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यूपी चुनाव की ये तस्‍वीर देखी आपने? जानें IPS से विधायक बनते ही असीम अरुण ने क्‍या किया

कन्‍नौजl हम सियासत में बढ़ती कटुता, राजनीति के गिरते स्‍तर की बातें बहुत करते हैं लेकिन इसी माहौल में जब अच्‍छे संस्‍कारों की कहीं कोई कोपल फूटती है तो अक्‍सर उसे नज़रअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन ये वो तस्‍वीर है जो कन्‍नौज की राजनीति में ही नहीं शायद प्रदेश की राजनीति में लंबे अर्से तक याद रखी जाएगी।

यह तस्‍वीर है आईपीएस से राजनेता बने असीम अरुण की जिन्‍होंने कन्‍नौज सदर सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके सपा के अनिल दोहरे को इस बार हरा दिया लेकिन जीत हासिल करने के बाद समर्थकों के जश्‍न के बीच सीधे जा पहुंचे हार चुके प्रत्‍याशी के घर। उन्‍होंने न सिर्फ अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अनिल दोहरे का आशीर्वाद लिया बल्कि ट्वीटर पर यह स्‍वीकारोक्ति भी की कि उनसे लड़ना आसान नहीं था।

असीम अरुण ने लिखा- ‘आदरणीय बड़े भाई अनिल दोहरे जी से उनके घर पर आशीर्वाद प्राप्त किया। अनिल भाई के विरुद्ध चुनाव में प्रतिभाग करना बहुत कठिन कार्य था। आपका पंद्रह वर्षों का विस्तृत अनुभव रहा है एवं साथ मिलकर विकास कार्य करने पर सहमति बनी।’ असीम की इस तस्‍वीर और ट्वीटर पर तीन लाइन के उनकी पोस्‍ट की सोशल मीडिया में खूब तारीफ हो रही है। लोग इसे आज के दौर की राजनीति में बड़ी मिसाल बता रहे हैं।

6090 वोटों से हुई है असीम अरूण की जीत

सपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली कन्नौज सदर सीट पर असीम अरुण की जीत 6090 वोटों से हुई है। सदर सीट पर पिछले सात चुनाव से बनवारी लाल दोहरे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। शुरू के तीन चुनाव में 1991, 1993 और 1996 में वह कामयाब हुए थे। उसके बाद 2002, 2007, 2012 और 2017 में उन्हें लगातार चार बार शिकस्त मिली थी। मोदी लहर में भी वह बेहद नजदीकी मुकाबले में हार गए थे। इस बार भाजपा ने असीम अरुण को उतारा था। इस बार भाजपा का जादू चल गया। भाजपा ने इस सीट पर कामयाबी के लिए जो पत्ता चला, उसके आगे सपा पस्त पड़ गई। इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगा चुके सपा के अनिल दोहरे को घेरने के लिए भाजपा ने आईपीएस अफसर और कानपुर के पहले पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को मैदान में उतारा।

शुरू में यह फैसला चौकाने वाला लगा। लेकिन चुनाव शुरू होते ही भाजपा का यह दांव कारगर होता गया। नए चेहरे को सामने देखकर भाजपा के संगठन में भी नया उत्साह दिखा। वोटरों के सामने भी बेहतर विकल्प आया। यही वजह रही कि पिछले चुनाव में मोदी लहर में भी भाजपा जिस सीट को नहीं जीत सकी थी, इस बार कड़े मुकाबले में यह सीट सपा से झटकने में कामयाबी मिल गई। शुरू से ही अपनी जीत को लेकर आश्वस्त सपा के अनिल दोहरे भाजपा की घेराबंदी को पार नहीं पा सके और जीत का चौका लगाने का उनका सपना टूट गया।

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