भारतीय कृषि के मानक
कमलेश डाभी(राजपूत) पाटण, गुजरात
कृषि मनुष्य की ज़रूरत है, किंतु समाज के लिए इतना सब करने वाले किसान की दशा निराशाजनक है। जिस तरह हर देश की प्रगति के लिए वैज्ञानिक बहुत योगदान देते है, कुछ उसी तरह किसान भी एक देश के विकास में बहुत योगदान देते है। देश की आज़ादी को 75 साल पूरे होने वाले है, लेकिन आज भी उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। कृषि में जो पैदावार होती है, उसका पूरा मूल्य उनको नहीं मिल पाता।
कुछ आंकड़ो के अनुसार भारत मे एक कृषि मजदूर की औसत वार्षिक उत्पादकता 162 डॉलर, नॉर्वे में 973 डॉलर और यूएसए में 2408 डॉलर आंकी गयी है। भारत का लगभग एक चौथाई हिस्सा सूखे की चपेट में है। कही न कही इस पिछडाव के कारण सरकार की भागीदारी यहाँ बहुत माईने रखती है। जैसे कृषि का अभिन्न अंग है- किसान , वैसे ही भारत का अवियोज्य बल है- कृषि। इस बल को सहयोग करता है कृषि योजनाए अथवा कार्यक्रम।
इन योजना का काम , उन प्रशनो का उत्तर देना होता है। जैसे कि- कैसे देश को इस दिशा में आत्म निर्भर बनाया जाए? भारत एक विविध भूभाग तथा संस्कृति वाला देश है। यहा लोगो के भाषा और भेस – भूषा के साथ साथ कृषि तथा उसकी प्रणाली में भी बदलाओं आती है।
हमारी भारतीय कृषि मुख्यतः मानसून (बारिश) पर निर्भर रहती है। अगर मानसून अच्छा आया तो कृषि अच्छी होती है अन्यथा नहीं, जिसके कारण भारत में किसानों को विषम परिस्थितिओ से गुजरना पड़ता है। किसान प्राकृतिक आपदाओ से सबसे ज्यादा प्राभावित होता है। साल 2014 – 2015 भारत ने सूखा का कहर झेला तथा हर साल भारत के भिन्न राज्य बाढ़ से प्राभावित रहते है।
आज कृषि लगभग 58% सम्पूर्ण देश के मुख्य जनसंख्या की प्राथमिक आजीविका है किन्तु उसको सही प्रकार से महत्व न देना किसान आत्महत्या जैसी विकट समस्याओं को उत्पन्न कर देता है। किसान अपने खून पसीने से फसल को उगाता है और अपनी वक्त, मेहनत एवम् धन के सहायता से लक्ष्य को प्राप्त करता है। अगर किसानो को अपने कर्म का उचित पैसा और बाजार न मिले तो यह उनके साथ विश्वासघात है।
योजनाओं को इस विविधता के अनुकूल ही बनाना चाहिए ताकि बड़े समूह पे प्रभाव का विस्तार हो। कारणवश, सरकार को इन समस्याओं का समाधान इस क्रम में बनाना आवश्यता है कि सभी वर्गों (विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) को सहायता, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में, भिन्न सिचाई प्राणी, फसल बीमा बागवानी, मृदा स्वास्थ्य, कृषि अवसंरचना इत्यादि को अपने योजनाओं से महत्वता दी है।
इन बातों को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है किस तरह भारत सरकार कृषि के दाता को सहयोग देती है। सरकार ने हर उपयुक्त किसान वर्ग के लिए उनके अनुकूल योजनओं का निर्माण किया – जैसे कि आर्थिक सहायता के लिए , कृषि अवसंरचना एवं कृषि और उससे कुछ संबंधित गतिविधियों के लिए।
आर्थिक सहायता
कृषि में बढ़ते लागत खर्च तथा वैज्ञानिक तरह से खेती करने के लिए पूंजी की जरुरत होती है | इसके लिए किसान के पास समय पर पूंजी मौजूद नहीं रहती, जिससे किसान समय पर बीज, उर्वरक कीटनाशक तथा जुताई के लिए पैसे उपलब्ध नहीं हो पाते है | इससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अधिकतर किसान अपने कृषि लागत को पूरा करने के लिए बैंको तथा बड़े बड़े साहूकार से उधार लेते है।
यह उधार उनके गले की हड्डी बन जाती है और वो ऋणजाल में फस जाते हैं। भारत मे किसानों की स्तिथि ऐसी है कि, वो अपनी जीवन की मौलिक आवश्यकताएं तक पूरी नही कर पा रहे । इन्ही कुछ कारणों को मद्देनजर रखते हुए, भारत सरकार ने कई ऐसी योजनाएं बनाई है जिनसे किसानो की आर्थिक व्यवस्था एवं कृषि में सुधार आये। जैसे कि, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत केद्र सरकार प्रति वर्ष 6,000/- रुपए तीन समान किस्तो में सीधे किसानों के बैंक खाते में भेजेगी।
