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आत्मनिर्भर भारत कल,आज और कल

 दिप्ती डांगे मुंबई

“जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा,
वो भारत देश है मेरा, वो भारत देश है मेरा।”

ये सिर्फ एक गाना नही बल्कि समृद्ध और शक्तिशाली प्राचीन भारत की वो तस्वीर प्रस्तुत करता है जब हम समृद्धिशाली थे। हमारा देश के लोग अकूत धन के स्वामी थे। देश की सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा ने दुनिया के विकास मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके कारण भारत देश विश्वगुरु कहलाया।

भारत पिछली 20 शताब्दीयों में से 12 शताब्दी तक दुनिया का सबसे अमीर देश था, 6 शताब्दियों तक हम द्वितीय स्थान पर थे। केवल यहीं एक ऐसा समय था (19वी और 20वी शताब्दी) जब भारत शीर्ष दो देशों में भी नही था।

भारत की अर्थव्यवस्था 1 ईस्वी से 1000 ईस्वी के बीच फली-फूली, प्राचीन भारत 33.8 मिलियन डॉलर के साथ सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी।और प्राचीन भारत सोने की चिड़िया कहलाता था।
प्राचीन भारत सोने की चिड़िया और विश्वगुरु था पर किन कारणों से था क्या ये हमने कभी सोचा है?

इसका सबसे बड़ा कारण प्राचीन भारत वैश्विक व्यापार का प्रमुख केंद्र था। भारत खाद्य पदार्थों, मसाले,कपास, रत्न, हीरे, नीलमणि आदि के साथ-साथ पशु उत्पाद, रेशम, चर्मपत्र, शराब और धातु उत्पाद जैसे ज्वेलरी, चांदी के बने पदार्थ आदि के निर्यात करने मे विश्व मे अग्रणी स्थान रखता था।भारत उस समय विश्व का सबसे बड़ा विनिर्माण (उत्पादन) का केंद्र था।

विश्व के अन्य देश जब अंधकार में डूबे हुए थे उस समय भारत की सभ्यता एवं संस्कृति उच्च शिखर पर थी। भारत में ऐसे शिक्षा के केंद्र थे, जिनका स्वरूप आज के आधुनिक विश्वविद्यालयों जैसा ही था। आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था। जहां गणित शास्त्र, सैन्य शिक्षा, ज्योतिष शास्त्र, भूगोल शिक्षा, विज्ञान के साथ ही अन्य विषयों की शिक्षा देने में भारतीय विश्वविद्यालयों का कोई सानी नहीं थी। इन विश्वविद्यालयों में देश ही नहीं विदेशों से भी छात्र अध्ययन करने आते थे।

साहित्य,कला एवं ज्ञान, विज्ञान, गणित, चिकित्सा के क्षेत्र में भारत ने विश्व को नया ज्ञान प्रदान किया। और अविष्कार किये जिससे दुनिया का आधुनिकीकरण सम्भव हो सका।
1200 ईसवी से बाहरी आक्रांताओं ने देश में बहुत लूट की फिर भी देश के विकास की गति जारी रही।

और हम दूसरे स्थान पर बने रहे।1600 ईस्वी तक भी दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 24.5% थी, जो चीन के बाद दूसरा स्थान था क्योंकि भारत में दुनिया के कुल उत्पादन का एक चौथाई माल भारत में तैयार होता था।

1600 ईसवी मे अंग्रेज व्यापार की मंशा से देश मे आये और धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति के माध्यम से अन्य यूरोपीय व्यापारिक कंपनीयो को भारत से बाहर खदेड़ दिया। और व्यापार के दौरान राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पंख देते हुए अंग्रेजो ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप कर रियासतों पर अपना कब्जा कर भारत में 1800 ईसवी तक ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन पूरी तरह स्थापित कर भारत को अपना गुलाम बना लिया।

औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैंड को बाज़ारों की ज़रूरत थी।जिसके कारण भारतीय उद्योग धंधों को गहरा धक्का लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत से निर्यात होने वाले माल पर चुंगी की दर बढ़ा दी गयी और इंग्लैण्ड की निर्मित वस्तुओं के आयात पर चुंगी की छूट देकर, उन्हें भारतीय बाजारों में बेचा जाने लगा, जिससे भारतीय माल मँहगा हो गया व उनकी माँगे धीरे-धीरे घटती गयी तथा भारतीय कुटीर उद्योग धीरे-धीरे समाप्त होने लगे।

उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक, भारत ने यूरोपीय दुनिया में व्यापार और उद्योग में अपना वर्चस्व खो दिया, जो देश कई शताब्दियों तक सबसे बड़ा निर्यातक और आत्मनिर्भर देश था वो आयातक बन कर गया। जो देश अब तक औद्योगिक देश की भूमिका निभाता था वो कृषि प्रधान देश बन गया और अंग्रेजो के लिए सिर्फ कच्चा माल उगाने तक ही सीमित रह गया।

और दूसरी तरफ इंग्लैंड में उत्पादित सस्ते मशीन-निर्मित माल के डंपिंग के लिए भारत एक मात्र बाजार बन कर रह गया था। और जब हम 1947 में आजाद हुए तो हमारी हिस्सेदारी दुनिया सिर्फ 2-3% ही रह गयी। सिर्फ अंग्रेजो ने हमारे व्यापार और उद्योग को नष्ट ही नही किया बल्कि सामाजिक और मानसिक विकास और पहचान का शोषण भी किया।

अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी में खुद की सुविधा के हिसाब से भारत में सामाजिक पहचान की स्थापना की ताकि भारत जैसे देश पर वो आसानी से शासन कर सके। सबसे पहले भारतीयों की जातिगत भावना को बढ़ावा देते हुए उन्हें जातियों ओर धर्मो में बांट कर फुट डालो और राज्य करो की नीति को अपनाया।

भारत के लोगो की आस्था और विश्वास को तोड़ने के लिए बल प्रयोग कर आस्था के प्रतीक मंदिरों को तोड़ा, जबरन तलवार और बंदूक की नोंक पर या लालच देकर धर्मांतरण कराया और गाय की चर्बी को कारतूसों में भरकर मुख से स्पर्श कराया गया।भारत जैसे कृषि प्रधान और सम्पूर्ण विश्व को खाद्यान्न देने वाले देश के कृषि के तौर तरीके पुराने और बेकार सिद्ध कर दिए गये।

यहाँ की अधिकाँश सभी प्राचीन परम्पराओं जैसे योग आसन, सर्प पूजन, गौ पूजन, वृक्ष पूजन,आदि को अन्धविश्वास और दकियानूसी सिद्ध करने का हर सम्भव प्रयास कर हमारी शिक्षा को भी बेकार साबित कर दिया।अपनी शिक्षा और संस्कृति को हम पर थोपना शुरू कर दिया। उनकी अंग्रेजी शिक्षा का सबसे बड़ा लक्ष्य ईसाई धर्म का प्रचार था।

उनका मकसद भारतीयों को काली चमड़ी वाला अंग्रेज बनाना था। मतलब शिक्षित युवक देखने में हिंदुस्तानी लगें किंतु उनका मस्तिष्क अंग्रेजियत से भरा होगा। तब वे अंग्रेजो की कठपुतली व रोबोट की तरह नाचेंगे।

आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को बेकार साबित कर एलोपैथी चिकित्सा को अधिक महत्व दिया गया भारत की सभ्यता को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया। परिणामस्वरूप भारतीय समाज कई भागों में बँट गया और धीरे धीरे गौरवशाली इतिहास को भूलने लगे और वे योद्धाओं को छोड़ ऐसे लोगों के पीछे चलने लगे जो तुष्टिकरण और अपने स्वार्थसिद्धि की नीति अपनाते थे और इसे झूठे मानवतावादी चोले में डालकर न्याय संगत, तर्क संगत और नैतिक रूप में दिखाते थे।

संस्कृत भाषा जो विश्व के लगभग सभी प्रमुख भाषा मानी जाती है और वैज्ञानिकों के द्वारा सबसे अधिक विकसित और समृद्ध भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, वो धीरे धीरे धर्म और सम्प्रदाय विशेष की पुस्तकों और अनुष्ठानों की भाषा मात्र रह गयी।और हिंदी भाषा गरीबो और अल्प पढ़ो लिखो की भाषा बन गयी।शिक्षा भी ऐसी दी गयी जिससे भारतीय उनके इशारों पर कार्ये कर सके उनके कर्मचारी बन एक रोबोट की तरह कार्ये करे।

