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अब नए हाथों में होगी यूपी भाजपा संगठन की कमान, ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना

जमील असकरी

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। सरकार का शपथ ग्रहण समारोह पूरा होने के साथ ही मंत्रियों को लेकर दस मार्च से चल रही अटकलें तो समाप्त हो गईं, लेकिन अब चर्चा के केंद्र में भाजपा संगठन है। चूंकि, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है, इसलिए तय है कि संगठन की कमान अब नए हाथों में सौंपी जाएगी। माना जा रहा है कि पार्टी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के सफल फार्मूले पर भरोसा जताते हुए फिर से ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। सामने कई चेहरे हैं भी, लेकिन मंत्रिपरिषद गठन में पार्टी द्वारा किए गए अचंभित करने वाले प्रयोग ने किसी भी दावे या अटकलों में पहले जैसा दम नहीं छोड़ा है।

विधानसभा चुनाव की जीत में केंद्र और राज्य सरकार के डबल इंजन ने ताकत लगाई तो उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका सरकार और संगठन के डबल इंजन की रही। योगी सरकार-2.0 के गठन में 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की तैयारी की झलक भी नजर आ रही है। क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को खूब ख्याल रखा गया है।

पिछड़ों और अनुसूचित वर्ग को मंत्रिपरिषद में तवज्जो मिली है तो ब्राह्मण समाज से आठ मंत्री बनाकर सरकार ने उस अफवाह को भी पूरी तरह बेदम कर दिया है कि भाजपा सरकार में इस वर्ग की अनदेखी की गई। बहरहाल, अब बारी संगठन की है। प्रश्न यह है कि एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत को अपना चुकी भाजपा अब स्वतंत्र देव सिंह के स्थान पर किसे प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी? संगठन में ही कई तरह की अटकलें हैं।

बात यहां से शुरू होती है कि 2017 से पहले केशव प्रसाद मौर्य और 2022 के चुनाव से पहले स्वतंत्रदेव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। दोनों विधानसभा चुनावों में यह फार्मूला फिट रहा और बेहतर परिणाम मिले। वहीं, पिछले दो लोकसभा चुनावों में इस पद के लिए पार्टी ने ब्राह्मण पर भरोसा जताया। 2014 में लक्ष्मीकांत बाजपेयी और 2019 में डा. महेंद्रनाथ पांडेय के नेतृत्व में शानदार जीत भी मिली।

ऐसे में माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी यही दांव फिर चलेगी। मंत्रिपरिषद की जिम्मेदारी से मुक्त रखे गए निवर्तमान उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा और निवर्तमान कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा को इस भूमिका के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। दोनों ही संगठन के अनुभवी हैं।

इसके इतर कुछ लोगाें का तर्क है कि डा. दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा सहित डा. महेंद्र सिंह और सिद्धार्थनाथ सिंह ने संगठन में काफी काम किया है। उनके अनुभव का प्रयोग पार्टी राष्ट्रीय संगठन में पद देकर लोकसभा चुनाव में कर सकती है। वहीं, पिछड़ों के सबसे बड़े वोटबैंक को साधने के लिए पिछड़ा वर्ग से किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का प्रयोग कर सकती है। चूंकि, अप्रत्याशित तरीके से कई वरिष्ठ मंत्रियों को नई जिम्मेदारी देने के लिए मंत्रिपरिषद से मुक्त रखने का प्रयोग भाजपा कर चुकी है, इसलिए किसी नए प्रयोग की संभावना से भी कोई इन्कार नहीं कर पा रहा है।

सरकार में घटा संगठन का वजनः

नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन से इस तथ्य का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन प्रयोगधर्मिता का यह उदाहरण जरूर है कि भाजपा के रणनीतिकारों के लिए अब संगठन से ऊपर समीकरण हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पिछली कैबिनेट में 22 मंत्रियों में से सिर्फ पांच ऐसे थे, दूसरे दलों से आए हुए थे यानी कि संगठन के मूल कार्यकर्ता नहीं थे। वहीं, इस बार 16 कैबिनेट मंत्रियों में ही पचास प्रतिशत यानी कुल आठ बाहरी हैं। इस तरह देखा जाए तो सरकार में संगठन का वजन घटता नजर आया है। 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए समीकरणों पर खास ध्यान दिया गया है।

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