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आम आदमी पार्टी की बचकानी राजनीति

-डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी

सत्ता पाने के लिये राजनीतिक दल कुछ भी कर गुजरते हैं। हाल के दिनों में हमने देखा है कि पंजाब में सत्ता हासिल करने के बाद से आम आदमी पार्टी (आप) की राजनीति का स्तर निम्न से निम्मनतम की ओर अग्रसर है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल निम्न स्तर की राजनीति और बयानबाजी से सुर्खियों मे ंभले ही बने हुए हैं, लेकिन उनकी राजनीति कई गंभीर सवाल तो खड़े करती ही हैं, वहीं उनकी राजनीतिक समझ और सूझबूझ पर भी सवालिया निशान लगाती है।

सबसे बड़ी और गंभीर बात यह है कि वो लगातार इस तरह की राजनीति कर रहे हैं। पिछले दिनों भी केजरीवाल की निम्न राजनीति देखने का मौका देशवासियों को उस समय मिला जब उन्होंने भारतीय मुद्रा पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के चित्र छापने की मांग की।

वास्तव में केजरीवाल की यह मांग असंवैधानिक, हास्यास्पद और बचकानी है। यदि मुद्राओं पर देवी-देवताओं के चित्र छापने से अर्थव्यवस्था में सुधार होता, तो विश्व में आर्थिक संकट, गरीबी, कुपोषण और भुखमरी जैसी समस्याएं ही नहीं होतीं। सभी 195 देशों के अपने-अपने आराध्य हैं और उनकी आस्थाएं हैं, लेकिन 100 से अधिक देश अविकसित और दरिद्र हैं।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां और सरकारें उनकी मदद करती रही हैं, लिहाजा उनके अस्तित्व बरकरार हैं। अमरीका दुनिया का सबसे ताकतवर और प्रथम आर्थिक संसाधनों वाला देश है। उसकी सर्वशक्तिमान मुद्रा-डॉलर पर देश के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति आदि के चित्र छपे हैं। चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी मुद्रा पर देश के संस्थापक, प्रथम राष्ट्रपति रहे माओत्से तुंग का चित्र अंकित है।

जापान की मुद्रा-येन पर देश के संस्थापकों, महान विचारकों और वैज्ञानिकों के चित्र हैं। ब्रिटेन की मुद्रा-पाउंड पर महारानी विक्टोरिया द्वितीय का चित्र छपता था। अब उनके कालजेयी होने के बाद मौजूदा किंग चाल्र्स तृतीय का चित्र छपेगा। मुद्राओं के धार्मिकीकरण की सोच और प्रवृत्ति किसी भी बड़े देश का रिवाज नहीं है।
सिर्फ 87 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और मात्र 1.7 फीसदी हिंदू आबादी वाले इंडोनेशिया को उदाहरण मानकर भारत अपनी मुद्रा का चेहरा तय नहीं कर सकता। यह केजरीवाल का मानसिक दिवालियापन है। इंडोनेशिया में कुछ धर्मों को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है, लिहाजा वे अपनी मुद्रा पर गणेश, महादेव और बजरंगबली के चित्र भी छाप सकते हैं।

भारत एक संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसके नीति-निर्माताओं ने एक ही धर्म विशेष के कैलेंडर तक को मान्यता नहीं दी। यदि माता वैष्णो देवी या स्वर्ण मंदिर अथवा किसी अन्य के संदर्भ में भारतीय नोट और सिक्के तैयार किए गए हैं, तो वे सिर्फ विशेष अवसर पर ही छापे गए थे। यह भारतीय मुद्रा की परंपरा नहीं है कि धर्म के आधार पर वह छापी जाए। यह साझा विशेषाधिकार भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक का है। संसद भी इसमें दखल नहीं दे सकती। गौरतलब है कि देश की आजादी के 22 साल बाद 1969 में नोटों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चेहरा छापा गया, क्योंकि वह उनका जन्म शताब्दी वर्ष था।

बहरहाल, आज केजरीवाल की राजनीति में इतना भर बदलाव आया है कि अन्ना आंदोलन के दौरान भारत माता की तस्वीर लगाने वाले केजरीवाल अब धार्मिक प्रतीकों की राजनीति करने लगे हैं। अब उनके एजेंडे में अयोध्या भी है और बनारस भी। एक समय था वे अयोध्या में विवादित स्थल पर अस्पताल बनाने की वकालत करते थे। कहा करते थे कि मैं आईआईटी खड़गपुर की देन हूं। यदि तब मंदिर ही बने होते तो मैं इंजीनियर नहीं बन पाता। लेकिन अब उनके सुर-ताल बदल चुके हैं।
हालांकि, केजरीवाल भाजपा के उस हिंदुत्व मॉडल का शायद ही मुकाबला कर सकें जो संघ संरक्षित है। बहरहाल, केजरीवाल राजनीति के चतुर सुजान हैं। वे मौके अनुसार राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, भ्रष्टाचार और हिंदुत्व कार्ड खेलते रहते हैं। वहीं करेंसी विवाद में अब कांग्रेस भी कूद गई है और आप को भाजपा की बी टीम बता रही है।