पहली ईसवी से भारत के स्वतंत्र होने तक  के आर्थिक, सामाजिक, और मानसिक विकास और शोषण के इतिहास से आगे भारत के आत्मनिर्भर होने सफर इस भाग मे।

1947 में देश को दो भागों (भारत और पाकिस्तान) मे विभाजित कर हमको स्वतंत्रता मिली पर असलियत में वो स्वतंत्रता न होकर ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट था जो पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में था।जिसके अनुसार लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी।इसका मतलब आज भी हम अंग्रेजों के अधीन ही हैं | जिसका विरोध गाँधीजी ओर कुछ और नेतायों ने भी किया था।

लेकिन सत्ता की लालसा ने कुछ नेतायों ने इस संधि को स्वीकार कर लिया और इसके कानून भी ब्रिटिश संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून।ऐसा कहा जाता है कि सत्ता हस्तांतरण के समय अंग्रेजो ने कुछ शर्तें भी रखी गयी जैसे जिसमे भारत को इंडिया कहा जायेगा, संसद मे वंदे मातरम नही गाया जायेगा जो 50 साल तक नही गाया गया।

अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन,शहर का नाम, सड़क का नाम वैसे ही रखे गए। हमारा संविधान भी यूरोप और अमेरिका के संविधान की कॉपी पेस्ट है।उसमे 34735  लचीले और पेचीदा ब्रिटिश कानूनों को शामिल किए गए।जो जनता की रक्षा करने वाले नहीं थे बल्कि अंग्रेजो के अपने हित साधने के लिए बनाए थे। छह दशक तक भी वही हैं नियम और परंपराएं चली जो अंग्रेजी हुकूमत के समय थी।

हम देश दुनिया के लिये स्वतंत्र तो हो गया पर शर्तो की वजह से हम हमेशा के लिये अंग्रेजो के मानसिक गुलाम बन गए।क्योंकि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है। क्योंकि स्वतंत्रता के बाद जिन नेतायों ने देश की बागडोर संभाली वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे।

हालांकि समय के साथ संविधान में कुछ बदलाव हुए लेकिन जरूरत के हिसाब से यह बदलाव नाकाफी थे। भारतीय संविधान में समय और परिस्थितियों के हिसाब से परिवर्तन की जरूरत है लेकिन इस जरूरत को देश के नीति निर्माताओं ने कभी गंभीरता से नहीं लिया।

शिक्षा व्यवस्था भी अंग्रेजो की अपनाते हुए कई तकनीकी और चिकित्सीय संस्थान बने लेकिन वो न काफी थे। अधिकांश शिक्षण संस्थान सिर्फ बाबुयो का निर्माण करने के लिये बनाई गई थी।उत्पादन कर हम कुछ आवश्यक वस्तुये में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त कर पाए।

लेकिन आजादी के बाद भी हम मुख्यता कृषि पर ही निर्भर रहे। समय समय पर सरकारों ने आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिये योजनाएं बनाई पर उनको ज्यादा सफलता नही मिली।
देश की चिकित्सा आयुर्वेद पद्धति को बढ़ावा नही मिला और गुरुकुल परंपरा को खत्म कर दिया गया।

एम एस स्वामीनाथन लिखते हैं कि उनकी युवावस्था में, “1930 के दशक के भारत में अधिकांश अन्य लोगों की तरह, आदर्शवाद और राष्ट्रवाद का दौर था। युवा और बड़ों ने एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साझा किया। पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) और स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) हमारे लक्ष्य थे…”।भारतीय राष्ट्रवादियों ने स्वतंत्रता से पहले के वर्षों में आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर दिया, जिसमें नियोजन एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

1938 में कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत को एक आर्थिक,औद्योगिक इकाई और आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजना बनाई जिसको समर्थन भी मिला लेकिन विरोध भी हुआ, जिसमें असहयोग आंदोलन भी शामिल था, जिन्होंने औद्योगीकरण विरोध किया और समितियों के प्रयासों को व्यर्थ करार दिया गया।

उसके बाद भी स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का एक और प्रयास किया जिसे जेआरडी टाटा , जीडी बिड़ला और ए दलाल ने लिखा था। लेकिन आजादी के बाद सब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और अंग्रेजो की नीति को ही आगे बढ़ाया गया।

