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वट सावित्री व्रत 30 को, यह है पूजा की व‍िध‍ि- मह‍िलाएं इसल‍िए करती हैं वट वृक्ष की पूजा

गोरखपुर, मिनट पर और अमावस्या तिथि दिन में तीन बजकर 40 मिनट तक है। कृतिका नक्षत्र सुबह छह बजकर 41 मिनट तक है। इसके बाद रोहिणी नक्षत्र, सुधर्मा योग और औदायिक योग है। सोमवार के दिन अमावस्या होने से यह स्नान-दान के लिए अत्यंत प्रशस्त दिन है। इसी दिन वट सावित्री व्रत है। वट वृक्ष की पूजा कर महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना करेंगी।

वट वृक्ष के नीचे बैठकर होती है पूजा

पं. शरद चंद्र मिश्रा ने बताया कि अमावस्या के दिन बांस की दो टोकरी लें। उसमें सप्तधान्य भर लें। एक में ब्रह्मा और सावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा पास नहीं हो, तो मिट्टी की प्रतिमा बनाई जा सकती है या उसके स्थान पर सुपारी रखकर पूजा की जा सकती है‌। वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन करें।

वट सावित्री व्रत कथा

मद्र देश में एक समय अश्वपति नामक राजा का शासन था। राजा बड़ा दयालु एवं धार्मिक था। उसके कोई संतान न थी। ज्योतिषियों के परामर्श से संतान प्राप्ति के लिए उसने यज्ञ किया। यज्ञ के बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। उसका नाम सावित्री रखा। विवाह योग्य आयु में सावित्री, सत्यवान को अपने पति के रूप में चुन ली। नारद जी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने सावित्री के पिता से कहा कि सत्यवान अल्पायु हैं।

अतः सावित्री को कोई दूसरा वर चुनना चाहिए। पिता ने सावित्री को समझाने का प्रयत्न किया, किंतु सावित्री अपने जिद पर अड़ी रही। बोली- हिंदू स्त्रियां दुनिया भर में केवल एक ही बार किसी पुरुष को चुनती हैं, बार-बार नहीं। सावित्री की जिद पर अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया।सावित्री ने सत्‍यवान के ल‍िए रखा था ब्रतl

सत्यवान अपने अंधे माता- पिता के साथ में रहते थे। उनके पिता का नाम द्युमत्सेन था‌, उनका राज्य छिन चुका था। सावित्री भी उनके साथ रहने लगी और अपने सास- श्वसुर की सेवा करने लगी। नारद जी द्वारा बताया गया सत्यवान के मरण का समय जब नजदीक आने लगा तो सावित्री उपवास करना आरंभ कर दी। जिस दिन उसके पति के मरण का समय आया, उस दिन सावित्री ने व्रत रखा।

सत्यवान जब लकड़ी काटने के लिए जाने लगे तो सावित्री साथ गई। जंगल में सत्यवान के सिर में पीड़ा होने लगी तो सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए। थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक यमदूतों ‌के साथ यमराज आ पहुंचे और सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।

साव‍ित्री से प्रसन्‍न होकर यमराज ने वापस कर द‍िया सत्‍यवान का जीवन

सावित्री भी यमराज के पीछे चल दी। उसको आता देख यमराज ने कहा- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी पर ही पत्नी, पति का साथ देती है। वहां तक तुमने साथ दिया है। अब वापस लौट जाओ। सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति रहेंगे, मुझे उनके साथ ही रहना है। यही मेरा पति धर्म है। यमराज सावित्री के इस उत्तर से प्रसन्न हो गए और सावित्री से वर मांगने को कहा।

सावित्री ने अपने सास-श्वसुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी। यमराज ने सावित्री के सास- श्वसुर को नेत्र ज्योति प्रदान कर दी और कहा सावित्री तुम्हें लौटना चाहिए। किंतु सावित्री उसके पीछे चलती रही। सावित्री को आता देखकर यमराज ने उसे दूसरा वर मांगने के लिए कहा।

सावित्री ने श्वसुर का खोया हुआ राज्य मांगा। यमराज ने सावित्री के ससुर को खोया हुआ राज्य दे दिया और पुनः लौटने के लिए कहा। किंतु सावित्री अपने अपने पतिधर्म को निभाने यमराज के पीछे चलने लगी। सावित्री की पति भक्ति को देखकर यमराज ने एक बार और वर मांगने के लिए कहा‌ तब सावित्री ने कहा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। यमराज ने सावित्री को उसके पति सत्यवान को वापस लौटा दिया।

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