बहरहाल, केजरीवाल की ताजा मांग भारतीय राजनीति में मुद्दों की तार्किकता पर सवाल खड़ी करती है। जनता के जरूरी सवालों से मुंह चुराकर आस्था के प्रतीकों की राजनीति एक प्रतिगामी कदम ही है। यह अतार्किक लगता है कि नोटों पर धार्मिक चित्र छापने से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। ये दलीलें न तो संविधान की भावना के अनुरूप हैं और न ही प्रगतिशील लोकतंत्र के लिये लाभकारी।

केजरीवाल भूल जाते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और धर्म विशेष के प्रति किसी तरह का झुकाव अनुचित ही है। बहुत संभव है कि कल दूसरे धर्म के लोग अपने धार्मिक प्रतीकों को करेंसी में दर्ज करने की मांग करने लगें। कोई भी ऐसी मांग संविधान की भावना के अनुरूप होने के साथ तार्किक भी होनी चाहिए। वहीं केजरीवाल जिस इंडोनेशिया का उदाहरण दे रहे थे, वहां वह महज प्रतीकात्मक प्रयास था, वो मुद्रा अब चलन में नहीं है।

वहां भारतीय राजाओं के शासन में सांस्कृतिक प्रभाव के चलते गणेश को बुद्धि के देवता के रूप में मान्यता जरूर मिली है। लेकिन भारत में संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के चलते किसी धर्म विशेष को मान्यता नहीं मिली है। निस्संदेह, ऐसी अतार्किक मांगों के चलते देश सांप्रदायिक विभाजन के दंश झेलने को अभिशप्त रहेगा।

आज के नोटों पर महात्मा गांधी का जो चेहरा अंकित है, उसे 1987 में स्वीकृति दी गई थी। उससे पहले भारतीय नोटों पर ‘अशोक स्तंभ’ छापा जाता था। यह परंपरा आज भी कुछ मुद्रा के संदर्भ में जारी है। कुछ नोटों और सिक्कों की फोटोस्टेट प्रतियां टीवी चैनलों पर लहराते हुए ‘आप’ के सांसद और प्रवक्ता जो प्रलाप कर रहे हैं, वह चुनावी कुतर्क के अलावा कुछ भी नहीं है। दरअसल केजरीवाल किसी एक भगवान के भक्त नहीं हैं।
वह बजरंगबली के कट्टर भक्त बन जाते हैं। अयोध्या जाकर प्रभु राम के निर्माणाधीन मंदिर में दर्शन करने चले जाते हैं। हालांकि वह राम मंदिर के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहे कि उसके स्थान पर अस्पताल बनाया जाना चाहिए था। गुजरात प्रवास के दौरान वह सिर पर टोकरी सी उठाकर सोमनाथ मंदिर में भी गए और भगवान महादेव के दर्शन किए। वह मुस्लिम टोपी धारण कर ‘मुसलमान’ दिखने में भी परहेज नहीं करते।

अच्छा है कि केजरीवाल धार्मिक समभावी दिखने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन उनका बुनियादी इष्टदेव ‘वोट’ है। वह वोट हासिल करने को अलग-अलग हरकतें करते रहे हैं। जो लोग उनके साथ रहे हैं या किसी भी रूप में आज भी साथ निभाना पड़ रहा है, वे बखूबी जानते हैं कि लक्ष्मी-गणेश उन्हें कितने प्रिय है? कितने आराध्य हैं? बेशक हिंदुत्व किसी की बपौती नहीं है। गुजरात में फिलहाल ‘आप’ की अग्नि परीक्षा होनी है, लिहाजा वह हिंदुत्व के मुद्दे पर भी शोर मचाना चाहते हैं।

भाजपा के वोट-बैंक में सेंध लगाने की राजनीति केजरीवाल की प्रबल है। अभी देश के हिंदू धर्मियों ने दीपावली महापर्व पर मां लक्ष्मी और प्रथम पूजनीय देव गणेश की पूजा की है। ऐसा कई दशकों से किया जाता रहा है, लेकिन आज भी करोड़ों भारतीय गरीबी-रेखा के तले जी रहे हैं। अर्थव्यवस्था भी हिचकोले खाती रही है। अर्थव्यवस्था के कुछ बुनियादी मानक हैं, जिन पर सरकार और उसके सलाहकार काम कर रहे होंगे, लेकिन प्रभु केजरीवाल जैसे अनर्थशास्त्रियों से बचाए।

-चिकित्सक एवं लेखक

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