सरकार ने 1 जनवरी 2022 को लगभग 10.09 करोड़ लाभार्थियों के खातो में भेजा गया। इस योजना के लाभार्थि वे सब किसान है जिनके पास कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है जिसका उद्देश्य है कि किसान अपने छोटे खेत से संबंधित गतिविधियों को पूरी कर सके जैसे बीज, उर्वरक कीटनाशक तथा जुताई इत्यादि ।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना योजना किसानों को जोखिम-रहित खेती करने का आत्म बल देता हैं। यह फसल के खराब होने की स्तिथि में बीमा सुरक्षा और किसानों की आय को स्थिर करेगा। सभी खाद्य और तिलहन फसल तथा बागवानी फसले जिनकी उपज का आंकड़े उपलब्ध है।
इस योजना में प्रतिवर्ष के अनुसार औसतन 5.5 करोड़ आवेदन होते है, जो किसान को नामांकन सुविधा प्रदान करता है। किसी भी घटना के 72 घंटे के भीतर फसल के नुकसान को सूचना देना आसान बताता है। पिछले तीन सालों में इस योजना में 13,000 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा हुआ है, लेकिन जब प्राकृतिक आपदा आई, तो किसानों को प्रीमियम से साढ़े 4 गुनी राशि करीब 64,000 करोड़ रुपये मुआवजा के रूप में प्राप्त हुआ।
प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना, जो कि एक पेंशन योजना है, जिससे देशभर में अब तक 17,96,137 किसान जुड़ चुके है। इस पेंशन का लाभ लेने के लिए किसान के पास 2 हेक्टेयर से कम खेतीहर जमीन होनी चाहिए। जिसके लिए किसान 18 वर्ष की आयु में मासिक प्रीमियम 55/- रुपए जमा करने के बाद, 60 वर्ष की आयु में लाभार्ती किसान को 3,000 रुपये मासिक पेंशन मिलेगा। और 40 वर्ष की आयु में किसान को मासिक प्रीमियम 200/- रुपए का जमा कराना पड़ेगा।
कुछ ऐसी ही बहुत सी योजनाए सरकार ने कृषि के दाता किसानों के लिए बनाई है। हालांकि इन योजनाओं की अपनी अपनी चुनौतियां भी है। लेकिन हम इस वास्तविकता से इनकार नही कर सकते कि ये योजनाए किसानों को कई रूप से आर्थिक सहायता प्रदान करता है जो किसान को बीज, उर्वरक कीटनाशक तथा जुताई की सम्माग्री के प्राप्ति में मदद करेगा। अगर इन योजनाओं के खर्चों में कटौती या कमी की जाती है तो कृषि अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
कृषि अवसंरचना
किसानों का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न हो पाना, उनकी कृषि पर बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव डालता है। अच्छी कृषि के लिए अच्छे बीज, सिचाई की सटीक व्यवस्था, मृदा परीक्षण, बिजली की पूर्ण रूप से व्यवस्था अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। जैसे हड्डियाँ मनुष्य के शरीर को ढांचा देती है ठीक उसी प्रकार कृषि में आधारभूत संरचना ज़रूरी है। आंकड़ो के अनुसार भारत में गेहूं प्रति हेक्टेयर लगभग 27 क्विंटल का उत्पाद होता है जबकि फ्रांस में 71.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और ब्रिटेन में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है।
इन आंकड़ो में अंतर होने का मुख्य कारण सही रूप से आधारिक संरचना का ना उपलब्ध होना है। देश के 17% शहरों में पानी की कमी होने के कारण उसका कृषि पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। आज कल वर्षा की अनिश्चिता के कारण सिंचाई आवश्यक है, जिससे कि फसल की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
पानी की कमी से खेत बंजर हो जाता है। देश के विभिन्न जिलों में होने वाली पानी के कमी को मद्देनजर रखते हुए 1 जुलाई, 2015 को ‘हर खेत को पानी’ के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुवात हुई।
यदि देखे तो कृषि सीधे तौर पर मिट्टी से जुड़ी है। किसानों की उन्नति मिट्टी पर निर्भर करती है, मिट्टी स्वस्थ तो किसान स्वस्थ। इसी सोच के आधार पर भारत सरकार ने किसानों के लाभ हेतु राष्ट्रव्यापी “मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना” का शुभारंभ किया। सरकार ने इस योजना के तहत पुरे भारत के 14 करोड़ से भी ज्यादा किसानों को जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
इस योजना में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किया जाता है, जिसमें उनके खेत की मिट्टी की पूरी जानकारी लिखी होती है। जैसे उसमे कितनी -कितनी मात्रा किन -किन पोषक तत्वों की है और कौन- कौनसा उर्वरक किसानों को अपने खेतो में उपयोग करना होगा। यह योजना भारत के हर क्षेत्र में उपलब्ध है। हर किसान को उसकी मृदा का स्वास्थ्य कार्ड प्रति 3 वर्ष में दिया जाता है।
