यूपी विधानसभा चुनाव: क्या फंस गई है अखिलेश यादव की सीट? चुनाव प्रचार में खुद उतरे मुलायम, जानें यादवलैंड का गणित
इटावा. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections 2022) के तीसरे चरण में जिन 59 विधानसभा सीटों पर 20 फ़रवरी को मतदान होना है, उसमें सबसे हाईप्रोफाइल सीट है मैनपुरी जिले की करहल असेंबली सीट (Karhal Assembly Seat).
यादवलैंड की इस सीट से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का सामना बीजेपी प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल (SP Singh Baghel) से हैं. एसपी सिंह बघेल कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के बेहद खास थे, लेकिन अब उन्होंने अखिलेश यादव को यादवों के गढ़ से चुनौती देकर आसान दिख रही जीत पर पेंच फंसा दिया है.
यही वजह है कि गुरुवार को मुलायम सिंह यादव खुद मैनपुरी में बेटे के लिए प्रचार करने मैदान में उतर रहे हैं. मुलायम सिंह मैनपुरी के कोसमा में आयोजित जनसभा में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मंच साझा करेंगे. वहीं गृह मंत्री अमित शाह का भी आज मैनपुरी और आस-पास के जिलों में जनसभाएं और रोड शो होनी हैं.
2022 का विधानसभा चुनाव कई मायने में खास हैं. जहां यादवलैंड में सपा का पुराना गौरव वापस लाने की चुनौती है, तो भारतीय जनता पार्टी के सामने 2017 के विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने का कठिन लक्ष्य है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव की अगर बात की जाए तो यादवलैंड के रूप में पहचाने जाने वाले मैनपुरी और इटावा के आसपास की सीटों पर समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया था.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में यादवलैंड के जिलों की कुल 28 सीटों में से 26 सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में महज 6 सीटों पर सिमट गई थी. अखिलेश यादव एक नई रणनीति के तहत करहल विधानसभा से चुनाव लड़ रहे है.
मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव सैफई, मैनपुरी, फिरोजाबाद, इटावा, औरैया, एटा, कन्नौज, फर्रूखाबाद समेत कई जिलों की राजनीति का केंद्र बिंदु है. इन जिलों की हर विधानसभा सीट पर यादव जाति का बाहुल्य है. इसके अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह परिवार में अंदरूनी विवाद का असर इन जिलों के चुनाव नतीजों पर साफ दिखा था.
अखिलेश यादव के मैदान में उतरने से सपा को फायदा
सैफई से करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर अखिलेश यादव सपा समर्थक वोट बैंक को सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं. इसका असर प्रदेश में पश्चिम से पूर्व तक कुल 100 विधानसभा सीटों पर भी पड़ेगा, जहां पर यादव जाति का प्रभाव है. मुलायम परिवार में एकता कायम करने के लिए अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल सिंह को भी साथ ले लिया है.
समाजवादी पार्टी के एमएलसी अरविंद यादव कहते हैं कि अखिलेश के करहल से चुनाव लड़कर सपा संगठन में उत्साह भरा है. आगरा, अलीगढ़, मेरठ से लेकर आजमगढ़ व मिर्जापुर मंडल तक सपा के जनाधार में बढ़ोतरी होगी. अखिलेश के सामने यादवलैंड में सपा का पुराना गौरव वापस लाने की चुनौती है तो भाजपा के सामने 2017 विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने का कठिन लक्ष्य.
ये है जातिगत समीकरण
यही वजह है कि सपा के सबसे मजबूत गढ़ करहल में सेंध लगाने के लिए भाजपा के पास कोई उम्मीदवार नहीं था. काफी मंथन के बाद भाजपा ने केंद्र सरकार के कानून और न्याय विभाग के राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल करहल सीट से उम्मीदवार बनाकर जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश की है.
