भारतीय महिला वैज्ञानिकों का परचम
निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश
(भारतीय महिला वैज्ञानिक दिवस विशेष)
नारी सृष्टि की रचियता रही हैं । भारत वर्ष में प्राचीन समय से ही नारी को देवी के रूप में पूजा जाता रहा हैं। जहा देश हो या समाज व परिवार वर्तमान में पुरुष का साथ देते हुए कंधे से कंधा मिलाकर चहुओर विकास का परचम लहराया हैं ।
भारत प्राचीन समय से ही सशक्त ग्रामीण अंचल की पहचान रहा है और यही से कई संघर्ष रत महिला विदुषिया विज्ञान की अनूठी दुनियां में प्रवेश करी हैं। वेदो से विज्ञान की रचना हुई हैं और वेद प्रक्रति से तैयार हुआ है इन सभी मे महिला की भूमिका को समझना जरूरी हैं वैसे भी महिलाएं प्रक्रति के सबसे निकट रहती हैं भावुक व संवेदनशील होने के साथ नवाचार रचनात्मकता व सफल पाक कला या पाकशास्त्री होती हैं ।
प्रयोगशीलता के रूप में आज महिलाएं अग्रणी रूप से महिला वैज्ञानिक के रूप में नित नए अंवेषण कर रही हैं।एक समय था जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना खराब माना जाता था लेकिन सभी चुनोतियाँ व विकट परिस्थितियों को स्वीकारते हुए अपने लक्ष्य को पूर्ण किया ये अक्सर देखने में आया है कि कार्यक्षेत्रों में जेंडर सेंसिटिव या इक्विलिटी की बात जहां सिर्फ नाम मात्र की रही हैं।
तो फिर बात जब भारतीय महिला वैज्ञानिकों की हो तो विचारणीय असंख्य चुनोतियाँ अपने जीवन मे स्वीकारी होगी और ध्यान सिर्फ अपने उद्देश्यों पर केंद्रित किया होगा ।
एक वैज्ञानिक का सारा समय व ध्यान सिर्फ अपने प्रयोग के विषय पर केंद्रित रहता हैं एक जीवविज्ञान शिक्षिका के रूप में रहते हुए समझती हूं कि प्रयोग एक बार मे सफल नही होतेl
अपितु कई बार प्रयोग कर अवलोकन कर सफल परिणाम निकलने रहते है जिसमे कई घण्टे या कई दिन या महीने भी लग सकते है । फिर एक वैज्ञानिक को तो खोज में कई वर्ष लग जाते है आसान नही है विज्ञान की खोज या शोध करना बहुत धैर्य