस बाजार की बुनियाद करीब 50 साल पहले पड़ी थी। तब स्वर्गीय वसी अहमद मुंबई से कपड़े लाकर यहां बेचते थे। इसके बाद धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ते चले गए और सूरत समेत अन्य शहरों से माल ज्यादा आने लगा। अब तौल में बिक्री की बात समझिए। तलाक महल के कारोबारी सलीम खां बताते हैं कि कपड़ा उद्योग में धागा तौल में आता है, जिससे पैंट-कमीज, साड़ियों समेत अन्य के बड़े-बड़े थान (कई मीटर कपड़े का सेट) तैयार होता है।
इसी तरह साड़ियां भी धागे से निर्मित होती हैं। इनके निर्माण में कई बार बचे टुकड़े, जिन्हें कटपीस कहते हैं और छोटी-छोटी खामियों वाली साड़ियां, दुपट्टे व अन्य कपड़े बड़े कारोबारी तौल में कम कीमत में बेचते हैं। इसी माल को वहां से खरीदकर यहां बेचने वाले बढ़े तो कानपुर में यह अनोखा बाजार सज गया।
एक बात और अलग है, इस बाजार की। ज्यादातर मोहल्लों में बाजार सुबह 10 से 11 बजे के आसपास खुलते हैं, लेकिन तलाक महल की तंग गलियों से लेकर छोटे मियां का हाता, बेबिस कंपाउंड, भैंसा हाता, दादा मियां का चौराहा, रेडीमेड बाजार, बेकनगंज बाजार, परेड मैदान के इर्द-गिर्द की गलियों में कहीं भी जाएंगे तो सुबह करीब सात बजे से ही यहां कतार में दुकानें खुलने की शुरुआत होती दिख जाएगी।
इस बाजार के ग्राहक आम खरीदार कम ही होते हैं, बल्कि शहर के लाल बंगला, कल्याणपुर, दबौली, बेकनगंज, बाबूपुरवा के साथ ही आसपास के जिलों फतेहपुर, उरई, जालौन, बाराबंकी, उन्नाव, फर्रुखाबाद, कन्नौज, हरदोई के साथ ही बुंदेलखंड के फुटकर कारोबारी माल खरीदते हैं।
दोपहर तक खरीदारी कर वह अपने शहर की दुकानों में माल लेकर पहुंचते हैं। इससे कम पैसे वाले भी इस कारोबार से जुड़कर आराम से परिवार चलाने भर की कमाई प्रतिमाह कर लेते हैं। इससे समाज के अल्प आय वर्ग के लोगों को पहनने के लिये बेहतर कपड़ा भी मिल जाता है।
यहां भी तौल में कपड़ा मिलता :
कर्नलंगज से आसपास के जिलों में तौल के कपड़े की आपूर्ति करने वाले निसार खां बताते हैं, गम्मू खां का हाता, नीची सड़क कर्नल गंज से सलवार-सूट, पैंट-शर्ट, जनरलगंज से तौल में साड़ी-ब्लाउज का कपड़ा ज्यादा बिकता है। घुमनी बाजार से पैंट के कपड़े की बिक्री अधिक होती है। तलाक महल की दुकानों से सूट के कपड़े का काम ज्यादा होता है। मीटर की अपेक्षा तौल में बिकने वाला कपड़ा आधे से कम कीमत पर ही मिल जाता है।