अर्थशास्त्रियों ने भारत के आर्थिक विकास के इतिहास को दो चरणों में विभाजित किया है – पहला आजादी के बाद के 50 साल का और दूसरा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के दो दशकों का।
शुरू के 5 से 6 दशक में देश का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा है।

भारत मे पंचवर्षीय योजनाएं लागू की गई जो विकास की गति तेज करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करती थी। जिनके उद्देश्य प्रौद्योगिकी, उत्पादन और संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था जिसके कारण औद्योगिक मशीनरी और रसायनों जैसे क्षेत्रों में आयात के अनुपात में कमी आई थी,जो कि बढ़ी हुई आत्मनिर्भरता का संकेत था।

तेल उत्पादन,परमाणु ऊर्जा ,अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, कृषि अनुसंधान और चिकित्सा अनुसंधान में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना भी शामिल था ।

फिर भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे थे। क्योंकि नियम तो बने पर कार्यान्वयन सही तरीके से नही हुआ। सत्ता की लालसा ने देश मे जातिवाद, वोट बैंक की राजनीति,आरक्षण और अंग्रेजो की नीति फुट डालो राज करो को अमल करते हुई देश को बांट दिया।

नेतायों की अदूरदर्शिता से विदेश नीति मे भी असफल रहे और बाहरी और पड़ोसी दुश्मन हमपर भारी पड़ने लगे।और हमपर कई हमले कर हमारी भूमि को हथिया लिए।

देश मे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देश के लचीली कानून व्यवस्था और सरकार की अनदेखी का कारण था।बढ़ती बेरोजगारी और जनसंख्या हमारी दोषपूर्ण शिक्षाप्रणाली और सरकार द्वारा दी जाने वाली निम्न स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं थी।

देश में हजारों की तादाद में तकनीकी कॉलेज होने के बावजूद हमारा देश सर्वाधिक संख्या में बेरोजगार पैदा करता रहा या हम अंग्रेजो के काल के क्लर्क ही पैदा कर पाए। विकास हुआ पर हम उस स्तर से कोसों दूर थे, जिसका सपना हमने देखा था। देश के सभी क्षेत्रों में प्रगति तो हुई है, पर वैश्विक पैमाने पर हम काफी पिछड़े हुए प्रतीत होते हैं।अर्थपूर्ण नीतियों की कमी के कारण आर्थिक विकास स्थिर हो गया था।

मुक्त बाजार अर्थव्यस्था का दौर आते ही भारत में उदारीकरण और निजीकरण की नीति की शुरूआत से आर्थिक सुधार आया। देश की सेवा क्षेत्र में प्रमुख विकास हुआ। सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाने से घरेलू खपत में वृद्धि हुई। टेली सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा देश का विकास हुआ है।

भारत में अपनी टेली सेवाओं और आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करना जारी रखा। सूचना प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता के अधिग्रहण ने हजारों नई नौकरियां दी, जिससे घरेलू खपत में वृद्धि हुई है और स्वाभाविक रूप से, माँगों को पूरा करने के लिए अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ।
एक लचीली औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति और एक सुगम एफडीआई नीति की वजह से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देना शुरू कर दिया।

कृषि, चिकित्सा, वैज्ञानिक, परमाणु, मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई उड़ान मिली। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के के . सुब्रह्मण्यम ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर बल दिया।रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एक स्व-रिलायंस समीक्षा समिति का गठन किया गया।दसवीं पंचवर्षीय योजना में “अत्यधिक निर्भरता” पर बल दिया और “विज्ञान और प्रौद्योगिकी  को ओर अधिक कार्ये करने पर जोर दिया।

रोजगार में वृद्धि हुई युवकों को सरकारी नौकरियों के अलावा दूसरे विकल्प मिलने लगे। प्रौद्योगिकी और आई टी क्षेत्र मे बृद्धि हुई तो युवकों ने बाहर जाने की अपेक्षा देश मे ही नौकरियां करना शुरू किया। देश की जीडीपी भी 7-8% तक पहुँची।लएकिन ये अधिक समय तक संभव न हो सका।

मंदी और सरकारों की उदासीनता और अनदेखी की वजह, वोटबैंक,भ्रष्टाचार, लचीले कानून और संविधान की वजह से देश एक बार फिर से एक डंपिंग बाजार बन कर रह गया जहां दुनिया ने अपना उत्पाद डालना शुरू कर दिया।