करहल विधानसभा सीट पर सर्वाधिक यादव मतदाता है, इसलिए सपा हमेशा यहां पर यादव जाति के नेताओं को उम्मीदवार बनाती रही है. करहल में करीब 35000 शाक्य, 30000 बघेल और 30000 ठाकुर मतदाता है. शाक्य और ठाकुर मतदाता भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है. बघेल को चुनाव लड़ाने के पीछे भाजपा की मंशा गैर यादव ओबीसी मतों के ध्रुवीकरण की है.
कौन हैं एसपी सिंह बघेल
एसपी सिंह बघेल कभी मुलायम सिंह यादव के करीबी हुआ करते थे. वर्ष 1989 में जब मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उस समय बघेल यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे. बघेल वर्ष 1998, 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जलेसर से सांसद चुने गए. मुलायम सिंह से अनबन होने के कारण वर्ष 2008 में वह सपा से निष्कासित कर दिए गए.
वर्ष 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर सपा उम्मीदवार अखिलेश यादव के सामने बसपा उम्मीदवार के रूप में बघेल ने चुनाव लड़ा था. मगर 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बघेल ने अखिलेश यादव की पत्नी और सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को चुनौती दी थी.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर सपा उम्मीदवार और रामगोपाल यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था. मुलायम परिवार के सदस्यों के सामने बघेल को हमेशा चुनावी हार का सामना करना पड़ा है. करहल में लगातार प्रचार में व्यस्त बघेल यह क्रम तोड़ना चाहते हैं.
वह कहते हैं कि गैर यादव ओबीसी जातियों को साथ लेकर भाजपा सपा को मजबूत चुनौती देगी. यादवलैंड की अन्य विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने कभी मुलायम के करीबी रहे गैर यादव नेताओं को मैदान में उतारा है.
फिरोजाबाद जिले की शिकोहाबाद विधानसभा सीट पर ओम प्रकाश निषाद, सिरसागंज सीट से हरीओम यादव और मैनपुरी की किशनी सुरक्षित सीट पर दलित नेता प्रियरंजन आशु दिवाकर को भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बनाया है.
शाक्य वोटों के लिए रोचक जंग लड़ी जा रही
मैनपुरी, इटावा समेत सपा के गढ़ वाले इलाकों में शाक्य वोटों के लिए रोचक जंग लड़ी जा रही है. अखिल भारतीय शाक्य महासभा के अध्यक्ष आलोक शाक्य बताते हैं कि यूपी में शाक्य, मौर्य,कुशवाहा और सैनी कृषि पर आधारित जैसे सामाजिक संरचना वाली पिछड़ी जातियां हैं. पूर्वांचल में मौर्य जाति प्रभावी है तो कानपुर और आगरा के बीच शाक्य पिछड़ी जाति की बहुलता है.
यादवलैंड के रूप में प्रचलित 8 जिलों के 28 विधानसभा सीटों के प्रत्येक पर 12 से 15 फीसदी शाक्य मतदाता है. राजनैतिक पार्टियां यादव जाति के बढ़ते प्रभाव के विरोध में शाक्य मतदाताओं को लामबंद करते हैं. सपा के आधार वोट बैंक के यादव जाति के विरोध में शाक्यो का वोट पाने का पहला प्रयास बहुजन समाज पार्टी ने किया.
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी सीट से सपा प्रत्याशी मुलायम सिंह के सामने बसपा ने आलोक शाक्य को उम्मीदवार बनाया था. उसके बाद शाक्य जाति के मतदातओ का झुकाव अब भारतीय जनता पार्टी के पक्ष मे प्रभावी तौर पर हुआ है, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके सहयोगियो के सपा के साथ आ जाने के बाद इस वोट बैंक के भी भाजपा से छिटकने का अनुमान लगाया जा रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक उदयभान सिंह यादव कहते है कि सपा प्रमुख के करहल विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने से यादव बेल्ट में समाजवादी पार्टी के पक्ष में बड़ा माहौल बनेगा. 2017 में यादव बेल्ट में सपा को बड़ा नुकसान इस बेल्ट में हुआ था. अब ऐसा माना जा रहा है कि अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतरने से सपा की ताकत बढ़ेगी.