मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मो से उत्थान और पतन सुनिश्चित करता है?
सुनीता कुमारी, पूर्णियां बिहार
मनुष्य में विवेक बुद्धि है और साथ ही अहंकार की भावना भी सर चढ़कर बोलती है ।
इस अहंकार की वजह से भी जहां एक समय में हमारा उत्थान होता है, वही दूसरे समय में हमारा पतन भी सुनिश्चित हो जाता है । हम जो कुछ भी करते हैं अपने लिए करते हैं, अपने परिवार के लिए करते हैं ,दूसरों को सिर्फ अपनी भावनाएं देते हैं।
मगर फिर भी हम मनुष्यों की आदत है कि, जैसे जैसे हमारी तरक्की होती चली जाती है वैसे वैसे हममें अहंकार की भावना भी बढ़ती चली जाती है । हम अन्य लोगों से अपने आप को बेहतर समझने लगते हैं ?अपनेआप से सबको हीन समझने लगते हैं? इससे धीरे-धीरे हमारे समाज के लोग हमारे करीबी लोग लोग जो हमारे शुभचिंतक होते है ,समय समय पर मार्गदर्शन करते है,बुरे समय में हमारा सहयोग करते है,
हमारे अंहकार की वजह से हमसे कटने लगते हैं,हमसे दूरी बनाने लगते है, और हमें लगता है कि वह हमारी तरक्की देख कर जलने लगे हैं। हमारा बुरा सोचने लगे हैं मगर ऐसा नहीं होता है जो हमारे शुभचिंतक है वह हमारी तरक्की से हमेशा ही खुश होते हैं और एक उम्मीद रखते हैं कि, हम भी उनका सहयोग करें ,उनकी मदद करे,उनको भी आगे बढ़ाएं, मगर हम ऐसा नहीं करते हैं ?
हम अकेले ही अपनी तरक्की को लेकर आगे बढ़ते हैं? क्योंकि हम अपनी बराबरी में किसी को देखना नहीं चाहते हैं? हमारा अहंकार हमारे परिवार के करीबी रिश्तेदार ,व समाज के दूसरे शुभचिंतक तथा रिश्तेदारों को लेकर आगे बढ़ने नहीं देता है ।
यही बहुत बड़ी वजह है कि, एक बहुत बड़े सफल इंसान को तो सब जानता है परंतु उसके भाई-बहन या अन्य रिश्तेदारों को कोई नहीं जानता।, हम अपने अहंकार में, उन्हें अपने साथ खड़े ही नहीं होने देते या फिर हमें शर्म आने लगती है कि, वह हमसे छोटे हैं, हमारे साथ खड़े होने के लायक ही नहीं है? इसलिए उन्हें हम अपनी जिंदगी से काट कर फेंक देते हैं।
हमारे सामने हमारी बराबरी के वैसे लोगों की भीड़ जमा होने लगती है जो इस्तेमाल करनें वाले लोगों होते है।साम दाम दंड भेद लगाकर हमारा इस्तेमाल अपनी चलबाजी के लिए करते हैं? अपने फायदे के लिए करते है? और हमें पता भी नहीं होता कि वे हमें ठग रहे हैं ।हमारा इस्तेमाल कर रहे हैं? हम तो अहंकार की मदहोशी में इतने अहंकारी बन जाते हैं कि सामने वाला कब हमारे हमारे पैर के नीचे से जमीन खींच लेता है और हम औधे मुंह अर्श से फर्श पर आ जाते है।हमें पता भी नहीं चलता है।
ऐसे इंसानो के भी एक से एक उदाहरण हमारे समाज में है , परंतु हम सीख नहीं लेते हैं क्योंकि, हम मनुष्य हैं और अहंकार करना हमारी कमजोरी है। हमारे पतन का एक और मूल कारण यह भी होता है कि, हम चाहते तो तरक्की करना है परंतु दूसरे को खुश देखकर ,दूसरे की तरक्की को देखकर जलना शुरू कर देते हैं? उनकी निंदा शुरू कर देते हैं ?तरह-तरह का लांछन उन पर लगाना शुरू कर देते हैं?
