विवेक अग्निहोत्री को इंडस्ट्री में भुगतना होगा ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाने का खामियाजा: मनोज मुंतशिर
विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स हेडलाइन्स में है। लोग इस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर काफी डिसकशन हो रहा है और लोग दो हिस्सों में बंट गए हैं। अब गीतकार मनोज मुंतशिर ने इस फिल्म पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि इस फिल्म पर चुप रहना गलत होगा इसलिए वह बोल रहे हैं। मनोज ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि फिल्म बनाने का खामियाजा विवेक भुगत रहे हैं। बदकिस्मती से इसकी भरपाई उन्हें किसी न किसी रूप में फिल्म इंडस्ट्री में भी करनी पड़ेगी। बोले- 84 के दंगों में नहीं दिखी कहानियां
द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने एक बड़े दर्शक वर्ग को इमोशनल किया है। कंगना रनौत रीसेंटली बोल चुकी हैं कि बॉलीवुड के लोग फिल्म पर कुछ नहीं बोल रहे। इस बीच मनोज मुंतशिर ने दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में कहा, 84 के सिख दंगों में लोगों को कहानियां नजर नहीं आईं। 90 की बात है, कश्मीर में डेढ़ लाख कश्मीरी हिंदू जिन्हें कश्मीरी पंडित भी कहते हैं, विस्थापित कर दिए गए। दिल्ली की सरकारें सोती रहीं। एक फिल्म बनी भी कुछ साल पहले। जो लोग इस त्रासदी से गुजरे थे, इस फिल्म को देखकर वे लोग चीख पड़े, रो पड़े। बोले, ये क्या है? आपने तो सैनिटाइज कर दिया सब कुछ। ये तो आपने वही ढोल पीटना चालू कर दिया, हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई। भाईचारा। प्रॉबलम्स पर मिट्टी नहीं डाली जा सकती
मनोज आगे कहते हैं, ट्रबल्ड हिस्ट्री को एक्सेप्ट किए बिना दोस्ती नहीं हो सकती। हमारे और आपके बीच अगर कोई इतिहास रहा है, जहां भी कुछ प्रॉब्लम्स रही हैं, उस पर बात करेंगे तब आगे बढ़ पाएंगे। आप बात नहीं करना चाहते, आप मिट्टी डालना चाहते हैं। और मिट्टी नहीं डाली जा सकती। विवेक रंजन अग्निहोत्री को प्रणाम जो उन्होंने ये कहानी दिखाई। ये कहानी बनाने का खामियाजा वह भी भुगत रहे हैं। शोहरत के लिए नहीं बनाई फिल्म
मेरे मित्र हैं मैं भी जानता हूं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने यह फिल्म किसी शोहरत या ख्याति के लिए बनाई है। फिल्म उन्होंने एक कहानी कहने के लिए बनाई है। इसका खामियाजा वह भुगत रहे हैं। इसका अंजाम है, जो भरपाई है उन्हें किसी न किसी रूप में फिल्म इंडस्ट्री में भी करनी पड़ेगी। पर वह बहादुर हैं, वह कर रहे हैं। आने वाले समय में ऐसी कई कहानियां आएंगी। पहले इन चीजों को कहने में डरते थे, आज सीना ठोंक कर कहते हैं।