Uttar Pradesh

समाजवादी पार्टी की हार के पीछे रही ये 5 बड़ी वजह, जानें क्यों ‘सफेद हाथी’ साबित हुई अखिलेश यादव की टीम?

लखनऊ. सात चरणों में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम (UP Election Results) आ चुका है. बीजेपी ने 37 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने चुनाव तो मजबूती से लड़ा, लेकिन सत्ता पर काबिज होने के लिए जरुरी जादुई आंकड़े से काफी दूर रह गई.

जाहिर सी बात है हार के बाद समाजवादी पार्टी में चिंतन और मंथन भी होगा. जानकारों की माने तो समाजवादी पार्टी की हार के पीछे पांच अहम वजह रही, जिसमें प्रमुख हैं दल-बदलुओं को तरजीह, टिकट वितरण में देरी, उम्मीदवारों व संगठन के बीच समन्वय का आभाव और घोषणा पत्र में किए गए लोकलुभावन वादों को जनता तक पहुंचाने में असफलता.

वहीं अगर बीजेपी की बात करें तो मजबूत संगठन, विपक्षी दलों पर भारी पड़ा. इसके अलावा गरीबों को आवास, निःशुल्क राशन और महिला सुरक्षा का माहौल पर जनता का भरोसा बीजेपी पर बरक़रार रहा. हालांकि समाजवादी पार्टी की हार में कई उपलब्धियां भी शामिल है. हार के बावजूद सपा को अब तक का सबसे ज्यादा वोट मिले. 2017 में सपा को करीब 21.82 फीसदी वोट मिले थे.

2022 में सपा को करीब 32 फीसदी वोट मिले, बावजूद इससे पार्टी सत्ता से दूर रही. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने कहा है कि पार्टी की सीटों में ढाई गुना की वृद्धि हुई है. आधा भ्रम टूटा है, आगे पूरा भ्रम टूट जाएगा.

टिकट वितरण में लचर नीति पड़ी भारी

समाजवादी पार्टी की हार के पीछे एक बड़ी वजह जो निकलकर सामने आ रही है उसमें काफी हद तक लचर रणनीति जिम्मेदार है. टिकटों की अदला-बदली ने प्रत्याशियों को ही नहीं समर्थकों को भी पशोपेश में रखा. आलम यह रहा कि नामांकन के अंतिम दिन तक असमंजस की स्थिति बनी रही.

काम न आई फ्री बिजली और पुरानी पेंशन बहाली के वादे

अखिलेश यादव ने इस बार अपने घोषणा पत्र में इस बार कई लोक लुभावन वादे किए थे, जिन्हें लोग गेमचेंजर मान रहे थे. लेकिन समाजवादी पार्टी अपने घोषणाओं और वादों को जनता के बीच तक पहुंचाने में असफल रही. सपा ने अपने घोषणा पत्र में 300 यूनिट बिजली फ्री, पुरानी पेंशन बहाली, संविदा व्यवस्था समाप्त करने एक लाख से जाया रिक्त पदों पर भर्ती का वादा किया था. इसका असर यह हुआ कि सपा का वोट प्रतिशत तो बढ़ा, लेकिन चुनाव परिणाम पर इसका असर नहीं हुआ.

दल-बदलुओं पर अतिविश्वास पड़ा भारी

अखिलेश यादव ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी, बसपा और कांग्रेस के दल-बदलुओं पर भरोसा जताते हुए मुस्लिम और यादव वोटबैंक के अलावा अन्य जातियों को भी साधने की कोशिश की. लेकिन चूक यह हुई कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा का खामियाजा भी भुगतना पड़ा. इतना ही नहीं दूसरे दलों से आए जाति विशेष के नेता भी अपनी-अपनी जातियों के वोट ट्रांसफर नहीं करवा पाए. यही वजह रही है कि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे दिग्गज खुद अपनी सीट हार गए.

पार्टी कार्यकर्ताओं अनदेखी भी रही वजह

सपा में एक सीट के लिए 50-50 दावेदार थे, लेकिन टिकट वितरण में देरी और सीटों की अदला-बदली में पार्टी उलझती चली गई. कुछ उम्मीदवारों ने तो शीर्ष नेतृत्व के करीबी नेताओं पर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप भी लगाया. इतना ही नहीं उन लोगों को टिकट थमा दिया गया जो कुछ दिन पहले ही पार्टी में शामिल हुए थे. इसका असर यह हुआ कि टिकट लगाए कुछ नेताओं ने बीजेपी, कांग्रेस और बसपा के माध्यम से सेंधमारी कर दी.

दिग्गज चेहरों की कमी खली

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सपा गठबंधन के लिए अखिलेश यादव ही वन मैन आर्मी की तरह जुटे रहे. जबकि बीजेपी की तरफ से दिग्गजों की फ़ौज थी. यहां तक कि शिवपाल यादव भी कहीं नजर नहीं आए. पार्टी के अन्य नेता भी उदासीन ही दिखे.

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