मर रहे हैं, युद्ध में फंस रहे हैं हमारे छात्र, शिक्षा की लाचारी का मुद्दा नहीं, लानत है जेहालत भरे चुनावी मुद्दों पर !
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मर रहे हैं, युद्ध में फंस रहे हैं हमारे छात्र, शिक्षा की लाचारी का मुद्दा नहीं, लानत है जेहालत भरे चुनावी मुद्दों पर !
– नवेद शिकोह
कालेज, यूनिवर्सिटी छोड़िए, स्कूली बच्चों की पढ़ाई की फीस ने मां-बाप की कमर तोड़ दी है। स्कूल लूटते रहे, सरकारें खामोश रहीं। कोरोना में बच्चे सालों घर पर बैठे रहे, मां-बाप जेवर बेचकर स्कूलो़ की फीस भरते रहे। इस कठिन समय में बच्चों की पढ़ाई और मंहगी फीस के संकट को कम करने के लिए किसी सरकार ने क्या कोई नीति बनाई ? क्या मंहगी शिक्षा के लिए कोई सब्सिडी दी गई ?
भारत के विश्वविद्यालयों की लाखों सीटों विदेशी छात्र घेरे हैं, भारत के लाखों बच्चों को अपने देश के विश्वविद्यालयों में एडमीशन (सीट) नहीं मिलता। घर और जेवर बेचकर भारतीय बच्चों के अभिभावक मजबूरीवश अपने बच्चों को विदेशी यूनीवर्सिटीज में मंहगे खर्चे से पढ़ने के लिए भेजते हैं। बच्चे दरबदर होते हैं। नस्लवाद का शिकार होते हैं, भारतीय संस्कारों से दूर होते हैं। युद्ध में फंस जाते हैं, लाठियां खाते हैं, जान से मारे जा रहे हैं। किडनेप होते हैं। छात्राएं बलात्कार का शिकार होती हैं।
सरकारों को शायद ये भी आंकडा नहीं मालुम कि हमारे देश-प्रदेश के कितने छात्र-छात्राएं पलायन कर विदेश में पढ़ने गए हैं। आश्चर्य है कि जिन्ना, चर्बी और बुलडोजर जैसे विध्वंसकारी और फालतू के मुद्दों पर चुनावी शोर हमेशा होता है। बच्चों की पढ़ाई, छात्रों को समुचित शिक्षा न मिलने से उनके विदेश पलायन, मज़दूरों को मजदूरी न मिलने से उनके पलायन जैसे जायज मुद्दे पर चुनाव नहीं होता।
लानत है ऐसे चुनावों पर।