Lucknow

Loksabha By Poll UP 2022 : सपा का गढ़ ढहाने से ‘ब्रांड योगी’ हुआ और मजबूत, अखिलेश के खिलाफ पार्टी के अंदर ही उठने लगी हैं आवाजें

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा (Samajwadi Party) के लिए उपचुनाव एक और झटका साबित हुआ. सपा प्रमुख अपनी आजमगढ़ सीट नहीं बचा सके. साथ ही आजम का ‘गढ़’ रामपुर भी हाथ से जाता रहा. समाजवादी पार्टी अपने कोर वोटबैंक एम-वाई फैक्टर के भरोसे सियासत करती आई हैं उसमें भी सेंधमारी शुरू हो गई. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चुनाव प्रचार से जहां दूरी बनाए रखी वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने जमकर पसीना बहाया और उस परिश्रम का उन्हें फल भी मिला. आजमगढ़ की जीत के बाद ‘ब्रांड योगी’ की स्थिति और मजबूत हुई है. इस उपचुनाव से मायावती को जरूर संजीवनी मिली है और अब वो इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

विधानसभा चुनावों के बाद ये बात निकल कर आई थी कि मुसलमानों ने एकमुश्त वोट सपा को दिया है जिसकी वजह से सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बाद भी बसपा को महज एक सीट ही मिल पाई थी. मगर आजमगढ़ में दलित-मुस्लिम समीकरण काम करता दिखा और बसपा प्रत्याशी को 2.66 लाख वोट मिलने से मायावती को एक आशा की किरण दिखाई दी है. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को साफतौर पर कहा है कि पार्टी पूरे प्रदेश में जनसंपर्क अभियान चलाए और समुदाय विशेष को फोकस करते हुए उन्हें समझाएं कि भाजपा के मुकाबले सिर्फ बसपा है.

चुनाव दर चुनाव बेहतर होता जा रहा भाजपा का प्रदर्शन

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से ही भाजपा का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव बेहतर होता जा रहा है. 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ 64 सीटें जीतने वाली भाजपा ने विपक्ष के किले में उपचुनाव के जरिए सेंधमारी की है. इस उपचुनाव का असर आगामी 2024 के आम चुनावों में भी देखने को मिलेगा. भाजपा के नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं. इस जीत के बाद भाजपा की अगली रणनीति और पूरा फोकस अब मैनपुरी और रायबरेली को जीतना है. 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ अमेठी और सपा के गढ़ कन्नौज, बदायूं सीट जीत ली थी.

सपा का वोट प्रतिशत गिरा तो भाजपा का बढ़ा

भाजपा ने पूरी रणनीति के साथ कमजोर बूथों को चिह्नित करके मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को जिम्मेदारी थी वो नियमित बैठकें करते रहें और वोटरों से मिलकर समस्या पता करें. मतदान के दिन तक भाजपा के नेता वोटरों को समझाकर अपने पाले में करने में कामयाब रहे. खासतौर से मौर्य, लोधी, जाटव, पासी, पिछड़ा और दलित वर्ग के अन्य वोटरों को. इसका सीधे तौर पर फायदा पार्टी को हुआ. योगी की लोकप्रियता का आलम ये है कि रामपुर की जनसभा और भाषण से गरीब मुसलमानों को भी उन्होने अपनी तरफ कर लिया. ये वो लोग थे जो आजम खान के मंत्रित्व काल से उनसे नाराज थे. विधानसभा चुनावों के महज तीन महीनों के भीतर ही सपा का वोट 6 प्रतिशत तक गिर गया तो वहीं भाजपा का वोट 8 प्रतिशत बढ़ा दिखाई दिया.

सपा के सामने अपने घटक दलों को साथ रखने की चुनौती

2014, 2017, 2019, 2022 चार चुनावों के बाद भी अखिलेश यादव खुद को साबित नहीं कर पाए हैं जिसके चलते उनके गलत फैसलों के खिलाफ उनकी पार्टी के अंदर से ही आवाजें उठने लगी हैं. चुनाव प्रबंधन की कोई रणनीति नहीं, प्रत्याशी की घोषणा नामांकन के आखिरी दिन होना ये सब बातें सपा प्रमुख को कटघरे में खड़ा कर रही हैं. उपचुनाव के नतीजों के बाद से सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने घटक दलों को साथ रखने की है.

सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर, अखिलेश यादव से खफा हैं. पार्टी के कोर वोटरों को जोड़े रखना, बिखराव रोकना और 2024 तक कार्यकर्ताओं का हौसला बनाए रखना अखिलेश के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. आपको बता दें कि गुडडू जमाली को विधानसभा चुनावों के दौरान अखिलेश यादव ने आश्वासन दिया था टिकट देने का. मगर आखिरी समय में सपा प्रमुख ने उनका टिकट काट दिया. जिसका खामियाजा अखिलेश को अपनी प्रतिष्ठित सीट खोकर चुकाना पड़ा.

निरहुआ को मिला सक्रिय रहने का लाभ

गौरतलब है कि दिनेश लाल निरहुआ को अखिलेश यादव ने ही यश भारती सम्मान से नवाजा था. 11 लाख रुपये और साथ ही आजीवन 50 हजार रुपये पेंशन की व्यवस्था की थी. हालांकि भाजपा सरकार ने उस सम्मान को बंद कर दिया है. 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी निरहुआ पूरे तीन साल से आजमगढ़ में सक्रिय थे जिसके बदले में वहां की जनता ने उन्हें चुनकर संसद भेज दिया. भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह लाभार्थी वोटबैंक भाजपा के साथ जुड़ा रहा. बुलडोजर का मुद्दा भी पूरे उपचुनाव में काम आया. मगर ‘सेफ’ खेलने के चक्कर में अखिलेश हिट विकेट हो गए.

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