‘बर्फ’ के बारे में आप भी नहीं जानते होंगे ये रोचक तथ्य, यहां पढ़ें – अर्श से फर्श तक ‘बर्फ की दास्तां’
कानपुर, फीचर डेस्क। पहाड़ों पर बर्फबारी के नजारे आम हो गए हैं। बर्फबारी का लुत्फ उठाते सैलानियों की तस्वीरें अखबारों में आने लगी हैं। दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं जो बर्फबारी के लिए ही मशहूर हैं, लेकिन किसी को पक्की खबर नहीं कि बर्फ कहां से आई मगर इतना जरूर कहा जाता है कि सदियों पहले हिमयुग था।
मतलब दुनिया ने बर्फ का कंबल ओढ़ रखा था। इसी कंबल में से धीरे-धीरे जिंदगी एक फूल की तरह जन्मी और आज बर्फीले मौसम में मस्ती करने दुनिया में न जाने कहां-कहां से लोग सैर करने जाते हैं! कहते है 13वीं से 17वीं शताब्दी तक एक हिमयुग आया, जिसमें हिमालय का एक बड़ा हिस्सा दब गया था। विज्ञानियोंं की मानें तो केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा तथा सुरक्षित रहा।
बर्फ को 421 तरह से पुकारा जाता है। कहते हैं- उत्तरी ध्रुव में रहने वाले बर्फ के आदिवासी इनुइट लोगों ने बर्फ के 50 नाम रखे हुए हैं। जिस नाजुक फाए जैसी लगने वाली स्नोफाल के खूबसूरत नजारे हम देखते हैं, वह वास्तव में क्रिस्टल जैसी होती है, जिसके आर-पार रोशनी के गुजरने की वजह से वह सफेद दिखती है।
जब तापमान शून्य से 2 डिग्री कम होता है तो बर्फ जमती है। इससे भी कम तापमान होने पर सपाट क्रिस्टल बनते हैं। अलग-अलग तापमान पर जब हिमपात होता है तो ये क्रिस्टल रोयेंदार आकार के दिखने लगते है। स्नोफाल के वक्त 35 अलग-अलग प्रकार के हिमकण बनते हैं, जो बड़े घनाकार टुकड़ों से लेकर पंख जैसे पतले आकार के होते हैं। अधिकांश लोगों के लिए यह बर्फबारी सुखद एहसास है, मगर कुछ बर्फबारी से डरते भी हैं।
इस डर को कयानोफोबिया कहते हैं। ऐसे लोग बर्फबारी होते ही सिहर जाते हैं, उन्हें लगता है कि वे बर्फ के नीचे दब जाएंगे।
अब बात करते है एस्किमो की। एस्किमो आर्कटिक क्षेत्रो में भी पाए जाते हैं। इन्हें ठंड से घिरे मौसम में रहने की आदत होती है। एस्किमो इग्लू का निर्माण करते हैं। इसमें बर्फ के ठोस टुकड़ों को आपस में जोड़कर गुंबदनुमा आकर के छोटे-छोटे घर बनाए जाते हैं।
जिस तरह रजाई या स्वेटर हमारे शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देते, ठीक वैसे ही इग्लू की बनावट होती है। बाहर की तुलना में अंदर से ये इग्लू 100 डिग्री तक अधिक गर्म हो सकते है। एस्किमो अमेरिका का एक मूल शब्द है जिसका अर्थ है कच्चा मांस खाने वाला व्यक्ति।
अलग-अलग एस्किमो की बोली और भाषा भी अलग होती है। अब बर्फ में पेड़ पौधों का नामोनिशान तो होता नहीं इसलिए एस्किमो मांस खाकर जिंदा रहते है। बर्फीले इलाकों में बहुत से जानवर बर्फ के भीतर गहराई तक खुदाई करके छुपने के ठिकाने बना लेते हैं।
बर्फ जमाने वाली मशीन पहली बार 14 जुलाई, 1550 को प्रदर्शिंत की गई थी, जिसके बाद बर्फ के कई प्रयोग होने लगे। इसमें एक रोमांचक प्रयोग यह भी था कि फ्रंटियर मेल नामक रेलगाड़ी, जो अब 91 साल की हो गई है, अब गोल्डन टेंपल के नाम से चल रही है। इसमें देश की पहली एसी बोगी थी। इसमें ठंडक के लिए बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं।
यह ट्रेन मुंबई से अफगान बार्डर पेशावर तक की लम्बी दूरी तय करती थी। स्वतंत्रता आंदोलन की गवाह रही यह ट्रेन अंग्रेज अफसरों के अलावा आजादी के दीवानों को भी उनकी मंजिल तक पहुचाती थी। महात्मा गांधी तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी इस ट्रेन में सफर कर चुके हैं।
आज बर्फ का नाम सुनते ही हमें बर्फ का गोला, आइसक्रीम, पेप्सी कैंडी तथा ढेरों पेय पदार्थ याद आ जाते हैं।
मगर बात उस वक्त की है जब 1671 में पहली बार ब्रिटेन के शासक चाल्र्स द्वितीय ने आइसक्रीम खाई तो वह इसके स्वाद के इतने दीवाने हो गए कि उन्होंने आइसक्रीम बनाने वाले को रेसिपी गुप्त रखने के लिए आजीवन पेंशन दी। अब तो बाजार में आइस क्रीम के कई फ्लेवर मौजूद है लेकिन इसके आविष्कार की कहानी भी कम रोचक नहीं है।
आइसक्रीम का पहला लिखित रिकार्ड सीरिया का है। 1789 ईसा पूर्व पत्थर और अंकित प्राचीन लिपि के अनुसार मारी के राजा ने बर्फ का घर बनाया था। पहाड़ों से लाई बर्फ इस घर में जमा दी जाती थी। पर्शियन लोग भी सर्दियों की बर्फ को बर्फ के घरों (यखचल) में सालभर संभालकर रखते थे। ये लोग फलों के रस को इन बर्फ के घरों में जमाकर रखते थे।
ठंडक देने के अलावा भी बर्फ के काफी फायदे होते हैं। जैसे बच्चे कड़वी दवा खाने में जी चुराते हैं तो बर्फ का छोटा सा टुकड़ा उनके मुंह में फिरा दें, फिर दवा स्वाद में कड़वी नहीं लगती। अपच में बर्फ का थोड़ा सा टुकड़ा खाने से खाना शीघ्र पच जाता है। मेकअप के पहले किसी मलमल के कपड़े में बर्फ लपेटकर इसे चेहरे पर घुमा लेने से त्वचा में कसावट आ जाती है, जिससे चेहरे के निखार बढ़ जाता है।