हम फिर से 200 साल वाली स्थिति मे पहुचने लगे जहां।आयात बढ़ने लगा, निर्यात कम हो गया। एक बार फिर आत्मनिर्भर होने की बजाय दुसरो देशो पर निर्भर हो गए क्योंकि सरकारों की अनदेखी की वजह से हमारे कुटीर उधोग बंद होने लगे।धीरे धीरे फिर से बरोजगारी बढ़ने लगी।

हर सरकारी क्षेत्र में सिर्फ घोटाले ही होने लगे और देश आईटी सेवाओं का आउटसोर्स और BPO हब बन कर रह गया। शिक्षा प्रणाली मे सालों से कोई बदलाव नही किया गया। देश में भ्रष्टाचार और घोटाले चरम सीमा पर पहुँच गए। मंहगाई बढ़ने लगी। एक बार फिर हमारी जीडीपी 3-5% पर पहुँच गयी।

धीरे धीरे लोगो मे जागरूकता आयी समय परिवर्त्तन हुआ।भ्रष्टाचार, महंगाई, और बेरोजगारी के चलते देश मे भारी विरोध के चलते सत्ता मे परिवर्तन हुआ। देश मे शायद पहली बार देश की जनता ने खुद प्रधानमंत्री उम्मीदवार को चुना।

पिछले कुछ सालों से सरकार का मुख्य लक्ष्य देश को आत्मनिर्भर बनाने के  लिये “Make in India” और ” वोकल फ़ॉर लोकल” जैसे नारे दिए गए। जिसके लिये एक ऐप “ऐप इनोवेशन चैलेंज’ लॉन्च किया। जो एक मंत्र है ‘भारत में भारत और विश्व के लिए बनाओ’ (मेक इन इण्डिया फ़ॉर इण्डिया एण्ड द वर्ल्ड)।

जिसके लिए कई नियमो मे बदलाव भी किये गए। जिनका उद्देश्य घरेलू बाजार में आयात को कम करना है, लेकिन साथ ही साथ अर्थव्यवस्था को खोलना और दुनिया के बाकी हिस्सों में निर्यात करना है। जिसमे भारत को अपने हथियार बनाकर न खुद आत्मनिर्भर होना बल्कि निर्यात करने भी शामिल है।

जिसमे कुछ हद्द तक हम सफल भी हुए।आज वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। 2024-25 तक भारत की अर्थव्यवस्था के आकार को 5 ट्रिलियन डॉलर बनाने का लक्ष्य रखा गया है जो कि वर्तमान में 2.93 ट्रिलियन डॉलर है।ये तब तक संभव नही जब तक हम उत्पादन और निर्माण में आत्मनिर्भर न होकर निर्यात न करे।

आज भारत कृषि उत्पादों का निर्यात करने वाले टॉप 10 देशों में शामिल हो गया।
भारत में उत्पादन वस्तुओं के निर्यात के मामले में दुनिया के शीर्ष 30 निर्यातक देशों में 19वें पायदान पर है। पहली बार भारत वैश्विक हथियार निर्यातकों की सूची में शामिल हुआ है।आज देश 23 वे नंबर पर है।

भारत दुनिया में आयुष और हर्बल उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। भारत वर्चुअल पानी के निर्यात में सबसे आगे खड़ा देश है।भारत पहली बार बिजली के शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक बना।

कोविद 19 ने भारत को आत्मनिर्भर बनने की न केवल प्रेरणा दी और बल्कि एक सुनहरा अवसर दिया और बहुत से वस्तुयों जिनका हम अभी तक आयात करते थे अब हम निर्यात करने लगे। बहुत से कंपनियां जो चीन में थी उन्होंने हमारे देश की ओर रूख किया। इस दौरान बहुत सी छोटी और मझोली आकार की स्टार्ट अप कंपनीयो की शुरुआत हुई।

आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे सुधरने लगी। उद्योग वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये तैयार हो रहे है। धीरे धीरे मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग कंपनीयो ने हमारे देश मे अपनी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां लगाई। कोरोना वायरस से शुरूआती लड़ाई में पीपीई किट और एन95 मास्क का हम जो आयात कर रहे थे अब हम निर्यात कर रहे है देश आज दुनिया मे दूसरे नंबर पर है।
हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि कोरोना के दो वैक्सीन न केवल हमने बनाये बल्कि 60 से ज्यादा देशो को निर्यात भी किये।

