एनआर जोन व लखनऊ मंडल में सफाई के नाम पर करोड़ों का घोटाला,रेलवे के जिम्मेदार अफसर मौन
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लखनऊ। उत्तर रेलवे एवं पूर्वोत्तर रेलवे में हो रहा कई करोड़ का प्रति वर्ष घोटाला सफाई के नाम पर चल रहा बंदरबांट कोई भी अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं आखिर क्यों। उत्तर रेलवे लखनऊ का एक रेलवे के रिटायर्ड अधिकारी जो अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि विगत लगभग कई वर्ष पहले रेलवे बोर्ड ने एक पालिसी बनाया था जिसमें सभी रेलवे में सफाई का ठेका बड़े बड़े ठेकेदार माफियाओं को दे दिया, जिसमें उ.रे एंव पूर्वोत्तर रेलवे तथा जो पूरे मंडलों में लगभग सैकड़ों रेलवे स्टेशनों की संख्या बताई जा रही है जिसमें लगभग चार दर्जन बड़े रेलवे स्टेशन जो अनुमानतः घट बढ़ भी सकते हैं की श्रेणी में आते हैं रेलवे ने ठेकेदारी प्रथा का शुभारंभ कर दिया है बाकी छोटे स्टेशनों पर स्टेशन अधीक्षक के अधीन सफाई के लिए पैसा उनके खाता में रेलवे प्रशासन भेजता है। छोटे स्टेशनों पर प्रति स्टेशन पर पांच हजार रुपये से लेकर दस हजार रुपये सफाई के लिए प्रति माह आता है और बड़े स्टेशनों जैसे रायबरेली ,अयोध्या कैंट, अयोध्या, अकबरपुर, जौनपुर, प्रतापगढ, सुल्तानपुर, गोंडा, बस्ती, वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ आदि स्टेशनों पर मल्टी प्लस कंपनियों को ठेका एलाट है लेकिन इन स्टेशनों के सफाई के ठेकेदार किसी न किसी सत्ता पक्ष एंव विपक्ष के सांसदों मंत्रियों एवं विधायकों के खास मखास लगे हुए हैं और इन लोगों का इतना बड़ा आतंक कायम है कि रेलवे यूनियन में एक ठेका संगठन नामक यूनियन का गठन हुआ है जो श्रमिक शोषण न हो देख रेख करने के लिए ,लेकिन जब कोई यूनियन का नेता जाकर संविदा सफाई श्रमिकों से जानकारी लेकर कारवाई का आश्वासन देता है तो ये माफिया ठेकेदारों के गुर्गे धमकी देते हैं गाली गलौज करते हैं मौके पर असलहा का प्रदर्शन भी कर देते हैं जिससे भयभीत होकर कोई भी रेलवे के ठेका यूनियन का नेता अपना मुंह बंद करने में ही भलाई समझता है। रेलवे के एक अधिकृत सूत्र ने बताया कि इन घोटाला कांड में स्थानीय श्रमायुक्त भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है चूंकि जब संविदा पर ये श्रमिक कार्य करते हैं तो रेलवे बोर्ड की पालिसी के अनुसार लेवर कमिश्नर का दायित्व है कि वो जाकर स्टेशनों पर चेक करें कि कितने श्रमिक लगे हैं और उनको पूरा भुगतान समय से मिल रहा है कि नहीं। लेकिन आज तक कोई भी श्रमायुक्त (लेवर कमिश्नर) ने अपने दायित्व का निर्वहन पूर्ण रूप से नहीं किया। मिली जानकारी के अनुसार पूरे रेलवे में कहीं भी पूरे श्रमिक किसी भी स्टेशन पर कार्यरत नहीं हैं वहां ये माफिया ठेकेदारों के दबंग गुर्गे दर्जनों श्रमिकों का फर्जी हाजिरी लगाकर भुगतान उठा रहे हैं और जो श्रमिक संविदा पर सफाई कर्मचारी के रूप में तैनात हैं तो उनका पासबुक ,एटीएम कार्ड, चेकबुक ये माफिया ठेकेदारों का काकस संगठन अपने पर रखा हुआ है और पूरा पेमेंट इन श्रमिकों के खाता में भेजते हैं और फिर एटीएम से निकाल कर सात हजार से लेकर आठ हजार रुपए पकड़ा देते हैं बाकी पैसा जेब में रख लेते है और जो छोटे स्टेशनों पर पैसा स्टेशन अधीक्षक के पास आता है तो दो हजार रुपये पर सफाई कर्मचारी रखकर पूरा भुगतान हड़प ले रहे हैं और धंधा विगत लगभग एक दशक से चल रहा है तथा अब तक कितना घोटाला रेलवे का हो गया भगवान ही जाने। सबसे मजे की बात तो ये है कि ये श्रमिक इतने डरे रहते हैं कि मुंह खोलने से कतराते हैं अभी विगत कुछ हफ्तों पहले लखनऊ मंडल के मंडल रेल प्रबंधक सचिनमोहन शर्मा ने एक कार्यक्रम में दर्जनों श्रमिकों से भुगतान के बारे में पूंछा तो कोई भी श्रमिक इस विषय में मुंह खोलने को तैयार नहीं। रेलवे के सूत्रों के अनुसार कायदे से रेलवे बोर्ड ऐसा नियम बनाए कि हर श्रमिकों से जाकर जानकारी करें अधिकारी और समय समय पर निर्णय लें लेकिन रेलवे में तो उल्टी हवा चल रही है श्रमायुक्त बैठकर लाखों रुपया प्रति माह वेतन आहरण कर रहे हैं। इस तरह से कई करोड़ रुपए का घोटाला हो चुका है और इसकी जांच अगर सरकार सीबीआई से कराये तो कई सांसद और मंत्री भी सत्ता पक्ष के बेनकाब हो जायेंगे।