BSP की चुप्पी और पुराने नेताओं की SP में एंट्री से भाजपा को कितना नुकसान, कैसे होगी भरपाई
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लखनऊ : बसपा वह इंजन है, जिससे निकला पुर्जा कहीं और फिट नहीं होता। बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम अपनी पार्टी से अलग होने वाले नेताओं के लिए यह बात कहते थे। स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्मपाल सिंह सैनी जैसे नेता भाजपा छोड़कर अब सपा में जा रहे हैं, जो 5 साल पहले चुनाव से ठीक पहले ही भाजपा में आए थे।
इससे पहले ये सभी नेता बसपा में ही थे। इसके अलावा रामअचल राजभर और लालजी वर्मा जैसे नेता पहले से ही सपा में मौजूद है, जो बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। ऐसा पहली बार है, जब बसपा चुप है और उसमें शामिल रहे इतने सारे कद्दावर नेता एक साथ सपा में पहुंचे हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि बसपा के इंजन से निकले ये पुर्जे सपा की राजनीति में कितना फिट होते हैं और उसे कितना फायदा दिला पाते हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य जब 2016 में भाजपा में गए थे तो हर किसी को हैरानी हुई थी। अंबेडकरवार, बौद्ध धर्म और दलित आंदोलन को लेकर जितना मुखर होकर स्वामी प्रसाद मौर्य बोलते रहे हैं, उतना खुलकर बोलने वाले नेता कम ही थे। ऐसे में साफ था कि वह विचारधारा से परे सिर्फ राजनीतिक सफलता के लिए भाजपा में जा रहे हैं।
अब वह सपा में एंट्री ले रहे हैं और उनके समर्थक करीब एक दर्जन विधायक भाजपा छोड़ रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बसपा से ही भाजपा में आए थे। दूसरी ओर बसपा भी पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है और चुनावी सीन से परे नजर आ रही है।
कभी बसपा में रामअचल राजभर, बाबू सिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान समेत तमाम पिछड़े नेता शामिल थे और बसपा ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इन नेताओं की मौजूदगी में बसपा एक तरह से उस वक्त अपने स्वर्ण काल में थी, लेकिन न तो अब ये नेता बसपा में रहे और न ही मायावती उतनी कद्दावर नेता नजर आ रही हैं।
ऐसे में इनमें से ज्यादातर नेताओं की सपा में एंट्री और बसपा के चुप्पी साधने से यह सवाल उठ रहा है कि इससे भाजपा को कितना नुकसान होगा। दरअसल 2017 के वोट प्रतिशत को देखें तो भाजपा करीब 41 फीसदी वोट हासिल करके टॉप पर थी और समाजवादी पार्टी को 21.8 फीसदी वोट मिले थे। उसे 47 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन महज 19 सीटें ही जीतने वाली बसपा के खाते में 22.2 फीसदी वोट थे।
BSP के वोट पर किसकी कितनी दावेदारी, चुनाव के फैसले के लिए अहम
इस बार भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है, जबकि बीएसपी साइलेंट मोड पर है। ऐसे में लड़ाई का फैसला इसी बात पर आकर अटका दिखता है कि बसपा के 22.2 फीसदी वोटों में से कितना छिटकता है और किसके पाले में जाता है। 2017 में 40 फीसदी पाने वोट वाली भाजपा अब भी गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों पर दावा रखती है।
केशव प्रसाद मौर्य उसके पास हैं और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ उसकी बात चल रही है। इसके अलावा नरेंद्र कश्यप भी भाजपा के संग हैं। ऐसे में देखना होगा कि बसपा की चुप्पी और उसके पुराने नेताओं की सपा में एंट्री का नतीजा क्या होता है।