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इस बार राजा भइया और अखिलेश यादव में क्यों है अनबन, आखिर क्यों पड़ी दोनों की बीच दरार, जानें सबकुछ

विवादों से पुराना नाता रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया किसी जमाने में सपा के मुखिया अखिलेश यादव के बगलगीर हुआ करते थे मगर अब सियासी अदावत ऐसी की एक दूसरे पर तंज और फब्तियां कसते नजर आते हैं. 2022 के चुनाव में पहली बार रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ सपा ने अपना प्रत्याशी गुलशन यादव को उतारा है.

यही नहीं अखिलेश यादव ने पहली बार राजा भइया के खिलाफ चुनावी रैली भी की और कहा है कि इस बार जनता कुंडा में कुंडी लगा देगी. वहीं राजा भइया ने भी पलटवार करते हुए कहा है कि कुंडा में कुंडी लगाने में सात पुश्ते लग जाएंगी. दोनों के बीच जुबानी जंग का यह आलम सियासी गणित की वजह से आया है.

आपको बता दें कि राजा भइया 1993 से कुंडा से लगातार निर्दलीय विधायक रहे हैं. वे भाजपा की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और सपा की सरकारों में मंत्री भी रहे हैं. राजा भइया अखिलेश सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री रहे, डीएसपी जियाउल हक की हत्या में भी राजा भइया और उनके करीबियों का नाम आया था मगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी जिसका सियासी नुकसान सपा और अखिलेश को उठाना पड़ा था.

राज्यसभा में बीजेपी को वोट

सपा और अखिलेश यादव के करीबी बताते हैं कि राजा भइया ने अपने कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर राज्यसभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट ना करके भाजपा को वोट किया था जिससे अखिलेश यादव काफी नाराज हुए थे और वहीं से दोनों के सम्बंधों में दरार पड़नी शुरू हो गई थी.

राजा भइया ने यूपी के विधानसभा चुनावों के पहले ही अपना सियासी कुनबा बढ़ाने की ख्वाहिश के चलते अपनी नई पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का गठन किया और इस चुनाव में 17 उम्मीवार भी उतारे हैं जो आरी चुनाव चिह्न पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए इस बार सपा और राजा भइया के बीच तकरार बढ़ना लाजिमी है.

कुंडा में कोई जातीय गणित काम नहीं करता

राजा भइया का सियासी सफर बालीवुड की किसी मसाला फिल्म से कम नहीं है. राजा भइया के इलाके में लोग उनके नजदीक कुर्सी पर बैठते तक नहीं है, छोटे मोटे मामले का निपटारा राजा भइया की पंचायत में ही होता है. लोग पुलिस से पहले राजा भइया के पास आते हैं. ये उनकी लोकप्रियता है या डर मगर कुंडा में आज भी ऐसा ही होता है.

कुंडा में किसी भी तरह का जातीय गणित काम नहीं करता. बसपा सुप्रीमों ने जब 1997 में भाजपा से समर्थन वापस लिया और कल्याण सिंह सरकार अल्पमत की वजह से गिरने वाली थी, उस वक्त रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया ने बसपा और कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर और कुछ निर्दलीय विधायकों की मदद से कल्याण सिंह सरकार को गिरने से बचाया था.

राजा भइया पर कई आरोप

कल्याण सिंह ने उन्हे अपने मंत्री मंडल में शामिल तो कर लिया था मगर वहीं से मायावती और राजा भइया की राजनीतिक अदावत की शुरुआत भी हो गई थी. 2002 में बीजेपी विधायक पूरन सिंह बुंदेला की शिकायत पर राजा भइया के लखनऊ वाले घर पर छापा पड़ा और वहां से काफी हथियार मिले जिसके बाद मायावती ने (POTA) आतंकवाद निरोधक अधिनियम के तहत उन्हे जेल भेज दिया.

उनके प्रतापगढ़ में भदरी रियासत हवेली पर भी छापा पड़ा और उनके पिता उदय प्रताप सिंह और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को भी अपहरण और धमकी के मामले में जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया. 600 एकड़ में फैले बेंती तालाब की खुदाई के दौरान काफी नरकंकाल मिले थे जिसके बारे में तमाम कहानियां प्रचलित हैं कि यहां मगरमच्छ पाले जाते थे हालांकि इस बात की अधिकारिक रुप से कोई पुष्टि नहीं होती है. मायावती उन्हें कुंडा का गुंडा कहकर ही सम्बोधित करती थीं.

1993 से लगातार विधायक

1993 से कुंडा से लगातार निर्दलीय विधायक राजा भइया मुलायम सिंह यादव की सरकार आते ही जेल से बाहर आ गए मगर 2007 में जैसे ही मायावती सत्ता में आई उन्होने अपने सारे सियासी दुश्मनों को निपटाना शुरू कर दिया. मायावती ने राजा भइया के बेंती तालाब का अधिग्रहण करके उसे पक्षी विहार बना दिया. 2010 में पंचायत चुनाव में हुई हिंसा के दौरान एक प्रत्याशी की मौत के आरोप में राजा को फिर जेल में डाल दिया. 27 फरवरी को कुंडा में भी मतदान होना है.

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