जरा हटके: 50-50 कोस दूर तक थी रियल गब्बर सिंह की दहशत, चिट्ठियों की मुनादी पलट देती थी चुनावी फिजा
ललितपुर. बुंदेलखंड और चंबल संभाग में एक पूरा दौर खूंखार डकैतों का रहा है. यहां एक डकैत ऐसा भी था जिसकी कुछ रियल घटनाओं को आधार बनाकर फिल्म शोले का निर्माण हुआ था. करीब पौने दो सौ संगीन मुकदमों के आरोपी रहे गब्बर सिंह (Gabbar Singh) ने कई बड़ी घटनाएं की.
शोले में रामगढ़ के गब्बर ने ठाकुर के हाथ काटे थे, लेकिन रामपुर गांव का यह गब्बर मुखबिरी करने वालों की नाक और कान काट लेता था. इसकी फौज में सांबा भी रहा है. इसकी सियासी धमक की बात करें तो इसके द्वारा भेजी गई चिट्ठियां की गांव के गांव में चुनावी बाजी पटलवा देती थी.
1975 की मशहूर एक्शन फिल्म शोले के निर्माता गोपालदास सिप्पी रहे हैं. फिल्म में डाकू गब्बर सिंह के डायलॉग की गूंज आज भी थर्रा देती है. इसमें डाकू गब्बर सिंह को रामगढ़ गांव को दिखाया गया है, लेकिन असल जिंदगी के गब्बर के गांव का नाम रामपुर है. उसके खिलाफ ललितपुर जिले के थानों में 1970 से कई अपराधिक मामले दर्ज हुए.
कई बड़ी वारदातों को अंजाम देने वाले गब्बर सिंह का खौफ झांसी जालौन से लेकर सागर, पन्ना, टीकमगढ़ समेत कई जिलों में रहा है. गब्बर सिंह का खौफ इतना था कि मध्य प्रदेश सरकार ने उससे वार्ता कर 1986 में सशर्त आत्मसमर्पण करा दिया.गब्बर सिंह के बेटे भवानी सिंह बताते हैं कि उसके पिता गब्बर सिंह का असली नाम प्रीतम सिंह था.
यहां से विधायक सुदामा प्रसाद गोस्वामी ने उनका नाम गब्बर कर दिया था. इसके बाद वह गब्बर के नाम से तो मशहूर हुआ, लेकिन अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया. रामपुर गांव के लोगों की मानें तो उसने 1969 में ही हथियार उठा लिए और और गैंग बनाकर बीहड़ में उतर गया.
गब्बर सिंह का नाम 70 के दशक का सबसे खूंखार डाकुओं में रहा है. अमझरा की घनी घाटी इसका स्थायी ठिकाना रहा है. जबकि उसकी दहशत जालौन से लेकर झांसी, ललितपुर, सागर, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ और विदिशा तक रही है, लेकिन गब्बर सिंह ने गरीबों को कभी नहीं सताया और न ही किसी महिला को परेशान किया.
गब्बर सिंह के बेटे भवानी सिंह बताते हैं कि उनके पिता ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम मोतीलाल बोरा के कहने पर सागर में आत्मसमर्पण कर दिया था. शर्तों के मुताबिक, उनकी सजा माफी और जमीन देने की भी बात थी.
जेल से छूटने के बाद गब्बर सिंह रामपुर में ही आ गए. यहां वह किसानी और ग्रामीणों के साथ रहे, लेकिन दोबारा उन्होंने अपराध की तरफ रुख नहीं किया. भवानी सिंह कहते हैं कि उनकी ही घटनाओं पर फिल्म शोले बनाई गई है. इस पर उनके पिता ने शोले फिल्म के डायरेक्टर को नोटिस भी भेजा था.
जिसकी चिट्ठियों के फरमान पर डलते थे वोट
गांव के लोग बताते हैं कि गब्बर सिंह का एक बड़े इलाके में नाम ही काफी था. इसी को लेकर नेता भी उनके संपर्क में रहते थे. जिस भी नेता का काम गब्बर सिंह की गैंग को आया उसी के लिए वह गांवों में चिट्ठियां भेज देते थे.
दहशत इतनी थी कि गांव के लोग भी डाकू गब्बर सिंह के फरमान को नकार नहीं पाते थे और उनके कहने पर ही वोट डाल आते थे. हरनाम सिंह राठौर को चुनाव जिताने और मंत्री बनवाने से लेकर सुजान सिंह बुंदेला को सियासत में बड़ा नेता बनाने तक गब्बर का खौफ कई गांवों में असर करता रहा है.