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Video News टांडा : रेत पर खेलते बच्चों को क्या मालूम, कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देगी

टांडा(अम्बेडकरनगर) “मुफलिसी पाश-ए-शराफत नही रहने देगी, यह नदी हमको सलामत नहीं रहने देगी। रेत पर खेलते बच्चों को क्या मालूम, कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देगी।”मशहूर शायर मुनव्वर राना की ये पंक्तियां टांडा तहसील क्षेत्र के उन सैकड़ों लोगों का दर्द बयां करने के लिए काफी है जो सरयू के बाढ़ से हर साल अपने घरौंदों से महरूम हो जाते हैं।

जून के अंतिम से सप्ताह से बाढ़ का कहर टांडा तहसील क्षेत्र के मांझा क्षेत्रों में आमतौर पर शुरू हो जाता है। लेकिन इसके स्थाई समाधान के लिए ग्रामीणों की मांग लंबे समय से अनसुनी की जा रही है राजनीतिक दलों से लेकर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों तक ने क्षेत्रीय लोगों से जुड़े इस अहम मुद्दे को कभी भी अपने चुनावी एजेंडे में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा उपेक्षा से खिन्न होकर इस बार चुनाव में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र के मतदाताओं ने वोट की चोट करने का मन बनाया है.

बाढ़ व कटान की चपेट में मुख्य से टांडा तहसील के उल्टहवा, माझा, माझा कला, माझा चिंतौरा, केवटला, नदी नसरुल्लापुर, अवसानपुर, नैपुरा, सलोनाघाट, ढेलमऊ व डुहिया समेत लगभग 20 गांव आते हैं। बरसात में स्थिति काफी भयावह हो जाती है। मांझा समेत नदी किनारे स्थित गांवों के लोगों को घर छोड़कर राहत चौकियों पर शरण लेने को विवश होना पड़ता है। टांडा नगर स्थित थिरुआ नाला भी विकराल रूप ले लेता है। इससे मेहनियां समेत नाले के आसपास के गांव भी बाढ़ की चपेट आ जाते हैं।

प्रशासन द्वारा हर वर्ष डेढ़ दर्जन से ज्यादा बाढ राहत चौकिया बनाई जाती है ग्राम वासियों को बाढ से निकालने के लिए दर्जन भर नाव भी लगायी जाती है। यह बात अलग है कि हर वर्ष आने वाली बाढ़ की विभीषिका से निपटने के लिए कोई स्थायी हल नहीं खोजा जा सका है। बाढ़ खंड विभाग द्वारा प्रतिवर्ष बाढ़ व कटान रोकने के लिए ठोकर की व्यवस्था करती है जो नाकाफी है।

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