उनकी मेहनत और त्याग तपस्या को नहीं देखते हैं?
उसकी रात दिन की मेहनत को नही देखते है
उनका,अनुशरण करने की जगह उनकी निदां करते है?
जबकि हम भी मेहनत कर रहे होते हैं ,उनकी मेहनत का फल उन्हें मिलता है और हमारे पर मेहनत का फल हमें मन लायक नहीं मिलता है?
इसका बहुत बड़ा कारण यह है है कि, हम अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की अपेक्षा लोगों की जिंदगी में ताक झांक करने में ज्यादा ध्यान देते हैं? हमारी तरक्की, हमारा ,भला कैसे होगा इस बात से ज्यादा हम इस बात से ध्यान ज्यादा ध्यान देते हैं कि, वह ऐसा कैसे कर सकते हैं? उन्होंने पैसा कहां से लाया ?
जरूर दो नंबर की कमाई की होगी ??इत्यादि अनावश्यक बातों में अपना अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं। निंदा शिकायत में अपनी उर्जा व्यर्थ करते रहते हैं, जिससे हमारा उत्थान कम और पतन ज्यादा होता है? हमें हमारी मेहनत का फल नहीं मिलता है ।
हम मनुष्य हैं, सब कुछ हमारे हाथ में है, हम जैसा चाहे वैसा हमारे साथ होता है। ईश्व और प्रकृति एवं धरती ने हमें सब कुछ दिया है ।मनुष्य को उनके सोच के अनुरूप जीवन दिया है। बस हम समझ ही नहीं पाते है कि ,हम जीवन में कैसे अच्छा करें ,कब तक क्या करें, जो हमारे जिंदगी अच्छी हो जाए और हमारा सिर्फ उत्थान हो पता कभी ना हो।
हम मनुष्य चाहते तो हैं कि, हमारी जिंदगी हमारी मर्जी के हिसाब से चले, हमारी सोच के हिसाब से चलें परंतु हम कदम कदम पर गलतियां करते हैं,? जिस तरह अपने परिवार में, समाज में देश में आजादी से जीने का हक हमें है, वैसे ही अन्य लोगों को भी है। परंतु “जियो और जीने दो जैसी भावनाओं का हमारी सोच में, हम मनुष्यों की सोच में स्थान ही नहीं है?”
यदि कोई व्यक्ति हमारे सामने कमजोर आता है तो हम उसका फायदा उठाना शुरू कर देते हैं, और वही कोई व्यक्ति हमारे सामने मजबूत आता है ,धन संपदा से परिपूर्ण आता है, तो हम उसके सामने दास बन जाते हैं और उसके इस्तेमाल की वस्तु बन जाते हैं ।
कभी भी अपनी सोच में एकरूपता और स्थायित्व नहीं रखते हैं। जिसके परिणामस्वरूप या तो इस्तेमाल करते हैं और या तो इस्तेमाल होते हैं ??
जिसकी वजह से हमारा उत्थान के साथ पतन सुनिश्चित हो जाता है ।जियो और जीने दो जैसी भावना को अगर हम अपनी जिंदगी का हिस्सा बना ले, अपने परिवार में समाज में ही सबको स्थान दें,किसी पर हावी ना हो और ना हो , किसी को हावी होने दें ,अपनी वाणी को संयमित रखें, किसी को ठेस ना पहुंचाएं, सिर्फ और सिर्फ अपनी तरक्की को देखें तो निश्चित ही हमारा उत्थान ही होगा ,पतन कभी भी नहीं होगा ।हम हमेशा तरक्की के रास्ते पर अग्रसर रहेंगे और समाज के लिए मिसाल बनेंगे।