Politics

ब्रजेश सिंह के बाहर आने से पूर्वांचल में गैंगवार का खतरा, मुख्तार अंसारी और बीकेडी कैंप की नींद उड़ी

डॉन बृजेश सिंह के 14 साल बाद जेल से बाहर निकलने से समर्थकों और परिवार में खुशी है तो विरोधी खेमे में हलचल बढ़ गई है। खासकर मुख्तार अंसारी और बीकेडी गैंग बेहद सतर्क हो चला है। कहा तो यह भी जा रहा है कि बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी की गुरुवार की रात भी करवट बदलते ही कटी है। दोनों गैंग के बीच एक बार फिर से वर्चस्व दिखाने की कोशिश हो सकती है। वहीं, बीकेडी पर ब्रजेश गैंग की नजरें टिक गई हैं।

मुख्तार अंसारी के बाद बृजेश सिंह के जानी दुश्मन के तौर पर उभरा बीकेडी भी पुलिस और एजेंसियों के रडार से बाहर है। उस पर एक लाख का इनाम है। इंद्रदेव सिंह उर्फ बीकेडी धौरहरा गांव में बृजेश सिंह का पड़ोसी और पट्टीदार है।

बीकेडी उन्हीं हरिहर सिंह का बेटा है जिस पर बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या का आरोप लगा था। हरिहर सिंह को भी उनके घर में घुसकर हत्या की गई थी। आरोप ब्रजेश सिंह पर लगा था। ब्रजेश पर हत्या का यह पहला मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा बीकेडी के भाई और तब के दबंग पांचू इनामिया का भी नाम ब्रजेश सिंह के पिता की हत्या में आया था। सारनाथ पुलिस ने एनकाउंटर में पांचू को मार गिराया था।

कांस्टेबल की हत्या ने बनाया मुख्तार-ब्रजेश को सबसे बड़ा दुश्मन

पुलिस का तब मानना था कि पांचू के मारे जाने के बाद ब्रजेश सिंह के पिता की हत्या का बदला पूरा हो गया है। अब कोई गैंगवार नहीं होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीकेडी पिता और भाई दोनों की मौत के लिए बृजेश सिंह को जिम्मेदार मानता है। 4 मई 2013 को इंद्रदेव सिंह उर्फ बीकेडी पहली बार चर्चा में आया जब टकटकपुर में कालोनी के मोड़ पर उसने बृजेश के करीबी अजय सिंह उर्फ खलनायक और उसकी पत्नी पर अपने साथियों नामवर और बिरादर यादव के साथ ताबड़तोड़ फायरिंग की थी।

कई गोलियां लगने के बाद भी खलनायक बच गया। हमले में उसकी पत्नी के पैर में भी गोली लगी थी। ठीक दो महीने बाद 3 जुलाई-2013 को बीकेडी ने अलसुबह धौरहरा गांव में बृजेश के चचेरे भाई सतीश सिंह को गोलियों से छलनी कर अपने इरादे साफ कर दिए थे।

ब्रजेश की राजनीतिक रसूख की चाहत में हुआ सबसे बड़ा हत्याकांड

अप्रैल-2016 में बृजेश सिंह को बेटी की शादी के लिए पेरोल मिलने से पहले बीकेडी फिर चर्चा में आया जब रोहनिया स्थित एक कार एजेंसी के बाहर फायरिंग और रंगदारी में उसका नाम आया था। हालांकि एसटीएफ और पुलिस के पीछे लग जाने के कारण वह कुछ न कर सका। बीकेडी का नाम गाजीपुर में राजनाथ यादव की हत्या और भेलूपुर क्षेत्र में रंगदारी के एक मामले में भी आ चुका है।

बीकेडी के नाम के पीछे दिलचस्प कहानी

इंद्रदेव उर्फ बीकेडी के नाम के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है। बताते हैं कि आजादी के बाद स्थापित भारतीय क्रांति दल में उसके बाबा नेता थे। इंद्रदेव के जन्म के बाद उन्होंने ही उसका नाम इस पार्टी पर बीकेडी रखा। उससे छोटे भाई का नाम इसी तुकबंदी में सीकेडी पड़ा। बताया जाता है कि बीकेडी मर्चेंट नेवी में नौकरी करता था। नौकरी के बाद वह पिता और भाई की मौत का बदला लेने लौटा।

पूरी खबर देखें

संबंधित खबरें

error: Content is protected !!