Ayodhya

मुख्यमंत्री जी, जिले के छात्र और अभिभावकों पर शिक्षा माफियाओं की मनमानी पड़ रही है भारी

 

टांडा,अंबेडकरनगर। टांडा में सीबीएसई से मान्यता लेकर चल रहे स्कूलों में किताबें 2500 से 5500 रुपये में मिल रहा है।स्कूल संचालक मोटी कमीशन के चलते एनसीईआरटी की किताबों से दूरी बनाए हुए हैं। इसका असर अभिभावकों की जेबों पर पड़ रहा है।पहली अप्रैल से नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत हो गई। स्कूलों में बच्चों पर किताबें लेकर आने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। शासन के सख्त आदेश हैं कि एनसीईआरटी की किताबें ही स्कूलों में चलाई जाएं लेकिन इसका कोई असर देखने को नही मिलता है इंग्लिश मीडियम स्कूलों ने किताबे खरीदने के लिए अपनी दुकानें भी तय कर रखी हैं। जानकार बताते है कि नर्सरी से लेकर पांचवीं कक्षा तक की तीन से पांच किताब होती हैं। प्रत्येक किताब एनसीईआरटी की 65 से 70 रुपये में आ जाती है।इस तरह से पूरा कोर्स करीब 600 से 700 रुपये में तैयार हो जाता है। निजी प्रकाशकों का यही कोर्स अलग-अलग स्कूलों में ढाई हजार से 5500 रुपये में मिल रहा है। एनसीईआरटी की पांचवीं से लेकर आठवीं तक का कोर्स करीब 800 से 900 रुपये मिलता है लेकिन मान्यता प्राप्त इंग्लिश मीडियम छह से नौ हजार तक मिल रहा है वहीं कक्षा 9वीं से 12वीं तक का एनसीआरटी कोर्स 1250 रुपये में तैयार हो जाता है। लेकिन इन विद्यालय में एनसीईआरटी की किताबे जानबूझकर नही चलाई जाती है सीबीएसई से मान्यता प्राप्त विद्यालयो से जिम्मेदार अधिकारियों को मोटी रकम मिल जाती है इसलिए ये अधिकारी धृतराष्ट्र बने हुए है इन्हे केवल अपनी जेब भरने से मतलब है अभिभावको ने बताया कि स्कूल कोर्स में किताबें निजी प्रकाशकों की लगा रहे हैं, जिनकी कीमत एनसीईआरटी की किताबों से बहुत अधिक हैं। कोर्स में एक ही विषय की दो किताब शामिल की जा रही हैं। क्षेत्र के स्कूलो में प्राइवेट प्रकाशकों की किताबे लगायी गयी है जिसमे मोटा कमीशन स्कूलों को मिलता है और जिम्मेदार अधिकारी मोटी रकम लेकर अपनी जेब भर रहे है इसीलिए इंग्लिश मीडियम विद्यालय पर कोई कार्यवाही नही होती है अधिकारी इन स्कूलो की जांच करने के बजाय आंखे मूद लिये है । स्कूलों ने अभिभावकों की जेब ढीली करने के लिए सारे नियम ताख पर रख दिए हैं। प्रशासन चुप्पी साधे है। ऐसा नहीं है कि इससे विभाग के अधिकारी अंजान हों। शिक्षा विभाग की ओर से किसी तरह के न तो ठोस कदम उठाए गए और न ही कार्रवाई की गई है। किसी भी स्कूल संचालक और पुस्तक विक्रेता को विभाग की ओर से एनसीईआरटी की किताब अनिवार्य करने के लिए पत्र अभी तक नही लिखा गया है। कार्रवाई या किसी तरह की चेतावनी देना तो दूर की बात है। अधिकारियों का तर्क है कि अभी किसी अभिभावक की शिकायत नही है यह गौर करने वाली बात यह है कि ये अधिकारी स्कूलो की गोपनीय जांच क्यो नही कराते है ? आखिर ये अंजान क्यो बने है क्या ये धृतराष्ट्र जैसे हो चुके है । आखिर एनसीईआरटी की किताबे क्यो नही चल रही है। यह ऐसा सवाल है कि जिसका उत्तर जानने के लिए अभिभावक बेताब है बहरहाल सरकारें आई और गयी लेकिन किसी सरकार ने आम जनता के ऊपर बोझ बने इन प्राइवेट विद्यालयों के खिलाफ कोई कार्रवाई की हो चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो किसी सरकार ने आज तक इन प्राइवेट विद्यालयों के खिलाफ कड़ा एक्शन नहीं लिया जिससे ये स्कूल वाले बेलगाम हो गए हैं यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्यादातर इंग्लिश मीडियम विद्यालय पहुंच वाले और रसूखदार लोगों के हैं और जिनकी राजनीतिक पकड़ मजबूत है यह चुनाव के समय सभी पार्टियों को चंदा देते हैं जो विद्यालय का प्रबंधक सभी राजनीतिक पार्टियों को चंदा देता तो ये राजनीतिक दल के लोग क्यो विद्यालयो के खिलाफ आवाज उठायेगे ऐसे मे इन विद्यालयों के ऊपर कार्रवाई कौन करेगा यह अहम सवाल बना हुआ है प्राइवेट विद्यालयों में निजी प्रशासक की किताबे चलाना तो एक बानगी भर है हैं यहां ऐड्रेस जूता मोजा मनमाना फीस आदि के नाम पर अभिभावकों का जबरदस्त शोषण किया जा रहा है कोई देखने वाला नहीं है कोई पूछने वाला नहीं है।

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