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सपा प्रमुख अखिलेश यदि बनेंगेे नेता प्रतिपक्ष तो योगी सरकार को मिलेगी कड़ी चुनौती

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है,उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली करारी हार के बाद अखिलेश यादव ने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देने का फैसला लिया है. उन्होंने दिल्ली में लोकसभा स्पीकर को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. आपको बता दें, अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव में करहल विधानसभा सीट से जीत हासिल की है.यानी वह करहल से विधायक बने रहेंगे.

इससे भी बड़ा मैसेज यह है कि संभवता अब अखिलेश यादव ही उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता विपक्ष की भूमिका में नजर आएंगे।यदि ऐसा होता है तो यह तय माना जाना चाहिए कि नेता प्रतिपक्ष बनकर अखिलेश विधान सभा के अंदर योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं,जिसका फायदा सपा को न केवल 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा,बल्कि 2027 के विधान सभा चुनाव के लिए अभी से सपा के लिए जमीन तैयार होने लगेगी।।के लिए  ताज तो योगी को मिल गया है,लेकिन विधान सभा में नेता विपक्ष की भूमिका कौन निभाएगा,इसको लेकर संशय बरकरार है।

वैसे भी पिछली विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष रहे समाजवादी पार्टी के नेता राम गोविंद चौधरी इस बार चुनाव हार गए हैं। इस लिए सपा मेें नेता प्रतिपक्ष के लिए नये चेहरांे की तलाश की जा रही थी। कई नाम चर्चा में थे। इसमें शिवपाल सिंह यादव,माता प्रसाद पांडेय,मनोज पांडेय, इन्द्रजीत सरोज,लाल जी वर्मा,राम अचल राजभर,ओम प्रकाश सिंह,रविदास महरोत्रा तक  शामिल थे।

वैसे राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों का कहना है कि यदि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को 2027 विधान सभा चुनाव जीतना है तो उनके लिए यह सही रहेगा कि वह किसी और की बजाए स्वयं ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभालें,जैसे पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव विपक्ष में रहते संभाला करते थे। अखिलेश यादव के लिए केन्द्र से अधिक उत्तर प्रदेश पर ध्यान देना इस लिए भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि फिलहाल उनके पास यूपी की जमीन मजबूत करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भी यदि उन्हें मजबूती के साथ करना है तो भी उन्हें उत्तर प्रदेश में ही पार्टी को मजबूती प्रदान करना होगी।

खैर, बात नेता प्रतिपक्ष के लिए अखिलेश के अलावा अन्य चेहरों की कि जाए तो इसमें करीब आधा दर्जन नेता शामिल हैं।इन नेताओं में अम्बेडकरनगर से जीते राम अचल राजभर काफी वरिष्ठ नेता हैं। वैसे तो राजभर पुराने बसपाई हैं,लेकिन उन्होंने अबकी से चुनाव में बसपा की जगह समाजवादी पार्टी में आस्था दिखाई और चुनाव जीत भी गये। राजभर नेता प्रतिपक्ष बनकर पिछड़ों की गोलबन्दी के काम आ सकते हैं। राजभर के साथ समस्या यह है कि वह  वह सपा के पुराने नेता नहीं बल्कि बसपा से आयातित है।

   इसके बाद नाम लालजी वर्मा का आता है। इनकी कहानी भी राम अचल राजभर जैसी ही है।अंतर बस इतना है कि ये पार्टी से निकाले जाने से पहले विधानसभा में बसपा विधानमण्डल दल के नेता थे।यानी विधानसभा में पार्टी के अगुआ। इनके साथ भी कमी यही है कि ये भी पुराने बसपाई है, लेकिन पिछड़ों की गोलबन्दी के काम आ सकते हैं.

कौशाम्बी की मंझनपुर सीट से जीते इन्द्रजीत सरोज सूबे के बड़े दलित नेता रहे हैं. वैसे तो ये भी पुराने बसपाई हैं, लेकिन चुनाव से करीब चार साल पहले ही सरोज सपा में आ गये थे। इन्द्रजीत बसपा यानी मायावती के बिखरते कुनबे को सपा की ओर मोड़ने में सहायक हो सकते हैं। सरोज प्रखर वक्ता भी हैं और फायर ब्राण्ड भी. राम गोविन्द चौधरी के तीखे तेवरों की कमी पूरी हो सकती है।

पुराने समाजवादी नेता ओम प्रकाश सिंह को लेकर भी अटकले लग रही हैं. गाजीपुर की जमानियां सीट से विधायक ओम प्रकाश वैसे तो हैं मुलायम सिंह के समय के, लेकिन अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. छात्र आंदोलन से ओम प्रकाश सिंह की राजनीति शुरू हुई थी और जयप्रकाश नारायण के संघर्ष में भी शामिल रहे। ओम प्रकाश जमीनी नेता हैं। कमी ये है कि ठाकुर बिरादरी से हैं जिसका सूबे में कोई बड़ा वोट बैंक नहीं है। इसके अलावा अखिलेश यादव के साथ वैसी केमिस्ट्री नहीं है जैसी मुलायम सिंह के साथ रही है.

   लखनऊ मध्य सीट से जीते रविदास मेहरोत्रा भी नेता विरोधी दल की रेस में आगे दिख रहे हैं। कड़े तेवर और संघर्षों वाले नेता रहे हैं। कोरोना काल में भाजपा सरकार को जमकर घेर चुके हैं।नेता विरोधी दल बने तो भाजपा सरकार की घेरेबन्दी तगड़े से कर सकेंगे।

वैसे माता प्रसाद पांडेय, जय प्रकाश अंचल और अवधेश प्रसाद जैसे दिग्गज नेता भी जीतकर आये हैं। मुस्लिम बिरादरी से भी शाहिद मंजूर, फरीद महफूज़ किदवई और महबूब अली जैसे सीनियर लीडर भी जीतकर आये हैं, लेकिन इनकी संभावना ना के ही बराबर है. नरम हिन्दुत्व वाली सपा ऐसा करने से बचेगी. बता दें कि विधानसभा में नेता विरोधी दल की बहुत हैसियत होती है। उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा रहता है। कैबिनेट मंत्री की ही तरह उसे सारी सुविधायें भी मुहैया होती हैं।

बात शिवपाल यादव की कि जाए तो माना जा रहा है कि शिवपाल सिंह यादव को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। हालांकि समाजवादी पार्टी ने अभी इसकी अधिकृत पुष्टि नहीं की है। शिवपाल सिंह यादव जसवंतनगर से विधायक हैं। उन्होंने 90 हजार मतों से जीत दर्ज की। शिवपाल को 158531 मत मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी विवेक शाक्य को सिर्फ 68454 मत। इस तरह शिवपाल 90077 मतों से विजयी रहे। उन्हें 62.89 फीसदी मत थे। लब्बोलुआब यह है कि अखिलेश यदि नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभालते हैं तो इससे सपा के नेताओं/कार्यकर्ताओं का तो मनोबल बढ़ेगा ही,पार्टी में एकजुटता भी दिखाई देगी।

अजय कुमार, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार, मो-9335566111

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