आत्मनिर्भर भारत: कल, आज और कल (दूसरा भाग)
लेखिका दीप्ति डांगे, मुम्बई
पहली ईसवी से भारत के स्वतंत्र होने तक के आर्थिक, सामाजिक, और मानसिक विकास और शोषण के इतिहास से आगे भारत के आत्मनिर्भर होने सफर इस भाग मे।
1947 में देश को दो भागों (भारत और पाकिस्तान) मे विभाजित कर हमको स्वतंत्रता मिली पर असलियत में वो स्वतंत्रता न होकर ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट था जो पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में था। जिसके अनुसार लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी। इसका मतलब आज भी हम अंग्रेजों के अधीन ही हैं |
जिसका विरोध गाँधीजी ओर कुछ और नेतायों ने भी किया था। लेकिन सत्ता की लालसा ने कुछ नेतायों ने इस संधि को स्वीकार कर लिया और इसके कानून भी ब्रिटिश संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून।ऐसा कहा जाता है कि सत्ता हस्तांतरण के समय अंग्रेजो ने कुछ शर्तें भी रखी गयीl
जैसे जिसमे भारत को इंडिया कहा जायेगा, संसद मे वंदे मातरम नही गाया जायेगा जो 50 साल तक नही गाया गया।अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन,शहर का नाम, सड़क का नाम वैसे ही रखे गए। हमारा संविधान भी यूरोप और अमेरिका के संविधान की कॉपी पेस्ट है।उसमे 34735 लचीले और पेचीदा ब्रिटिश कानूनों को शामिल किए गए।
जो जनता की रक्षा करने वाले नहीं थे बल्कि अंग्रेजो के अपने हित साधने के लिए बनाए थे। छह दशक तक भी वही हैं नियम और परंपराएं चली जो अंग्रेजी हुकूमत के समय थी।हम देश दुनिया के लिये स्वतंत्र तो हो गया पर शर्तो की वजह से हम हमेशा के लिये अंग्रेजो के मानसिक गुलाम बन गए।क्योंकि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है।
क्योंकि स्वतंत्रता के बाद जिन नेतायों ने देश की बागडोर संभाली वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे। हालांकि समय के साथ संविधान में कुछ बदलाव हुए लेकिन जरूरत के हिसाब से यह बदलाव नाकाफी थे। भारतीय संविधान में समय और परिस्थितियों के हिसाब से परिवर्तन की जरूरत है लेकिन इस जरूरत को देश के नीति निर्माताओं ने कभी गंभीरता से नहीं लिया।
शिक्षा व्यवस्था भी अंग्रेजो की अपनाते हुए कई तकनीकी और चिकित्सीय संस्थान बने लेकिन वो न काफी थे। अधिकांश शिक्षण संस्थान सिर्फ बाबुयो का निर्माण करने के लिये बनाई गई थी।उत्पादन कर हम कुछ आवश्यक वस्तुये में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त कर पाए।लेकिन आजादी के बाद भी हम मुख्यता कृषि पर ही निर्भर रहे। समय समय पर सरकारों ने आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिये योजनाएं बनाई पर उनको ज्यादा सफलता नही मिली। देश की चिकित्सा आयुर्वेद पद्धति को बढ़ावा नही मिला और गुरुकुल परंपरा को खत्म कर दिया गया।
एम एस स्वामीनाथन लिखते हैं कि उनकी युवावस्था में, “1930 के दशक के भारत में अधिकांश अन्य लोगों की तरह, आदर्शवाद और राष्ट्रवाद का दौर था। युवा और बड़ों ने एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साझा किया। पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) और स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) हमारे लक्ष्य थे…”।
भारतीय राष्ट्रवादियों ने स्वतंत्रता से पहले के वर्षों में आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर दिया, जिसमें नियोजन एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत को एक आर्थिक,औद्योगिक इकाई और आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजना बनाई जिसको समर्थन भी मिला लेकिन विरोध भी हुआ, जिसमें असहयोग आंदोलन भी शामिल था, जिन्होंने औद्योगीकरण विरोध किया और समितियों के प्रयासों को व्यर्थ करार दिया गया।
उसके बाद भी स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का एक और प्रयास किया जिसे जेआरडी टाटा , जीडी बिड़ला और ए दलाल ने लिखा था। लेकिन आजादी के बाद सब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और अंग्रेजो की नीति को ही आगे बढ़ाया गया।
अर्थशास्त्रियों ने भारत के आर्थिक विकास के इतिहास को दो चरणों में विभाजित किया है – पहला आजादी के बाद के 50 साल का और दूसरा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के दो दशकों का।
