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टिकट कटने व बगावत से लेकर दल-बदल की चर्चित कहानियां, पूर्वांचल के इन 10 जिलों में क्‍या चल रहा!

हिन्दमोर्चा न्यूज़ महराजगंज!

उत्तर प्रदेश चुनाव में दल-बदल के मामले खूब आए। चुनावी राजनीति में सुरक्षित ठिकानों की तलाश में नेताओं की उड़ान आम बात है। लेकिन, पूर्वांचल से आने वाले विधायकों को जीत का समीकरण ढूंढ़ने में जैसे ही दिक्कत हुई, उन्होंने अपना आशियाना बदल दिया। ऐसे कई मामले सामने आए हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में दल-बदल की आंधी सी चली। कई मंत्री से लेकर विधायक तक पार्टियां बदलते दिखे। जिन्हें जहां अपना समीकरण सधता नजर आया, उसे राजनीतिक आशियाना बना लिया। विचाराधारा विहीन राजनीति में चुनावों से पहले इस प्रकार की भगदड़ मचना लाजिमी है। भारतीय जनता पार्टी समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी (BSP) से लेकर कांग्रेस तक में भगदड़ देखने को मिली।

कई सीनियर नेताओं ने भी पार्टी का साथ छोड़ा। पाला बदलते नजर आए। कुछ को टिकट नहीं मिला तो पार्टी छोड़ी। किसी ने मनचाही सीट से सीट न मिलने के कारण पाला बदला। पूर्वांचल की राजनीति में ऐसा कुछ अधिक ही देखने को मिला है। छठे चरण में क्षेत्र के 10 जिलों में चुनाव होने हैं। छठे चरण में सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, संतकबीर नगर, गोरखपुर, देवरिया, बलिया, बलरामपुर और अंबेडकरनगर जिले में चुनाव होना है। इन जिलों में दल-बदल के खूब मामले आए हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ चर्चित कहानियाँ!

कुशीनगर में स्वामी प्रसाद मौर्य ने बढ़ाई सरगर्मी

भाजपा सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने ऐन चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। इसने कुशीनगर की राजनीति को गरमा दिया है। फाजिलनगर विधानसभा सीट से सपा उम्मीदवार स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने पूर्व सपा दावेदार इलियास अंसारी बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में डट गए हैं। रामकोला में सपा के शंभू चौधरी भी सपा को छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। सपा से बगावत कर खड्डा में विजय प्रताप कुशवाहा चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं। वहीं, पडरौना में अंशुमान बंका ने भाजपा का साथ छोड़कर निर्दलीय पर्चा भरा है। कुशीनगर में कई दल-बदल और विरोध की राजनीति ने चुनावी मैदान को गरमाया हुआ है।

कुशीनगर में 17 साल बाद फिर सपा में रिजवान जहीर

बलरामपुर जिले में रिजवान जहीर का दल-बदल खूब चर्चित रहा है। पूर्वांचल के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद रिजवान जहीर ने 17 साल बाद समाजवादी पार्टी में वापसी की है। 1989 में निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बनने वाले रिजवान ने लगभग सभी राजनीतिक दलों का सफर तय किया। अब वे अपनी बेटी जेबा रिजवान को अपनी विरासत सौंपने की योजना पर काम करते दिख रहे हैं। रिजवान ने तुलसीपुर विधानसभा सीट से 1989 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद 1996 में बलरामपुर लोकसभा सीट से सांसदी का चुनाव लड़ा और हार गए। वर्ष 1998 में इसी सीट से सपा उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीते। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की।

वर्ष 2004 में सपा से अनबन हुई और बसपा में शामिल हो गए। हालांकि, 2004 के चुनाव में भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह ने उन्हें पटखनी दे दी। 2009 में बसपा के टिकट पर श्रावस्ती और 2014 के चुनाव में पीस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उतरे और हारे। 2014 में कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन अधिक समय तक टिक नहीं पाए। फिर से बसपा का दामन थाम लिया। 2019 के विधानसभा चुनाव में श्रावस्ती से बसपा के राम शिरोमणि वर्मा को समर्थन दिया और उन्हें जीत मिली। इस चुनाव में वे 17 साल बाद फिर से सपा के साथ खड़े हो गए हैं।

सिद्धार्थनगर से अमर सिंह चौधरी ने बदला पाला

सिद्धार्थनगर के शोहरतगढ़ से अपना दल (एस) के विधायक चौधरी अमर सिंह ने ऐन चुनाव से पहले पाला बदल लिया। समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। समाजवादी पार्टी ने अंदरूनी विरोध के बाद भी उन्हें बांसी विधानसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया। लेकिन, अमर सिंह चौधरी को यह रास नहीं आया। उन्होंने अपनी विधानसभा सीट शोहरतगढ़ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि सपा उन्हें शोहरतगढ़ से उम्मीदवार बनाए जाने की उम्मीद थी। ऐसा नहीं हुआ तो अखिलेश यादव को खूब भला-बुरा कहा। उनके दल-बदल की चर्चा क्षेत्र में खूब हो रही है।

शिवेंद्र सिंह को दल बदल का नहीं मिला कोई लाभ, शिवेंद्र सिंह ने पाला बदला लेकिन पूरी नहीं हुई मुराद,

महाराजगंज के सिसवा विधानसभा सीट पर वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा के प्रेम सागर पटेल और सपा के शिवेंद्र सिंह के बीच मुकाबला हुआ था। विधानसभा सीट के समीकरण को देखते हुए चुनाव से पहले उन्होंने समाजवादी पार्टी को बाय-बाय कर दिया। चुनावी मैदान में उतरने की आस लगी हुई थी। लेकिन, भाजपा ने सिटिंग एमएलए प्रेम सागर पटेल पर ही भरोसा जताया। नाराज शिवेंद्र सिंह निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए। उनके समर्थकों की नाराजगी भी सामने आई। लेकिन, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मनाया तो मान गए। चुनावी मैदान से हटने का निर्णय लिया। उनके इस प्रकार पार्टी छोड़ने के बाद भी मुराद न पूरी होने की चर्चा पूरे क्षेत्र में है।

  • चौरी चौरा से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनावी मैदान में अजय टप्पू

  • इन दल बदलुओं की भी खासी चर्चा

गोरखपुर में भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ रहा है। यहां पार्टी के टिकट के दावेदार अजय कुमार सिंह टप्पू बगावत कर चुनावी मैदान में उतर गए हैं। यहां से विधायक संगीता यादव का टिकट काटकर भाजपा ने अपने सिंबल पर निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के बेटे सरवन निषाद को उम्मीदवार बनाया है। वहीं अजय कुमार निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं। इसी प्रकार अंबेडकरनगर में बसपा से कद्दावर नेता राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, त्रिभुवन दत्त और पूर्व सांसद राकेश पांडेय का बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम चुके हैं। बलिया में भाजपा के सुरेंद्र सिंह अब मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी से चुनावी मैदान में हैं। संत कबीर नगर में बीजेपी ने राकेश बघेल का टिकट काटकर सीट ही निषाद पार्टी को दे दी। वहां भी बगावत के सुर हैं।

हिन्दमोर्चा तहसील प्रभारी नौतनवां रतन गुप्ता की रिपोर्ट!

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