जिससे किसान अपने खेत की मिट्टी के गुणों को पहचान सकते है। कितने मात्रा में पौषक तत्व है, मिट्टी कितनी उपजाऊ है और उनके खेत के लिए किस प्रकार की फसल बेहतर है ये समझ सकते है। पौषक तत्वों के कमी को पूरा करने के लिए और खाद के सही उपयोग के लिए देश के सभी किसानों को हर तीन साल में ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ का बीमा दिया जाता है। इस योजना का प्रसंग है – स्वस्थ धरा खेत हरा।
वर्तमान में लगभग 42 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। जबकि देश की जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 15 प्रतिशत से भी कम है इसलिए ये और भी आवश्यक हो जाता है कि कृषि अवसंरचना शीघ्र गति से प्रगति करे। इस ओर केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम लिया गया है ‘कृषि अवसंरचना कोष’ गठित करके। किसानों को बड़ी संख्या में गोदाम की सुविधा प्रदान की ज़रूरत है। सरकार को एक उचित और व्यवस्थित कृषि अवसंरचना के लिए असरदार सुधार लाना चाहिए।
कृषि और संबंधित गतिविधियों
कृषि का अर्थ केवल खेतीबाड़ी नही है, बल्कि इसमें उससे संबंधित व्यवसाय भी आते है जैसे मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन एवं बागवानी इत्यादि शामिल है। आज भारत दूध उत्पादन में विश्व में अवल स्थान है। इस गतिविधि से दूध उत्पादक के जीवन स्थिरता, आजीविका और आर्थिक विकास होती है। भारत मे कई राज्य ऐसे है जहाँ लोग मुख्य रूप से इन व्यवसाय में जुड़े हुए है ।
अतः इनकी परिस्थित को मद्देनजर रखते हुए, सरकार ने इनके लिए भी कुछ योजनाए बनाई है। भारत का दूसरा सबसे बड़ा मछली पालक और चौथा सबसे बड़ा मछली निर्यातक देश है, भारत में काफी संख्या में लोग मछली पालन के काम से जुड़े हुए हैं। मछली पालन को प्रोत्साहित के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का निर्माण किया।
इसके अंतर्गत सरकार 3 लाख रुपए का लोन, किसानों को तालाब, हैचरी, खाने की मशीन, क्वालिटी टेस्टिंग लैब एवं साथ ही मछली रखने के लिए और उनके संरक्षण की भी व्यवस्था दी जाती है। यह प्राथमिक स्तर पर लगभग 280 लाख लोगों को आजीविका प्राप्त करने में सहायता करता है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के अनुसार, भारत मे वर्ष 2005-06 की तुलना में अब शहद उत्पादन 242% बढ़ गया है, वही निर्यात 265% से वृद्धि हुई है। शहद के निर्यात में बढ़ोतरी देखकर, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक योजना के लिए 500 करोड़ रूपए का आवंटन किया है।
मधुमक्खी पालन कि आर्थिक स्तिथि को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन का निर्माण किया और वर्ष 2024 तक किसानों की आय का दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है।
जैसे जैसे कृषि संबंधित समस्याएं सामने आ रही है, वैसे वैसे सरकार किसानों के लाभ के लिए नए नए कदम उठा रही है। ऐसे में कृषि क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा लिए गए हर एक निर्णय का देश में व्यापक असर पड़ता है। किसानों की माँग मुफ्त बिजली, पानी नही है, बल्कि बिजली की निर्बाध आपूर्ति के लिए है । जिसके लिए वे पूर्ण भुगतान करने के लिए तैयार है। इस दिशा में हमारी सरकार ने भिन्न – भिन्न महत्वपूर्ण कदम लिए गए है।
किन्तु केवल योजनाएं बनाना आवश्यक नही, आवश्यक है कि योजना के मार्ग में स्तिथ विभिन्न बाधाओं को समाप्त कर इसे अधिक से अधिक किसानों के लिए लाभदायी बनाया जा सके। किसान अपनी कर्म यात्रा में विभिन्न प्राकृतिक अनिश्चितता पे निर्भर रहता है। अगर हम इस अनिश्चितता को निश्चित के ओर ले जाने का काम करे, तो किसानों की परिस्थिति बेहतर होगी।
वर्तमान सरकार ने कृषि सर्वागीण विकास के लिए सभी वर्गों (विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) को सहायता , सौर ऊर्जा के क्षेत्र में, भिन्न सिचाई प्राणी, फसल बीमा बागवानी, मृदा स्वास्थ्य, कृषि अवसंरचना इत्यादि को अपने योजनाओं से महत्वता दी है। वर्तमान परिस्थितियों में वैज्ञानिक विधि, तकनीक कौशल एवं अत्यधिक मशीनों के प्रयोग एवं अन्य चीजों को किसान और कृषि को साथ लाना है। यह सब किसान के मानक जीवन मे सुधार एवम उत्थान का कार्य करेगा साथ ही साथ क्षेत्रीय विषमताएं कम करेगा।