निजी अस्पतालों में मरीजों की जेब पर डाका डाल रहे सरकारी डॉक्टर, सीएमओ बने तमाशबीन
अंबेडकर नगर | जिले के सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस से एक तरफ जहां सरकारी खजाने में चूना लग रहा है वहीं मरीजों की जेब भी ढीली हो रही है | विभाग के अधिकारी हैं तो आंख पर पट्टी बांधे हैं | ज्ञात हो कि शासन द्वारा सरकारी डॉक्टरों को प्रति माह का वेतन के अलावा निजी क्लीनिक व अस्पताल न चलाएं, इसके लिए नॉन प्रैक्टिस भत्ता दिए जाने का प्रावधान है जो हर महीने डॉक्टरों को विभाग से किया जा रहा है | इसके बावजूद भी प्राथमिक से लेकर सामुदायिक, जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज के अधिकांश डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में मशगूल हैं |
डॉक्टरों द्वारा प्रतिदिन निर्धारित समय में आने और जाने का कोई समय नहीं है, इनकी आदत में शुमार है | कारण इन्हें अपने निजी क्लीनिक व अस्पतालों में बैठने की चिंता बनी रहती है | ऐसे डॉक्टर प्रतिमाह विभाग से वेतन के साथ नॉन प्रैक्टिस भक्ता ले रहे हैं और निजी क्लीनिक व अस्पतालों में मनमानी तरीके से मुंहमांगी फीस की वसूली के साथ पेटेंट दवाओं के पर्चे न लिखकर जनरिक में ₹10 की दवा को 50 में उपलब्ध करा कर मालामाल हो रहे हैं |
इस खेल को जिला मुख्यालय के मालीपुर रोड सहित दोस्तपुर, पहितीपुर , अयोध्या, पुराना तहसील तिराहा, रोडवेज, टांडा ,व बसखारी रोड आदि पर कहीं भी देखा जा सकता है जहां सरकारी डॉक्टरों की करतूत बेखौफ चल रही है | इस मामले में अहम जिम्मेदार मुख्य चिकित्सा अधिकारी है तो उनसे कोई लेना- देना नहीं है, तमाशबीन बने हैं | इसे लेकर प्रबुद्ध वर्गीय लोगों का आरोप है कि विभाग के अधिकारियों की अनदेखी से साफ झलकता है कि उनके द्वारा ऐसे डॉक्टरों से माहवारी तय किया गया है, शिकायतें मिलने पर भी इसीलिए उनके बचाव जांच में किए जाते हैं |