प्रकृति के आंचल में देवताओं एवं पितृयों का वास जिनकी सेवा से कृपापात्र के भागी बने
स्नेहा दुधरेजीया, पोरबंदर गुजरात
हमारे सनातन धर्म में सभी देवताओ के साथ साथ हमारे पूर्वज को भी सम्मान दिया जाता है ।देवताओ के साथ साथ पूर्वजों का भी आह्वान किया जाता है।ऐसा इसलिए कि,हमारे जो बड़े होते है ,पिता ,दादा ,नाना दादी इत्यादि चाहे वो जीवित हो या ना हो सभी के आशीर्वाद में देवताओं जितने वरदान का फल मिलता है।
इसलिए सनातन धर्म में श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि का विधान है।पूजा के साथ साथ श्राद्ध और तर्पण का भी महत्व पूजा के बराबर माना जाता है।फर्क सिर्फ इतना है कि पूजा रोज की जाती है एवं ,श्राद्ध कर्म व तर्पण कभी कभी किया जाता है,प्रकृति में अनेक ऐसे स्थान है जहां देवता और पितृ एक साथ रहते है।
जैसे जल,वृश्र आदि।
धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का पितृलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है।
पक्षियों का लोक को भी चन्द्रमां का उर्ध्वभाग पितृयो का पितृलोक ही है। इसलिए पक्षियों को दाना खिलाने से पूर्वज प्रसन्न होते है।पितृ का श्राद्ध कर्म करने से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं।परंतु पितरो का वास धरती पर कई खास जगहो पर भी होता है। कुछ पितृ हमारे वरुणदेव का आश्रय लेते हैं और वरुणदेव जल के देवता हैं। अत: पितरो का वास जल में भी होता है।
पीपल का वृक्ष :
पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना या इसे लगाना विशेष शुभ होता है। बरगद का
वृक्ष :
बरगद के वृक्ष में साक्षात शिव निवास करते हैं। अगर ऐसा लगता है कि पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
बेल का वृक्ष :
यदि पितृ पक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है।…इसके अलावा अशोक, तुलसी, शमी और केला के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।
चुकि पक्षियों का लोक भी पितृलोक है अतः पक्षियो को पितर का संदेशवाहक भी कहा जा सकता है।जिसमें कौआ का स्थान पहला है।कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
कौओं के बाद हंस का स्थान आता है। पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है।
कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हो सकता है कि आपके पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।
तीसरा स्थान गरुड़ का है ,भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गुरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं पितर।… इसके अलावा क्रोंच या सारस का नाम भी लिया जाता है।
पक्षियों के साथ-साथ कुछ पशु भी है जिन्हे पितरों का संदेशवाहक कहा जाता है जिसमें
कुत्ता का पहला स्थान है।
कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। कहते हैं कि, मृत आत्माए नजर आती है। दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं को आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
दूसरे स्थान पर गाय है।तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
तीसरा स्थान हाथी का आता है ,हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात रूप माना गया है। यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है। जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन हाथी का झुंड, उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं।
अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा विधि व्रत रखा जाता है। सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं।.. इसके अलावा वराह, बैल और चींटियों का यहां उल्लेख किया जा सकता है। जो चींटी को आटा देते हैं और छोटी-छोटी चिड़ियों को चावल देते हैं, वे वैकुंठ जाते हैं।
कुछ पितर जल में भी निवास करते है एवं कुछ जलीय जीवन पितर के संदेशवाहक है जिसमें मछली का पहला स्थान है।भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था। जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
दूसरा स्थान कछुआ का है ,भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर ही देव और असुरों के लिए मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थापित किया था। हिन्दू धर्म में कछुआ बहुत ही पवित्र उभयचर जंतु है जो जल की सभी गतिविधियों को जानता है।
तीसरा स्थान नाग देवता का है ।
भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।इसके अलावा मगरमच्छ भी माना पितल का संदेशवाहक माना जाता है। अपने सर्वपितृयो का कल्याण कारी मंत्र ,
“नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ ह्रीं नमः स्वाहा यह मंत्र”
का संकल्प लेकर अपने सर्वपितृ का कल्याण करके उनका शुभ आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। कुल के वंशजों को यह दायित्व बनता है और धर्म भी है, कर्तव्य भी है। प्रत्येक व्यक्ति को रामकार्य करना चाहिए।
उपरोक्त यह मंत्र स्मरण करते करते भगवान के भरोसे आस रखकर बैठे जीवों को भोजन करवाना चाहिए।अपने सर्वपितृयो के लिए किया गया नेक कर्म पुण्य भगवान को अर्पण कर देना चाहिए ।
तुरंत जिससे अपने सर्वपितृयो का भगवान कल्याण करते हैं अपने श्री चरणों में और भगवान के परम धाम में स्थान प्राप्त करते हैं । और मनुष्य को अपने सर्वपितृयो के कल्याण के लिए जितना हो सकता है अपनी स्थिति अपनी स्थिति अनुकूल दान-पुण्य करना चाहिए और देवी भागवत, गरुड़ पुराण, जैसे पवित्र ग्रंथ अच्छे आचार्य ब्राह्मण द्वारा पारायण करना चाहिए। नेक कर्म वादी सात्विक ब्राह्मणो को भोजन करवाना चाहिए।
उनको अपनी स्थिति अनुकूल दान-दक्षिणा देना चाहिए।ऐसे नेक कर्म करना चाहिए और कर्म करके भगवान को तुरंत अर्पण कर देना चाहिए, जिससे आपके नेक कर्म से भगवान को अर्पण किए गए पुण्य कर्म से आपके सर्वपितृयो का कल्याण होता है।
और मनुष्य अपने सर्वपितृयो के लिए जितना नेक कर्म करता है उतना कम है, क्यूंकि हमारे सर्वपितृ थे तब आज हम है हमारे सर्वपितृ ही नहीं होते तो हम कहां से होते? जय श्री सोमनाथ महादेव की, जय जय हो, नमो भगवते वासुदेवाय भगवान की जय हो। अस्तु