शुरू के 5 से 6 दशक में देश का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा है।भारत मे पंचवर्षीय योजनाएं लागू की गई जो विकास की गति तेज करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करती थी। जिनके उद्देश्य प्रौद्योगिकी, उत्पादन और संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था जिसके कारण औद्योगिक मशीनरी और रसायनों जैसे क्षेत्रों में आयात के अनुपात में कमी आई थी,जो कि बढ़ी हुई आत्मनिर्भरता का संकेत था।
तेल उत्पादन,परमाणु ऊर्जा ,अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, कृषि अनुसंधान और चिकित्सा अनुसंधान में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना भी शामिल था । फिर भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे थे। क्योंकि नियम तो बने पर कार्यान्वयन सही तरीके से नही हुआ। सत्ता की लालसा ने देश मे जातिवाद, वोट बैंक की राजनीति,आरक्षण और अंग्रेजो की नीति फुट डालो राज करो को अमल करते हुई देश को बांट दिया।नेतायों की अदूरदर्शिता से विदेश नीति मे भी असफल रहे और बाहरी और पड़ोसी दुश्मन हमपर भारी पड़ने लगे।
और हमपर कई हमले कर हमारी भूमि को हथिया लिए। देश मे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देश के लचीली कानून व्यवस्था और सरकार की अनदेखी का कारण था।बढ़ती बेरोजगारी और जनसंख्या हमारी दोषपूर्ण शिक्षाप्रणाली और सरकार द्वारा दी जाने वाली निम्न स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं थी।
देश में हजारों की तादाद में तकनीकी कॉलेज होने के बावजूद हमारा देश सर्वाधिक संख्या में बेरोजगार पैदा करता रहा या हम अंग्रेजो के काल के क्लर्क ही पैदा कर पाए। विकास हुआ पर हम उस स्तर से कोसों दूर थे, जिसका सपना हमने देखा था। देश के सभी क्षेत्रों में प्रगति तो हुई है, पर वैश्विक पैमाने पर हम काफी पिछड़े हुए प्रतीत होते हैं।अर्थपूर्ण नीतियों की कमी के कारण आर्थिक विकास स्थिर हो गया था।
मुक्त बाजार अर्थव्यस्था का दौर आते ही भारत में उदारीकरण और निजीकरण की नीति की शुरूआत से आर्थिक सुधार आया। देश की सेवा क्षेत्र में प्रमुख विकास हुआ।
सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाने से घरेलू खपत में वृद्धि हुई। टेली सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा देश का विकास हुआ है।
भारत में अपनी टेली सेवाओं और आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करना जारी रखा। सूचना प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता के अधिग्रहण ने हजारों नई नौकरियां दी, जिससे घरेलू खपत में वृद्धि हुई है और स्वाभाविक रूप से, माँगों को पूरा करने के लिए अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ।
एक लचीली औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति और एक सुगम एफडीआई नीति की वजह से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देना शुरू कर दिया।
कृषि, चिकित्सा, वैज्ञानिक, परमाणु, मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई उड़ान मिली। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के के . सुब्रह्मण्यम ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर बल दिया।रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एक स्व-रिलायंस समीक्षा समिति का गठन किया गया।
दसवीं पंचवर्षीय योजना में “अत्यधिक निर्भरता” पर बल दिया और “विज्ञान और प्रौद्योगिकी को ओर अधिक कार्ये करने पर जोर दिया। रोजगार में वृद्धि हुई युवकों को सरकारी नौकरियों के अलावा दूसरे विकल्प मिलने लगे। प्रौद्योगिकी और आई टी क्षेत्र मे बृद्धि हुई तो युवकों ने बाहर जाने की अपेक्षा देश मे ही नौकरियां करना शुरू किया। देश की जीडीपी भी 7-8% तक पहुँची।लएकिन ये अधिक समय तक संभव न हो सका।
मंदी और सरकारों की उदासीनता और अनदेखी की वजह, वोटबैंक,भ्रष्टाचार, लचीले कानून और संविधान की वजह से देश एक बार फिर से एक डंपिंग बाजार बन कर रह गया जहां दुनिया ने अपना उत्पाद डालना शुरू कर दिया।हम फिर से 200 साल वाली स्थिति मे पहुचने लगे जहां।आयात बढ़ने लगा, निर्यात कम हो गया। एक बार फिर आत्मनिर्भर होने की बजाय दुसरो देशो पर निर्भर हो गए क्योंकि सरकारों की अनदेखी की वजह से हमारे कुटीर उधोग बंद होने लगे।धीरे धीरे फिर से बरोजगारी बढ़ने लगी।
हर सरकारी क्षेत्र में सिर्फ घोटाले ही होने लगे और देश आईटी सेवाओं का आउटसोर्स और BPO हब बन कर रह गया। शिक्षा प्रणाली मे सालों से कोई बदलाव नही किया गया। देश में भ्रष्टाचार और घोटाले चरम सीमा पर पहुँच गए। मंहगाई बढ़ने लगी। एक बार फिर हमारी जीडीपी 3-5% पर पहुँच गयी।
क्रमशः भाग अंतिम तीसरे मे
आत्मनिर्भर भारत का वर्तमान और भविष्य अंतिम भाग मे