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पश्चिमी संस्कृति से अपने बच्चों को बचाए, प्रेम का सही अर्थ समझाए

सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ बिहार

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

कबीर दास जी का यह दोहा प्रेम को परिष्कृत कर प्रेम को महिमामंडित करता है,एवं प्रेम की प्रतिष्ठा को सम्मानित करता है।दुनियां में सबकुछ हासिल किया जा सकता है ,हमारे सारे रिश्ते हमें जन्म से मिलते है और सारी सुख सुविधाएं इंसान मेहनत कर हासिल कर लेता परंतु किसी स्त्री या किसी पुरुष का सच्चा प्रेम किस्मत से ही मिलता है।खासकर आज के भौतिकतावादी जिंदगी में “प्रेम” स्वार्थ सिद्ध करने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है।जिसका शिकार बच्चे से लेकर बुढ़े तक आसानी से हो रहे है।

सत्यम शिवम सुंदरम की प्रतिष्ठा पर आधारित प्रेम, इस दुनिया का सबसे बड़ा शाश्वत सत्य है,जिससे धरती पर सारे जीव रहते हैं । प्रेम के ही प्रतिष्ठा पर सारे जीवो का उद्देश्य पूरा होता है ।पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेम की पराकाष्ठा के कारण यह संसार चलता आ रहा है ।

संसार के सारे जीव जंतु का अपने-अपने समूह में प्रेम के वजह से ही नाता चला आ रहा है, क्या कभी आपने सुना है किसी ने किसी शेर ने किसी शेर को खाया हो?

किसी बकरी ने किसी बकरी को खाया हो ? किसी गाय का दूध किसी दूसरे जीव में पिया हो ?परंतु हम मनुष्य में ही सारी समस्याएं सभी भावनाओं को लेकर जारी है चाहे वह प्रेम हो या नफरत हो? हमारे देश में शुरू से ही प्रेम को ईश्वर का स्थान प्राप्त है कामदेव रति जैसे देवताओं का उदाहरण प्रेम का ही सम्मान है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही प्रेम विवाह एवं गंधर्व विवाह को मान्यता प्राप्त थी।

देश में जातिवाद भले ही था , मगर यह जातिवाद भी कहीं ना कहीं प्रेम के संबंध पर ही आधारित रहा है प्रत्येक जाति के लोग किसी ने किसी व्यवसाय से जुड़े रहते थे और सभी एक दूसरे को सहयोग करते थे। जिससे हमारा परंपरागत सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ था। भारत सोने की चिड़िया रही थी, पूरे विश्व को भारत आकर्षित करता था। भारत की धन संपदा वैभव अतुलनीय थी।

जब तक भारत पर विदेशी आक्रमण नहीं होते थे भारत में प्रेम की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई थी परंतु जैसे ही विदेशी भारत आए ।अपने साथ पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति भी साथ लेकर आए जिसने भारत की परंपरागत प्रेम की प्रतिष्ठा को भी उजाड़ दिया। इसका खामियाजा आज के बच्चे उठा रहे हैं और उनके माता-पिता उठा रहे हैं?

प्रेम का पाश्चात्यकरण होने पर प्रेम का मूल अर्थ ही समाप्त हो गया है ।आज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में प्रेम की प्रतिष्ठा को भूल गए हैं एवं दिखावा हुल्लड़ बाजी को प्रेम समझ बैठे हैं ।

आज के युवा वर्ग के बीच में अगर किसी लड़के को गर्लफ्रेंड या किसी लड़की को बॉयफ्रेंड नहीं होता है तो वे अपने आप को हीन समझने लगते हैं ,हर किसी का बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होना जरूरी हो गया है।आज के युवा टाइमपास एवं इंटरटेनमेंट करने के लिए भी प्रेम का स्वांग रचते है।

आज के युवाओं में खासकर टीनएजर्स में गर्लफ्रेंड बनाना ,बॉयफ्रेंड बनाना और फिर ब्रेकअप करना आम बात है ,जबकि यह प्रेम नहीं बल्कि गलत संस्कृति का प्रचार-प्रसार है।

हमारे देश में वैसे भी युवा हैं जो प्रेम की प्रतिष्ठा को सम्मान दे रहे हैं। पढ़ लिख आत्म निर्भर होकर प्रेम विवाह कर रहे हैं और इस विवाह को मान्यता खुद घर वाले भी दे रहे हैं ,माता पिता दे रहे है।

आज हमारे समाज में वैसे भी लोग है जो खुद आगे बढ़कर बच्चों का प्रेम विवाह करवाते है। ऐसा होना भी चाहिए ।

प्रेम ह्रदय का अलौकिक भाव है। प्रेम हर किसी से नहीं हो सकता है। इसलिए इस प्रेम के बंधन को भी समझना जरूरी है, और इसका सम्मान करना भी जरूरी है, क्योंकि बहुत सारे युवा प्रेम में निराश होकर आत्महत्या भी कर लेते हैं ।

इसलिए प्रेम को प्रेम की तरह देखना जरूरी है ना कि, पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर हुल्लड़ बाजी करना, जो कि सरासर गलत है । इससे हमारे समाज युवाओं का नैतिक पतन हो रहा है ।जो युवा शिक्षित एवं आत्मनिर्भर होकर फैसले ले रहे हैं वहां तो कोई परेशानी नहीं है, मगर परेशानी टीनएजर्स बच्चों में आ रही है?

ऐसे बच्चे वैलेंटाइन जैसे पाश्चात्य संस्कृति मैं फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं बीच में ही पढ़ाई लिखाई छोड़ कर भागकर बिना सोचे समझे शादी कर ले रहे हैं। अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं साथ ही माता-पिता की परेशानी भी बढ़ा रहे हैं ।

आज हमारे समाज में भाग कर शादी करने वालों में ज्यादातर टीनएजर्स बच्चे ही होते हैं जो सरासर गलत है ।किसी भी बच्चे की शादी तभी होनी चाहिए जब वह पूर्णरूपेण विवाह बंधन को निभाने में सक्षम हो, आज निर्भर हो तभी शादी होनी चाहिए।

वैलेंटाइन जैसी गलत परंपराओं का भारत में बहिष्कार होना चाहिए। बच्चों में एक सोच का विकसित होना जरूरी हो गया है कि वह प्रेम और हुल्लड़ बाजी में अंतर समझे। गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने और ब्रेकअप करने के चक्कर में फस कर अवसाद के बच्चे शिकार न बने। इन सब चीजों को रोकने के लिए बच्चों में ही जागरूकता फैलाना जरूरी है, क्योंकि अगर माता-पिता मना करते हैं तो भी बच्चे नहीं मानते हैं एवं कोई संघ या संस्था भी मना करता है तो भी बच्चे नहीं मानते हैं।

इसलिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि टीनएजर्स के बीच में प्रेम को लेकर जागरूकता फैलाया जाए जैसे वैलेंटाइन जैसे पाश्चात्य संस्कृति से बच्चे को बचाया जा सके। कबीर दास जी का दोहा –

प्रेम न बाडी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई ।
राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई ॥
को समाज में चरितार्थ करना होगा।प्रेम को सम्मान देना होगा तभी समाज स्वस्थ समाज बन सकेगा।

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