34 सालों बाद देश की शिक्षा नीति मे बदलाव हुआ है जिसका उद्देश्य छात्रों की सोच की रचनात्मक क्षमता को बढ़ाकर सीखने की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाना।ताकि हमारा देश एक बार फिर विश्वगुरु बन सके। कुछ सालों से देश का काफी विकास हुआ है जीडीपी 9-10% तक हो रही है। देश के कई बड़ी समस्यायों का निदान हुआ है।

दुनिया मे भारत की छवि बहुत अच्छी हुई है और आज देश को आर्थिक शक्ति के रूप मे पहचान मिल रही।देश विकास की राह पर चल रहा है और बदल रहा है। सरकार को अपनी कुछ आर्थिक नीतियों मे अभी ओर परिवर्तन करना आवश्यक है।

जैसे आयकर दरों मे परिवर्तन,विदेशी बाजारों में ब्याज दरें काफी कम हैं इसलिये भारत में ब्याज दरें उचित हों और टैक्स दरें आकर्षक हों तो प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के विदेशी नागरिक भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर सकते हैं। यदि हम उन्हें आकर्षित कर सकें तो भारत की विकास परियोजनाओं के लिए भारी वित्तीय संसाधन मिल सकते हैं।

हमारा देश युवायों का देश है, उनको विनिर्माण (उत्पादन) क्षेत्र की और प्रेरित करना और ऐसे सुअवसर प्रदान करना जिससे न केवल उनको खुद रोजगार मिले बल्कि वो दुसरो को भी दे सरकार ने बहुत सी योजनाएं बनाई है पर सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के चलते उन योजनाओं का लाभ देश के सही हाथों तक नही पहुँच पा रहा है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये  कठोर कानून होना अति आवश्यक है जो उतनी ही कठोरता से लागू भी होना चाहिये।

देश के बाहरी और अंदरूनी दुश्मन एक बहुत बड़ी बाधा बनते जा रहे।जो संविधान के चारो स्तंभ मे बैठे हुए है और देश के बाहरी दुश्मनो के साथ मिल कर साजिशें करते है।इनका उद्देश्य देश को तोड़ना है। और इनको मदद सत्ता के लोभी देश के कुछ राजनीतिक पार्टियां और नेता कर रहे है।उनपर नकेल कसना भी बहुत जरूरी है।इसके लिये कठोर कानून की बहुत आवश्यकता है।

जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना भी बहुत जरूरी हो गया है। जब तक इसपर रोक नही लगेगी तब तक सारी कोशिशें बेकार हो जाएगी क्योंकि प्राकृतिक साधन तो जनसंख्या से हिसाब से नही बढेगे लेकिन बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जाएगी। सरकार को इस पर कानून बनाने की आवश्यकता है।

संविधान मे सबको समानता का अधिकार दिया गया है तो धर्म जाति के हिसाब से आरक्षण और कानून क्यों?

देश को जाति धर्म के भेद मिटाने के लिये समानता का कानून बनाना होगा आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिये न कि जातिगत आधार पर नही वो भी एक परिवार को एक बार।

हम फिर से देश को सोने की चिड़िया और विश्वगुरु बनने का सपना संजोने लगे है।पर अभी भी बहुत बदलाव की जरूरत है। हम लचीले और कॉपी पेस्ट संविधान और लोकतंत्र से देश को फिर प्राचीन भारत नही बना सकते।

इसके लिये सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने होंगे। जैसे पुराने कानूनों मे बदलाव, जातिगत आरक्षण की समाप्ति, धर्मगत कानून न हो कर समानता का कानून, जनसंख्या नियंत्रण कानून, भ्रष्टाचार पर कड़ा कानून बनने चाहिये।

आज देश उस जगह खड़ा है अगर देशवासियों और सरकार ने कठोर निर्णय लिया तो देश को विश्वगुरु बनने से कोई नही रोक सकता और इसके विपरीत अगर सरकार भी पुरानी सरकारों के नक्शे कदम पर चली तो देश को बर्बाद होने से कोई नही रोक सकेगा।

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