बीसलपुर मे चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सुनकर भक्तो के छलके आंसू
बीसलपुर मे चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सुनकर भक्तो के छलके आंसू
राजा हरीश चन्द्र की कथा का हुआ बर्णन
बीसलपुर, पीलीभीत। बीसलपुर मे चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा मे कथा के पांचवे दिन फिरोजाबाद के नगला भीम से चल कर आयी कथा बाचिका बाल योगी कुमारी मधु शास्री ने राजा हरीश चन्द्र की कथा सुनाते हुये कहा कि जब भी सत्य की कही चर्चा की जाएगी तो महाराजा हरिश्चन्द्र का नाम जरूर लिया जाता है। सूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के लिए आज भी जाना जाता है। उनके सत्य के प्रति निष्ठा उनके सैकड़ों साल बाद भी सत्य का प्रतीक बनी हुई है। इनका युग त्रेता माना जाता है। राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे।जो सत्यव्रत के पुत्र थे। ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय हैं। और इसके लिए इन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े। ये बहुत दिनों तक पुत्रहीन रहे।पर अंत में अपने कुलगुरु वशिष्ठ के उपदेश से इन्होंने वरुणदेव की उपासना की।तो इस शर्त पर उन्हे एक पुत्र जन्मा।पुत्र का नाम रोहिताश्व रखा गया।और जब राजा ने वरुण के कई बार आने पर भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी न की तो उन्होंने हरिश्चंद्र को जलोदर रोग होने का शाप दे दिया।रोग से छुटकारा पाने और वरुणदेव को फिर प्रसन्न करने के लिए राजा वशिष्ठ जी के पास पहुँचे। इधर इंद्र ने रोहिताश्व को वन में भगा दिया। राजा ने वशिष्ठ जी की सम्मति से अजीगर्त नामक एक दरिद्र ब्राह्मण के बालक शुन:शेपको खरीदकर यज्ञ की तैयारी की। परंतु बलि देने के समय शमिता ने कहा कि मैं पशु की बलि देता हूँ, मनुष्य की नहीं। जब शमिता चला गया तो विश्वामित्र ने आकर शुन:शेप को एक मंत्र बतलाया और उसे जपने के लिए कहा। इस मंत्र का जप कने पर वरुणदेव स्वयं प्रकट हुए।और बोले – हरिश्चंद्र , तुम्हारा यज्ञ पूरा हो गया। इस ब्राह्मणकुमार को छोड़ दो। तुम्हें मैं जलोदर से भी मुक्त करता हूँ। यज्ञ की समाप्ति सुनकर रोहिताश्व भी वन से लौट आया और शुन:शेप विश्वामित्र का पुत्र बन गया।राजा हरिश्चंद्र की कथा सुनकर बीसलपुर की जनता गदगद हो गई।
रिपोर्ट शैलेंद्र शर्मा व्यस्त