मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मो से उत्थान और पतन सुनिश्चित करता है?
सुनीता कुमारी, पूर्णियां बिहार
इस धरती पर सभी मनुष्यों की इच्छा होती है कि,वे जैसा जीवन चाहते है उनके जीवन में वैसा ही हो।परंतु ,हमारे जीवन में हमेशा वैसा नही होता ,जैसा हम सोचते है।सब लोग अपना जीवन, अपनी सोच के हिसाब से जीना चाहते है और यही चाहते है कि,वो जैसा चाहते है वैसा ही उनके जीवन में हो ।
अगर सोच के अनुरूप नही होता है तो लोग चिंता करते है ,अवसाद ग्रस्त हो जाते है कभी कभी तो कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते है। इन सब चीजों के लिए कोई और नही बल्कि हम खुद दोषी होते है।हमारे द्वारा या हमारे बड़ो के द्वारा या फिर हमारे पूर्वजों के द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्म का फल सीधा हम पर पड़ता है ।हमारे साथ कुछ अच्छा होता है तो इसके लिए हम अपनी सुझबुझ और मेहनत को श्रेय देते है और कुछ बुरा होता है तो किस्मत को कोसते है भगवान को दोष देते है क्यों ?
जबकि हम अच्छे से जानते है हमारे साथ जो भी अच्छा या बुरा होता है इसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते है। बस हमें पता ही नही होता है कि, हम कहां गलती कर रहे है?हमसे क्या बुरा हो रहा है? है ।
सभी धर्म में साधना और अराधना पर विशेष बल दिया जाता है,संस्कारी बनाने की प्रेरणा दी जाती है ताकि ,हम जीवन में तरक्की एवं उन्नति करें ।हमारा वैवाहिक एवं समाजिक जीवन सफल हो और हम सभी सुख सुविधाओं का उपभोग कर सकें। मनुष्य के बेहतर चरित्र को महत्व दिया जाता है ताकि एक बेहतर परिवार, बेहतर समाज और बेहतर राष्ट्र बन सके।
मानव की मानवता तभी लक्षित होती है जब वह,परिवार में अच्छा बेटा या बेटी,समाज के लिए समाजसेवी एवं देश के लिए देशभक्त बने ??
मगर मनुष्य यह सोच रखता ही नही है?
अच्छा बेटा बनता है तो ,समाज सेवी नही,समाज सेवा में लीन होता है तो परिवार की अनदेखी करता है ,एवं भौतिकतावादी जिंदगी के पीछे भागता है तो देश की अनदेखी करता है ??
जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य किसी न किसी क्षेत्र में हारता जरूरत है ??
सोच में एकरूपता और स्थायित्व नही होने के कारण जहां एक समय में मनुष्य का उत्थान होता है वही दूसरे कई अनावश्यक प्रवृति के कारण पतन भी निश्चित होता है।
हम हमारी जिंदगी में काफी मेहनत करते है,रात दिन एक करके धन अर्जन करते है,हम पैसे के पीछे भागते रहते है ,मकान, जमीन,बंगला गाड़ी सबकुछ पाने की दौड़ में दौड़ते रहते है?
उपरोक्त चीजों को हासिल करने में इतने व्यस्त हो जाते है कि, ना हम परिवार को समय देते हैं और ना ही अपने शरीर को अपने स्वास्थ्य को ?
जिसके परिणाम स्वरूप परिवार के लोगों का अथाह धन रहने के बावजूद भी हमसे मानसिक जुड़ाव नही हो पाता है?क्योंकि परिवार में बच्चे और अन्य सदस्यों को आपसे मानसिक जरूरत की भी अपेक्षा होती है,और उस जरूरत के समय आप धन अर्जन की रेस में भागते रहते है ?जिसके परिणाम स्वरूप जरूरत के समय बुढ़ापे में बच्चे सहयोग नही करते,और आपके जीवन में धन का उत्थान तो होता है बांकी सबकुछ का पतन होने लगता है ।
एक समय के बाद उस धन का भी पतन होने लगता है,क्योंकि धन के पीछे भागते भागते आपने अपने बच्चों पर ध्यान ही नही दिया।उनके भविष्य निर्माण की योजना ही नही बनायी,अच्छा इंसान ही नही बनाया ।
मंहगी से महंगी स्कूल कॉलेज में दाखिला करा दिया जिम्मेदारी खत्म?
यही एक सफल इंसान की असफल कहानी होती है।मनुष्य उत्थान भी करता है और पतन का निर्माण भी साथ साथ करता चला जाता है। पूरी दुनियां में मनुष्य भौतिकवादी हो चुका है ।कुछ मनुष्य मेहनत के बलबुते पर धन कमाना चाहता है तो कुछ मनुष्य छोटा रास्ता अपनाता है ।
छोटा रास्ता अर्थात दो नंबर की कमाई के पीछे भागता है ?दो नंबर की कमाई में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है और अपने आप को तसल्ली देता है कि ,” हमने अपने जीवन में बहुत सारा धन कमाया, सब कुछ हासिल कर लिया जो,जो एक साधारण मनुष्य नहीं कर पाता है ।”
एक समय तो वह अपने ऊपर गर्व करता है ,अपने आप को शाबाशी देता है ,अपने आपको समाज में सभी से अलग और बेहतर समझता है ,और सब को हिकारत भरी नजर से देखता है ?
परंतु एक समय ऐसा आता है जब वह जेल की चक्की पिसता है?,
क्योंकि घरवालों को ऐसे लोग भी समय नहीं देते हैं दो नंबर की कमाई की तरह सोच भी तो नंबर ही होती है ,जिससे बच्चे धन की अधिकता के कारण अय्याश और नशेड़ी बन जाते हैं ,और उस धन का इस्तेमाल गलत तरीके से करने लगते हैं जिससे धीरे-धीरे परिवार का पतन होने लगता है ।हमारे देश में बहुत सारे नेता इसके उदाहरण है? जिनका नाम लेना उचित नहीं है।
ऐसे नेता जिन्होंने नाम, पैसा तो खूब कमाया पर अपने बच्चे को भविष्य नहीं दे पाए और खुद भी जेल की हवा खा रहे हैं । रात दिन मेहनत करके दुष्ट बुद्धि चालबाजी और लोगों को बेवकूफ बनाने जैसी हरकतें करके धन अर्जन तो बहुत कर लेते हैं मगर अंत समय में सब का हिसाब उन्हें जेल की सलाखों के पीछे देना होता है। एक समय में वह स्थान करता हैं और साथ-साथ अपना पतन भी सुनिश्चित करता चला जाता हैं।