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इंग्लिश मीडियम विद्यालय में नहीं पढ़ पाते गरीबों के बच्चे

टांडा(अम्बेडकरनगर) निजी स्कूलों में  किताब, बस्ते और यूनिफार्म के नाम पर अभिभावकों का जमकर शोषण कर रहे हैं। इसके अलावा बिल्डिंग फीस आदि के नाम पर भी रुपये वसूल रहे हैं। जब से  शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ तब से केवल अमीर के बच्चे ही इंग्लिश मीडियम स्कूलों में एडमिशन पा रहे हैं जबकि गरीबों के बच्चे केवल इंग्लिश मीडियम विद्यालयों के गेट ही ताकते रहते हैं शायद उनका नशीब ही इतना अच्छा नही है ।

अप्रैल माह में स्कूलों में एडमीशन के लिए अभी से ही एडमीशन का दौर शुरू हो गया  है  कुछ निजी स्कूल संचालक इसका फायदा उठाते हुए अभिभावकों की जेब काटने पर तुले हुए हैं। स्कूलों में किताब और बस्ता स्कूल से ही खरीदने के लिए अभिभावकाें को विवश किया जा रहा है।  जिस तरह अमीर और गरीब के बच्चों के बीच खाई बढ़ रही है उसे यही लग रहा है कि आने वाले समय केवल अमीर के बच्चे ही अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करेंगें ।

ऐसा नहीं है इसकी जान शिक्षा विभाग के अधिकारियों को नहीं है बताया तो यहां तक जा रहा है कि मोटी रकम इन अधिकारियों के पास विद्यालय द्वारा भेज दी जाती है शिक्षा शिक्षा विभाग के अधिकारी रूपया पाते ही आंख पर पट्टी बांध लेते हैं और निजी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल मनमानी पर उतारू हो जाते हैं और अभिभावकों के जेब पर डाका डालना शुरू कर देते है अभिभावकों का दर्द कोई सुनने वाला नहीं है.

गरीब के बच्चे इन विद्यालयों के बाहर से गेट ही देखते रह जाते हैं शायद उनके नसीब में इन विद्यालयों में पढना  नहीं लिखा है थक हार कर गरीब बच्चों के अभिभावक सरकारी परिषदीय विद्यालयों में अपने बच्चों का एडमिशन करा देते है इन विद्यालयों की क्या दशा है इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है लोगों ने इन विद्यालयों पर शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने की मांग की है जिससे गरीब के बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई कर सकें ।

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