जम्मू-कश्मीर को भारत से जबरदस्ती अलग करना चाहता था यासीन मलिक, सजा सुनाने के दौरान कोर्ट की टिप्पणी
नई दिल्ली । दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यासीन मलिक को गंभीर आपराधिक प्रकृति के मामलों के लिए दोषी ठहराया गया है।
कोर्ट ने कहा कि अपराध इसलिए और गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और नामित आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड में किया जा रहा था।
जेल में मलिक के संतोषजनक आचरण, 1994 में हथियार छोड़ने के बाद से किसी भी आतंकवादी संगठन को लाजिस्टिक सहायता न देने और पूव प्रधानमंत्रियों द्वारा उसे अपनी बात करने का मंच देने के दावे पर अदालत ने अहम टिप्पणी की।
विशेष न्यायाधीश ने कहा कि अदालत की राय में मलिक में कोई सुधार नहीं हुआ था। यह सही हो सकता है कि अपराधी ने वर्ष 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने वर्ष 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया था।
सरकार के नेक इरादों से मलिक ने किया विश्वासघात
अदालत ने कहा कि यह ध्यान देने की बात है कि हिंसा का रास्ता छोड़ने पर मलिक को भारत सरकार ने सुधार का मौका देने के साथ ही एक कुशल बातचीत में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन जैसा कि मलिक ने हिंसा से बाज नहीं आया और सरकार के नेक इरादों के साथ विश्वासघात किया।
घाटी में बड़े पैमाने की हिंसा की दोषी ने नहीं की निंदाअदालत ने कहा कि अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन करने वाले दोषी ने एक हिंसक आंदोलन को नियोजित किया था।महात्मा गांधी के फालोवर होने के मलिक के दावे को ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि गांधी ने तो हिंसा की एक छोटी सी घटना के कारण पूरे असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया था, जबकि घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा के बावजूद दोषी ने न तो हिंसा की निंदा की और न ही उस विरोध को वापस लिया जिसके कारण हिंसा हुई थी।
अनुसरण करने वालों के लिए सबक हो सजा
अदालत ने कहा कि उक्त तथ्यों के अनुसार अदालत यह मानती है कि वर्तमान मामले में सजा देने के लिए प्राथमिक विचार यह होना चाहिए कि इस तरह के मार्ग का अनुसरण करने वालों के लिए सजा एक तरह से सबक हो।