देश एवं माता पिता का सम्मान ही सर्वोपरि
सृष्टि भार्गव, उप पुलिस अधीक्षक, साइबर सेल इंदौर
युवा एक शब्द है जो प्रतीक है “ऊर्जा’ का जब भी हम युवा कहते हैं तो हम मानते हैं कि जोश से भरा मनुष्य जो किसी भी ऊँचाई तक पहुंचने की कामना रखता है। युवा की एक खासियत और होती है कि वह अपने समय से पूर्व से चली आ रही परंपराओं में बदलाव करना चाहता है। कई बार यह बदलाव समय एवं परिस्थिति के अनुकूल होते हैं वे इसके लिए प्रयास करते हैं।
कभी सफल, कभी असफल तो कभी आंशिक सफल होते हैं प्रत्येक पीढ़ी इस युवावस्था से गुजरती है और समान रूप से उत्साहित होती है किंतु बहुत बड़ा परिवर्तन समाज में देखने को नहीं मिलता आज भी वही परम्पराएँ समाज में साम्राज्य बनाए हुए है, इन्हें बदलने का प्रवास प्रत्येक पीढ़ी के युवा वर्ग ने किया। आज का बुजुर्ग बीते हुए कल का बुवा था जो आज के युवा से कहता है कि हमने भी अपने समय में कई बदलाव करना चाहे किंतु अंततः हम ही बदल गये। क्या कारण है इस हतोत्साहन का?
क्यों ऊर्जावान युवा सकारात्मक विचारों से लबालब समय के साथ खुद बदल जाता है ?
अगर इस विषय पर चिंतन करना है तो हमें युवा वर्ग जिस ऊर्जा को परिलक्षित करता है उसे समझना होगा। उसे समझते ही इस बदलाव के लिए क्या किया जा सकता है समझ आ जाएगा। ऊर्जा गतिशील एवं स्थिर प्रकार की होती है। स्थिरता स्थिति से पैदा होती है। कोई चीज अगर विभिन्न स्थितियों से अनुकूलता प्राप्त कर चुकी है तो वह स्थिर हो जाएगी। परम्पराएँ भी कुछ इसी तरह की होती है जो विभिन्न स्थितियों में अनुकूलता प्राप्त कर चुकी है किंतु मनुष्य की अवस्थाएँ गतिमान ऊर्जा का प्रतीक है।
किसी स्थिर ऊर्जा को हटाने हेतु गतिमान ऊर्जा को उसकी जगह स्थिर होना पड़ेगा और यही कारण है कि युवा में उपस्थिति गतिमान ऊर्जा स्थिर नरह सकने के कारण, रिक्तता को भर नहीं पाती। जब युवा प्रोढ़ अवस्था को प्राप्त करता है तो फिर किसी युवा के लिए दहेज लेन-देन का मोल भाव एवं अन्य कुरीतियों एवं पाखंड का समर्थन करता है
यह सब कैसे समाप्त होगा
हम खाकी वर्दी समाज की सुव्यवस्था नैतिकता का पालन एक व्यवस्था में रह कर करते हैं, जिसे हम कानून व्यवस्था कहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम भग मुक्त समाज की स्थापना हेतु कटिबद्ध है। हमें सहयोग चाहिए एक ऐसे युवा वर्ग का जो शिक्षित होने के साथ नैतिकता गुणों से भरा हो।
युवा वर्ग चीजों एवं परिस्थितियों को समग्रता से देखें, स्वयं पर विश्वास करें हम समाज की कुरीतियों जैसे दहेज आदि आदान-प्रदान से बचें। सुजुर्गों के सम्मान का, बच्चों की सहूलियत का एवं स्थितियों के साथ मर्यादित आचरण का प्रादुर्भाव होवे बुद्धि की स्थिरता का विकास योग व ध्यान से ही संभव है।
भारतीय संस्कृति के मूल्यों का अध्ययन एवं प्रसार करना चाहिए, जिससे समाज की कुरीतियों से लड़ाई सहज हो जाएगी। देश एवं माता । पिता का सम्मान ही सर्वोपरि है तभी हम स्वदेश के स्वप्न को साकार कर पाएंगे।
जय हिंद जय भारत