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रमन स्पेक्ट्रम- (राष्ट्रीय विज्ञान दिवस विशेष)

रमन स्पेक्ट्रम- (राष्ट्रीय विज्ञान दिवस )

लेखिका -निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश

विज्ञान शब्द ही व्यहारिक जीवन का क्रमबद्ध ज्ञान है जिसमे जागरूकता , जुनून ,अन्वेषणों में धैर्य, सहनशीलता व मानवीय पहलुओं को आवतरित करता हैं जो सत्य हैं। 28 फरवरी वर्ष 1986 को सर चंद्रशेखर वेंकटेरमन ने रमन प्रभाव की खोज की जिसे विज्ञान प्रोधोगिकी मंत्रालय ने स्वीकारा व वर्ष 1930 में चंद्रशेखर वेंकटरमन को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ ।

राष्ट्रीय विज्ञान व प्रोधोगिकी संचार परिषद ने इसे राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने हेतु घोषित किया । जिसका उद्देश्य विज्ञान द्वारा समाज मे जीवन स्तर खुशहाल बनाना ।जिससे विज्ञान से होने वाले लाभ के द्वारा समाज मे वैज्ञानिक सोच व जागरूकता उत्पन्न करना।

इस प्रयोग में सी वी रमन ने दर्शाया कि जब कोई प्रकाश किसी द्रव या ठोस माध्यम से गुजरता हैं तो उसमें आपतित प्रकाश अत्यल्प तीव्रता के साथ कुछ अन्य वर्णों का प्रकाश देखने मे आता हैं जो सात रंगों में विभक्त हो जाता हैं। सर सी. वी.रमन ने 60 से ज्यादा विभिन्न द्रवों पर प्रयोग दोहराने के बाद यह सुनिश्चित हो गया कि सभी द्रव रमन स्पेक्ट्रम दर्शाते हैं।

सर सी वी रमन का वैज्ञानिक जीवन कई चुनोतियो से भरा रहा है लेकिन विज्ञान चुनोतियो में सार्थक सम्भावनायें तलाश ही लेता हैं इन्ही सबके चलते तब भारत मे विज्ञान अवसर कम ही प्राप्त होते थे क्योंकि कई देशद्रोही ताकते भारतीय वैज्ञानिकों की खोजो को भी विदेशों में बेच देती थी। ऐसे में सर सी.वी.रमन भी लेखपाल की पोस्ट तक आ गए थे ।कहाँ विज्ञान का प्रचुर मस्तिष्क अंको के आकंड़े को संतुलित करने बैठा दिया गया था? लेकिन विज्ञान अवसर ढूंढ ही लेता हैं वह आर्थिक सम्पन्नता नही वरन समाज मे बेहतर की चाह को स्वीकारता है ऐसा ही कुछ वेंकटेरमन के साथ भी हुआ ।

वर्ष 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान में प्राध्यापक बनाये जाने का अवसर मिला तो सर रमन ने लेखपाल की नोकरी छोड़ आधी तनख्वाह को स्विकारते हुए इस पद को इसीलिए स्वीकारा क्योंकि यहां प्रयोगशाला में प्रयोग आसानी से करने को मिल सकेंगे।तदोपरान्त विश्व के कई वैज्ञानिकों के साथ अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र लिखे ।

वर्तमान में कोरोना संक्रमण ने भी भारत मे वैक्सीनशन व अन्य हितकारी दवाओं द्वारा संक्रमण की तीव्रता से बढ़ती दर को कम किया । तब प्रकल्पित हुआ भारत मे प्राचीनतम विज्ञान की स्थिति क्या थी ये सत्य हैं प्रक्रति से वेद व वेद से विज्ञान बना है ।इन्ही विभिन्न आयामो में इस एक विषय से सैकड़ो शाखाएं अवतरित हुई जिनमे विद्यालयीन स्तर तक जीवविज्ञान , भौतिक व रसायन ,कृषि मुख्य रहे आगे बढ़ते बढ़ते ये विस्तृत रूप लेते है ।

अंचल में इसी विषय को पढ़ते पढ़ाते ये भी जाना कि आंचलिक छात्रो में विज्ञान के क्षेत्र में सम्भावनाएं अपार हैं क्योंकि वह प्रक्रति से निकट व तथ्यपरक जीवन जीते हैं। ऐसे में अन्वेषण हेतु सम्भावनाएं विस्तृत रूप ले सकती हैं लेकिन साक्ष्य ये कहता हैं इनमे ना तो विज्ञान हेतु रुचि उतपन्न की जाती ना ही इनसे सम्बन्धित योजनाओ का क्रियान्वयन इनके समक्ष किया जाता । तो ऐसे में ये विषय सिर्फ इनकी नजर में डॉक्टर व इंजीनियर बनने तक का स्वप्न सीमित हैं।

जबकि भारत मे विज्ञान को पुरातन समय मे देखा जाए तो सोने की चिड़िया कहे जाने का कारण भी यही था क्योंकि यहां चिकित्सा, शिक्षा , कृषि आदि के वैज्ञानिक पहलू मौजूद थे ।इसी क्रम में राव साहब कृष्ण जी वञे ने 1891 में पुना से इंजीनियरिंग के पश्चात भारतमे विज्ञान सम्बन्धी खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बकं जोशी के पास अगस्तय संहिता के कुछ पन्ने मिले जो शक सँवन्त 1550 के करीब के थे ।

आगे चलकर इन्ही पन्नो को नागपुर सँस्कृत विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ एम सी सहस्त्रबुद्धे ने पढ़ा और समझा कि अगस्त्य संहिता का ये वर्णन डेनियल सेल से मिलता जुलता हैं।अतः नागपुर इंजीनियरिंग के प्राध्यापक डॉ पी पी होले को दिया डॉ होले ने उस सँस्कृत शब्द के सूत्रों को समझ उस पर शोध कार्य किया तब जाना कि वास्तव में ये एक सेल को प्रतिरूपित करता श्लोक हैं।

सँस्थापये मृण्मये पात्रे ताम्रपत्र सुसंस्कृतम
छादयेच्छिखिग्रीवेंन चादर्भि : कांठापांसुभी:
दस्तालोष्टो निधातव्य: पारदाच्छदातिस्तत:
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणासँञितम

अगस्त्य संहिता अनुसार अर्थ है एक मिट्टी के बर्तन में ताम्र पटिका डाले व शिखिग्रीवा डाले फिर बीच मे गीली काष्ठ पांसु लगाए ऊपर पारा तथा जिंक डाले तब तारो को मिलाए जिससे मित्रवरुणंशक्ति का उदय होता हैं।अगस्तय संहिता सिर्फ एक नही कई ग्रंथ व वेद बताते है कि प्राचीन समय से विज्ञान भारत वर्ष में व्यपात था जहां दिखावा कम सिर्फ अन्वेषण व शोध चहु ओर प्रगति के रूप में व्याप्त था ।विज्ञान हर समस्या का समाधान हैं क्योंकि समस्या में शोध व सत्यरूपित परिणाम को तलाशता हैं।

जिम्मेदारी हमारी

विज्ञान का उद्देश्य सिर्फ समाज के लोगों का जीवन स्तर अधिक से अधिक खुशहाल बनाना व विद्यार्थियों में वैज्ञानिक सोच व जागरूकता उतपन्न कर लाभदायी परिणामो को देश के विकास में समर्पित कर स्वयं की देश की प्रगति को फ़लीभूत करना है इसे समझे और समझाएं।

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