मैं और प्रकृति
वीना राय आजमगढ़ उत्तरप्रदेश
उस जगह का पता
बता दे ज़रा
जहाँ मुझे मेरे
हृदय का स्पंदन सुनाई दे
बहुत दूर कहीं धरती का
अम्बर से मिलन दिखाई दे
खो दूँ जहां मैं पहचान अपनी
बन जाऊँ अंग प्रकृति की
हो दीवारें फूलों की क्यारियाँ
नदी का जल शीतल-पावन
समेटने को प्रकृति का आँचल
बाहें फैला दूँ मैं असुध बन
बातें करूँ बस पंछियों से
बेलों को झूला बनाऊँ
उन्मुक्त हवा के संग
मैं भी इधर-उधर लहराऊँ
ना हो कोई सीमा, ना कोई बंधन
हो ऐसे स्वच्छंद मेरा तन-मन, ,,
राधा का विरह
नूतन राय, नालासोपारा (महाराष्ट्र), स्वरचित व मौलिक रचना
तेरे विरह की पीडा
दिल सह नही पाता है
आजा रे मेरे सावरे
मेरा दिल घबराता है।।
कहता है यहाँ हर कोई
तु तीनो लोक का स्वामी
कण कण मे तु रहता है
अरे तु तो है अन्तरयामी
पर मेरे दिल की पीडा
क्यो समझ ना पाता है ।।
आजा रे मेरे सांवरे
मेरा दिल घबराता है।।
तू कहके गया था हमसे
मैं आऊंगा कल परसों
कल परसों बीत गए रे
अरे बीत गए कई बरसों
तेरी राह तकूं मैं कबसे
तू क्यों नहीं आता है ।।
आजा रे मेरे सांवरे
मेरा दिल घबराता है ।।
तू कहता था मैं तुझको
हूं प्राणों से प्यारी
पर जब से गया निर्मोही
कभी सुध भी ली ना हमारी
मैं तड़पू यहां वहां पर
तू व्याह रचाता है ।।
आजा रे मेरे सांवरे
मेरा दिल घबराता है।।
तेरे विरह की…………
आजा रे……………..