सभी के लिए 24 घंटे खुला रहता है देश का ये ‘ओपन हाउस’, खाने-पढ़ने-रहने तक की हर सुविधा है
हैदराबाद के कोठापेट (Kothapet, Hyderabad) स्थित ‘ओपन हाउस’ (Open House) सभी के लिए हमेशा तकरीबन 24 घंटे खुला रहता है. चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, वह बेझिझक इस ओपन हाउस में आ सकता है. अपनी भूख मिटाने के लिए खाना बना सकता है.
किताबे पढ़ने में समय बिता बिता सकता है और आराम भी कर सकता है. यहां कोई सवाल नहीं पूछा जाता. इस ओपन हाउस का नाम है ‘अंदारी इल्लू’ (Andari Illu). जी हां, अगर आप हैदराबाद किसी काम से आए हैं, और अगर आपके पास ठहरने के लिए कोई जगह नहीं है, तो आपके लिए अंदारी इल्लू के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं.
कोई सवाल करने वाला नहीं
यहां सारी सुविधाएं मौजूद है. अगर किसी के पास खाना खाने के पैसे नहीं, तो वह यहां आकर खुद के लिए खाना बना सकता है. खाना पकाने के लिए हमेशा चावल, सब्जियां, बर्तन और गैस स्टोव उपलब्ध रहता है. कौन यहां क्या कर रहा है, यह पूछने के लिए न तो कोई सुरक्षा गार्ड है और न ही कोई सुपरवाइजर.
एक डॉक्टर की अनूठी पहल
डॉ. सूर्य प्रकाश विंजामुरी (Dr. Surya Prakash Vinjamuri) एक समाजसेवक हैं. साल 1999 में उन्होंने अपने डॉक्टर के पेशे को छोड़कर लाइफ-हेल्थ रीफइनफोर्समेंट (Life- Health Reinforcement Goup) नाम का एक एनजीओ शुरू किया, जिसका मुख्य मकसद था इंसान के जीवन की रक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना.
उनका कहना है, ‘जो कोई भी यहां आता है उसे यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि वह एक इंसान है. एलियंस यहां नहीं आएंगे. लोग अपनी भूख मिटाने आते हैं. भोजन करने के बाद वे जो करते हैं वह उनके व्यक्तिगत जोखिम पर छोड़ दिया जाता है.’
कई लोगों के सपने हुए हैं पूरे
डॉ. सूर्य प्रकाश विंजामुरी और उनकी पत्नी एस.वी.वी कामेश्वरी पिछले कई सालों से लोगों की भूख मिटाने में लगे हैं. सबसे पहली बार उन्होंने ‘केले की गाड़ी’ (Banana Cart) नाम की योजना शुरू की. जिन लोगों के पास पैसे होते, वे मूल्य चुका कर केला खरीदते और जिनके पास पैसे नहीं होते, वे फ्री में केला खा सकते थे.
14 साल पहले उन्होंने ‘ओपन हाउस’ की शुरुआत की. अबतक हजारों लोग यहां ठहरकर प्रतियोगी परीक्षाओं का पास किया है और अपने सपनों को पूरा किया. वे लोग यहां बिताए गए दिनों का हमेशा याद रखते हैं. और साथ ही सूर्य प्रकाश का आभार जताने के लिए उनकी मुहिम में शामिल भी हो गए हैं.
लोग जुड़ते गए, कारंवा बनता गयापिछले 36 सालों से समाज सेवा में सक्रिय डॉ. सूर्य प्रकाश बड़े गर्व से कहते हैं, ‘ओपन हाउस का स्वामित्व, संस्था के पास है. मेरे पास कुछ भी नहीं है. मेरे पास बैंक खाता भी नहीं है.’ वे आगे कहते हैं, ‘जिस क्षण आप किसी चीज के मालिक होने लगते हैं, आपका जीवन दयनीय होने लगता है.’
सूर्य प्रकाश के विचारों से प्रभावित होकर अब कई लोगों ने इस कार्य में अपना योगदान देना शुरू कर दिया है. वे कहते हैं, ‘मैंने कभी कोई चंदा नहीं मांगा, क्योंकि मेरा मानन है कि समाज सेवा स्वैच्छिक होनी चाहिए और किसी दबाव से नहीं, बल्कि खुशी से करनी चाहिए. लोग राशन,सब्जी यहां तक की फर्नीचर भी लाकर दी हैं.’
आज की स्थिति
कोरोना काल से पहले ओपन हाउस में प्रतिदिन 40-50 लोग आते थे, लेकिन महामारी के दौरान यह संख्या कम हो गई है. चूंकि घर में केवल चार कमरे हैं और बाहर से आने वाली कुछ महिला मरीज रह रही हैं. फिलहाल, इस वक्त दूसरे लोग बगैर अनुमति के यहां नहीं रह सकते हैं.
सिद्दीपेट के रहने वाले के.चिरंजीवी इन दिनों नौकरी की तलाश कर रहे हैं और फिलहला वो ओपन हाउस में रह रहे है. इसके लिए उन्होंने इजाजत ली है. उनका कहना है, ‘मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं शहर में किराये का कमरा ले सकूं. इस जगह का पता मेरे कुछ दोस्तों ने बताया.’
पुस्तकालयों पर जोर
डॉ. सूर्य प्रकाश का कहना है कि उन्होंने ओपन हाउस की शुरुआत केवल भोजन से की लेकिन बाद में भोजन और ज्ञान दोनों को साझा करने के विचार से किताबें रखीं. आज, संगठन हैदराबाद और तेलंगाना के अन्य हिस्सों में विभिन्न स्थानों पर 100 पुस्तकालयों को चला रहे हैं. इन पुस्तकालयों को चलाने वाले व्यक्ति बच्चों को कला और शिल्प भी सिखा रहे हैं.