हिजाब विवाद पर उपदेश देने वालीं मलाला अपने ही पुराने बयान पर घिरीं, बुर्के को बताया था ओवन जैसा
कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर रोक को लेकर भारत के नेताओं को उपदेश देने वाली नोबेल विजेता मलाला युसुफजई अपनी पुरानी राय पर ट्रोल हो रही हैं। मलाला युसुफजई ने मंगलवार रात को ट्वीट कर कहा था, ‘कॉलेज हम पर दबाव डाल रहे हैं कि हम हिजाब या शिक्षा में से किसी एक चीज को चुन लें।
हिजाब के साथ लड़कियों को स्कूल में एंट्री न देना भयानक है। महिलाओं पर कम या ज्यादा कपड़े पहनने को लेकर दबाव डाला जा रहा है।भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं को किनारे लगाने की कोशिश पर रोक लगानी चाहिए।’
मलाला ने अपने इस ट्वीट में हिजाब के साथ लड़कियों को स्कूलों में जाने की अनुमति देने की बात कही गई है, लेकिन अब उनके ही पुराने बयान को ट्विटर पर लोग वायरल कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने बुर्का का विरोध किया था।
मलाला ने अपनी पुस्तक ‘आई एम मलाला’ में बुर्का को गलत और घुटन भरा बताया था। मलाला य़ुसुफजई ने लिखा था, ‘बुर्का पहनना ठीक वैसे ही है कि बड़ी कपड़े की शटलकॉक के अंदर चला जाए। जिसमें सिर्फ एक ग्रिल है, जिसके जरिए वह बाहर देख सके। वहीं गर्मी के दिनों में तो यह एक ओवन की तरह हो जाता है।’ मलाला के इसी बयान को लेकर लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं।
"They were forcing women to wear Burqas. Wearing a burqa is like walking inside a big fabric shuttlecock with only a grille to see through and on hot days it’s like an oven. At least I didn't have to wear one." – @Malala in 'I am Malala'. https://t.co/1HC5RIIjdL
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) February 9, 2022
लेखक आनंद रंगनाथन ने मलाला की किताब के ही उद्धरण का जिक्र करते हुए ट्वीट किया है। यही नहीं कई लोगों ने यह सवाल भी उठाया कि आखिर जिस नॉर्वे की ओर से उन्हें नोबेल सम्मान दिया गया है, उसने ही 2017 में स्कूल और यूनिवर्सिटीज में हिजाब या फिर चेहरे को ढकने वाले वस्त्रों को पहनने पर रोक लगाने का कानून बनाया था। नॉर्वे के कानून का जिक्र करते हुए लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर मलाला ने नॉर्वे को लेकर कोई बात क्यों नहीं कही।
यूजर का मलाला को जवाब, लड़के भी पहनें तो नहीं मिलेगी परमिशन
द स्किन डॉक्टर नाम के एक ट्विटर हैंडल पर मलाला को जवाब देते हुए लिखा गया, ‘जहां तक कॉलेज के फैसले की बात है तो वह सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है। यदि पुरुष भी हिजाब पहनकर आएंगे तो उन्हें भी परमिशन नहीं मिलेगी।
महिलाओं को ऑब्जेक्ट समझने की बात तो आपके मजहब में कही गई है, जहां सिर्फ महिलाओं के हिजाब पहनने की बात है। कॉलेजों की ओर से लड़कों को भी भगवा शॉल ओढ़कर आने की परमिशन नहीं दी जा रही है। इसलिए इसे लैंगिक मामला न बनाएं।’