अखिलेश यादव ने अपने सारथी केशव देव मौर्य को किया पैदल, गिफ्ट में दी हुई फॉर्च्यूनर ले ली वापस
लखनऊ. समाजवादी पार्टी ने गठबंधन तोड़ने के ऐलान के बाद महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य को पैदल कर दिया है. दरअसल सपा ने विधानसभा चुनावों से पहले केशव देव मौर्य को एक फॉर्च्यूनर कार गिफ्ट में दी थी, जिसे गठबंधन टूटने के बाद वापस मंगा ली है. दरअसल हाल के राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में हिस्सेदारी ना मिलने से खफा महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य ने बुधवार को सपा से गठबंधन तोड़ने का एलान किया था.
इस दौरान मौर्य ने समाजवादी पार्टी पर उपेक्षा करने का आरोप लगाया है. सपा गठबंधन में महान दल को केवल दो सीटें मिली थीं. केशव की पत्नी और बेटे को समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल पर महान दल के प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ाया था, लेकिन दोनों पराजित हो गए.
यूपी में विधानसभा चुनाव के वक्त समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने केशव देव मौर्य की जमकर तारीफ करते हुए उन्हें भगवान श्री कृष्ण बताया था और उन्हें अखिलेश के सारथी का तमगा दिया था. रामगोपाल यादव ने तब कहा था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के चुनावी रथ के सारथी महान दल के केशव देव मौर्य होंगे. हालांकि अब उसी सारथी का रथ छीन लिया गया है.
सपा को फायदा नहीं दिला सके केशव
दरअसल केशव देव मौर्य से सपा ने जब गठबंधन किया था, तब यह उम्मीद की गई थी कि केशव के जरिये समाजवादी पार्टी को खासा फायदा मिलेगा, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. पिछड़ी जातियों में प्रमुख शाक्य, मौर्य, कुशवाहा और सैनी वर्ग से जुड़े केशव अपनी जाति पर प्रभाव नहीं छोड़ सके जबकि इसके ठीक विपरीत सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का इस जाति पर व्यापक असर दिखाई दिया. इसका असर यह हुआ है कि भाजपा की ओर से उतारे गए शाक्य, मौर्य, कुशवाहा और सैनी वर्ग के उम्मीदवारों ने खासी कामयाबी पाकर भाजपा को ताकत प्रदान की.
समाजवादी पार्टी ऐसा मानती है कि महान दल से गठबंधन करके सपा को किसी भी तरह का कोई फायदा नहीं हुआ. केशव देव मौर्य का राजनीतिक इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि बसपा छोड़कर केशव ने 2008 में महान दल का गठन किया था, जिसके बाद से सूबे में अपने राजनीतिक वजूद को स्थापित करने के लिए जद्दोजहद करते हुए दिखाई दे रहे हैं.
हर चुनाव में साथी अलग, लेकिन नतीजा एक
सम्राट अशोक के वंशज मौर्य समाज से ताल्लुक रखने वाले केशव कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी, कम्बोज, भगत, महतो, मुराव, भुजबल और गहलोत बिरादरी के भरोसे राजनीति में स्थापति होने का सपना देख रहे थे. महान दल हर चुनाव में किसी न किसी दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अभी तक पार्टी का खाता नहीं खुल सका है.
साल 2008 में वजूद में आए महान दल ने पहली बार 2009 लोकसभा में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. उसने दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों पर हार हुई. इसके बाद वर्ष 2014 में महान दल ने तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. 2019 में फिर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े, लेकिन इस बार जीत नसीब नहीं हुई.
वर्ष 2012 के विधानसभा में महान दल जीत नहीं सकी थी, लेकिन 20 सीटों पर प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था. महान दल का जनाधार बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, मुरादाबाद के इलाकों में अच्छा खासा माना जाता है, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को महान दल कोई खास फायदा नहीं पहुंच सका है.