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” नारी “
वीना राय आजमगढ़
हम कौन हैं?
मात्र एक सुंदर सामान
जिसे ढककर, छुपाकर रखा जाए
जिसकी अपनी कोई पहचान नहीं
अपना कोई स्थान नहीं?
हम भी इंसान हैं
प्रभु की बनाई अनुपम कृति
दीन-दुनिया की सोच-समझ रखते हैं
क्यों अपनी पहचान छुपायें
क्यों अपना स्थान गंवायें।
ईश्वर ने अद्भुत दुनिया बनाई
नर-नारी का अलौकिक प्रेम बनाया
हे नर, तुमने अपनी सुविधानुसार नीति-नियम बनाया
हमे सजाया, सँवारा, उजाड़ा
हम जननी हैं सृजनकर्ता
जान पर खेल जीवन देने का दम रखते हैं।
सभ्यता-संस्कृति, लोक-लाज, नीति-नियम की
दुहाई दे पर्दे में रहने को मजबूर न करो
हे नर, पर्दा लगाना है तो अपनी नज़रों पर लगा लो
हम सिर्फ देह नहीं , न ही सजावट का पुतला
आधार स्तम्भ हैं घर परिवार की
जननी, हमजोली, दुलारी
माँ, बहन, बिटिया प्यारी हैं।