कहानी- बदलते रंग : शादी होते-होते ना जाने कब सांवली से काली हो गयी उसे खुद भी पता ना चला, ये रंग बदलने वाला चमत्कार…
अपने सांवले रंग की वजह से सुसुराल में स्वयं को कमतर महसूस करने वाली युवती को समय के साथ समझ में आया खूबसूरती का राज और बढऩे लगा उसका आत्मविश्वास… पढ़िए प्रज्ञा तिवारी इटावा, उत्तर प्रदेश की लिखी ये कहानी..।
‘बड़े ही जाहिल लोग हैं पढ़ी-लिखी लड़कियों का रंग कौन देखता है, दो ही तो रंग होते हैं, रंग ही तो दबा है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई में कम नहीं है किसी से। ससुर जी ने झल्लााते हुए फोन रख दिया। एक और रिश्ता कैंसल हो चुका था रानी दीदी के दबे हुए रंग की वजह से।
‘देखो तो कैसे लोग हैं आजकल के, लड़की की अच्छाई नहीं देखते, काबिलियत नहीं देखते बस सुंदरता देखते हैं हुंह। इधर गिन्नी हैरान हुई उन लोगों की बातें सुन रही थी। शादी होते-होते ना जाने कब वह सांवली से काली हो गयी उसे खुद पता ना चला, जिस घर में आधे से ज्यादा लोग सांवले हैं उस घर में गिन्नी के सांवले रंग को जबरदस्ती काला क्यों घोषित किया? ये रंग बदलने वाला चमत्कार उसे कभी समझ नहीं आया।
लोगों का तिरछी नजर से देखना फिर मुंह बिचका लेना सब कुछ उसकी झुकी पलकें बखूबी देख सकती थीं। ‘चांद सरीखे बेटे के लिए हम तो कोई चांदनी ही लाते मगर हाय रे नसीब, बैल बुद्धि बेटे को तो ये काली ही पसंद आनी थी। लोगों की बातें सुनकर उसका सांवला चेहरा गुस्से से लाल हो जाता, परंतु बड़ों का लिहाज करने का संस्कार उसे कुछ कहने नहीं देता।
‘भाभी अपनी पार्लर वाली से कहना कि हल्का मेकअप करे डार्क मेकअप जंचेगा नहीं आप पर। शादी से पहले अपनी ननद की सलाह सुन उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे। गिन्नी जब दुल्हन बनकर तैयार हुई तो लगा मानो चांद भी उसकी खूबसूरती से रश्क करने लगा हो। दूल्हे की नजरें उसके चेहरे से हट ही नहीं रहीं थीं। मगर ससुराल वालों की पैनी नजरें उसकी खूबसूरती को लगातार काट रहीं थीं।
चेहरे बहुत कुछ बयां कर रहे थे, गिन्नी का मन कर रहा था कि मंडप छोड़ कर भाग जाए और कभी वापस ना लौटे, मगर अपने होने वाले पति का चेहरा देख उखड़ती सांसें सुकून पाने लगतीं। गिन्नी की असली जंग तो शादी के बाद शुरू हुई जब चलते-फिरते घर में कोई ना कोई उसे फलाने की बहू की सुंदरता का बखान कर कमतर महसूस करा ही देता था, शादी से पहले फैशन की दीवानी कही जाने वाली गिन्नी अब जान बूझकर बेवजह चेहरे पर हल्का घूंघट लेने की आदी हो गयी, कई बार वह अपने आप से सवाल करती कि क्या सच में वो इतनी कुरूप है?
उसकी बड़ी तमन्ना थी कि एक बार झूठे ही सही उसके ससुराल में बाकी लोग नहीं तो कम से कम उसकी सासू मां ही प्यार से उसकी बलाएं लेतीं, रानी दीदी से तो ज्यादा ही सुंदर थी वो और कल को रानी दीदी भी ससुराल जाएंगी तब उनके साथ ऐसा हो तो? आखिर इनकी सुंदरता की परिभाषा क्या है? स्कूल और कालेज में ब्यूटी कांटेस्ट भी जीते हैं उसने, मिस फ्रेशर से लेकर मिस फेयरवेल तक का अवार्ड भी मिला था। पति को वो दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की लगती है और पति के घर वालों को सबसे कुरूप, ऐसा क्यों? शायद सांवलेपन की वजह से हो।
धीरे-धीरे उसके आत्मविश्वास और मेहनत ने भी जवाब दे दिया, भगवान की गलती समझकर उसने खुद को कबूल कर लिया था।
आज जब रानी दीदी को रिजेक्ट किया गया तो सास-ससुर की बातें सुनकर उसे तसल्ली के साथ खीझ भी हो रही थी। खीझ इस बात की कि दुनिया में उसके जैसे और भी परिवार हैं जहां लड़की को सिर्फ और सिर्फ बाहरी रंग रूप से आंकते हैं और तसल्ली इस बात की कि इतने दिनों से परिवार के जो दंश वह सहती आयी है अब उन्हें वह महसूस होने का वक्त आ गया है।
सास-ससुर गुस्से और चिंता में भुनभुनाए जा रहे थे, तभी सासू मां ने कहा, ‘रंग का क्या है वो तो बदलता रहता है। अब गिन्नी को ही देख लो ब्याह के आयी थी तब कैसी काली सी थी अब देखो, रंग कितना निखर गया है इसका।
‘इसका मतलब आज वह भी सुंदर है।
आंगन में खड़ी गिन्नी ने घूंघट हल्का सा उचका कर खुद को शीशे में देखा, मन किया कि हंसते-हंसते यहीं लोट जाए, मगर जैसे-तैसे हंसी दबा कर बस इतना ही कहते हुए वहां से हट गयी, ‘हां मम्मी जी रंग का क्या वो तो बदलते रहते हैं इंसानी स्वभाव जो है।
आज गिन्नी को अपने सारे सवालों के जवाब मिल चुके थे, रंग बदलने का जादू भी समझ आ गया था, आंसुओं के रास्ते वह अपनी कमजोरी, अपना टूटा हुआ आत्मविश्वास बहा रही थी, ज्यों-ज्यों आंसू बह रहे थे वह खुद को और मजबूत महसूस कर पा रही थी, शादी से पहले वाली गिन्नी वापस आने वाली थी, क्योंकि इंसान के रंग का क्या है वो तो बदलता रहता है, हैं ना?