व्यंग – दया की दुकान
दयाराम जी ने एक हट्ठे कट्ठे भिखारी को भीख देने के लिए बुलाया और कहा – आप शरीर से तो हृष्ट पुष्ट हो, फिर भी भीख मांगते हो, कुछ काम धंधा क्यों नहीं करते?
भिखारी बोला – धंधा ही तो करता हूँ साहब, भीख मांगना ही मेरा धंधा है।
भीख मांगना ही धंधा है सुनकर दयाराम जी को आश्चर्य हुआ, किन्तु उन्होने भिखारी से फिर पूछा – भीख मांगना भी कोई धंधा होता है क्या ! धंधा वो जिसमे कोई फायदा होता है, इस धंधे में क्या फायदा?
भिखारी बोला – बाबूजी आप जिसे भीख कहते है उसे हम “दया की दुकान” कहते है और आप जैसे दयावानों की जरूरत के लिए ही हम यह धंधा करते हैं। रुपये 1/- से लेकर रुपये 10/- तक की दया दिखाने वाले हमारे मुख्य ग्राहक होते हैं।
दयाराम जी ने फिर कहा – धंधे या मजदूरी में मेहनत लगती है भीख मांगने में तुम्हारा क्या लगता है।
भिखारी का जवाब सुनकर दयाराम जी भौंचक्के रह गए, भिखारी बोला – आप समझते होंगे हमे भीख मांगने में कुछ नहीं लगता, यह आपका भ्रम है बाबूजी। अब सुनिए – प्रथम तो हमें सर्दी, गर्मी, बरसात में लगातार पाँच सात घंटे बैठना पड़ता है या खड़े होकर सबके सामने हाथ फैलाना होता है जिसमे कम मेहनत नहीं लगती है! दूसरे, भीख मांगने में भी कौशल की आवश्यकता होती है जिसके लिए भिखारी को कठिन और प्रताड़ना युक्त प्रशिक्षण लेना होता है।
तृतीय, भीख मांगने के नए नए तरीके ढूँढना होते है, जैसे कभी हाथ पर तो कभी पैर पर पट्टा बांधना अथवा बैसाखी लेकर लँगड़े बनने का नाटक करना या कभी छोटे बच्चे को बीमार बनाकर गोद में उठाना, दयावान ग्राहकों से पाँच से दस रुपये निकलवाने के लिए हमे फटे पुराने और मैले कुचैले कपड़े भी पहनना पड़ते हैं। और चौथा, अन्य धंधों में दुकान की तरह ही हमें भी अपने ठीये का किराया देना पड़ता है, भीख के बड़े दूकानदारों के यहाँ कमीशन के आधार पर काम करना पड़ता है, गुंडों को हफ्ता देना पड़ता है और पुलिस को रिश्वत भी देना पड़ती है।
दयाराम जी ने एक और प्रश्न किया – जब आपके खुद खाने और रहने के ठिकाने नहीं रहते हैं तो आप ये बच्चे क्यों पैदा करते है?
हमारी दया की दुकान में बच्चों की मांग सबसे अधिक होती है, हमारे लालची ग्राहकों को लगता है कि वे इन बेसहारा बच्चों को एक रुपया देंगे तो ऊपरवाला इन दयावान महाशय को दस लाख तो देगा ही देगा। बच्चे तो यदि नौ माह से कम अवधि में होने लगें तो हमें आपके बच्चे चुराने की आवश्यकता भी ना पड़े।
अब दयाराम जी ने कहा अच्छा एक अंतिम प्रश्न – इस धंधे की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?
भिखारी अब बड़े ही गर्व से कहने लगा – साहब हमारे देश में कौन भीख नहीं मांग रहा है, नगर पालिकाएं राज्य सरकारों से, राज्य सरकारें केंद्र सरकारों से और केंद्र सरकार वैश्विक संस्थाओं/देशों से भीख मांग रही है, चुनाव में नेता वोट की भीख मांग रहे है, लड़के वाले दहेज की भीख, नौकरी वाले वेतन वृद्धि की, बेरोजगार रोजगार की, और देश की जनता सरकारों से सस्ता राशन, सस्ता तेल, फ्री बिजली, पानी, मुफ्त इलाज, मुफ्त आवास, कर्जा माफी, अनुदान पता नहीं क्या क्या।
हम तो सिर्फ एक-दो रुपये ही मांग रहे हैं साहब।
दयाराम जी को अब पता चल चुका था कि वह भिखारी नहीं “दया की दुकान” का दुकानदार है, इसलिए अपनी दया की राशि जेब में ही रखकर चुपचाप घर लौट आए।