जिले में नई शिक्षा नीति बेअसर,खुलेआम प्राइवेट विद्यालय अभिभावकों की जेब पर डाल रहे डाका

- जिले में नई शिक्षा नीति बेअसर,खुलेआम प्राइवेट विद्यालय अभिभावकों की जेब पर डाल रहे डाका
- संस्थानों के संचालक किताब,ड्रेस व फीस के नाम पर अभिभावकों से कर रहे हैं मनमानी वसूली
- ऐसे विद्यालयों में सरकारी किताबों के बजाय प्राइवेट प्रकाशन पर दिया जा रहा है जोर
अंबेडकरनगर। जिले में नई शिक्षा नीति का घोर उल्लंघन होता हुआ नजर आया जनहित में स्कूल को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है लेकिन प्राइवेट स्कूल संचालकों ने शिक्षा के मंदिर को शुद्ध व्यापार का रूप दे दिया है जहां पर स्कूल संचालकों में शिक्षा को बेचने के साथ-साथ कॉपी, किताबें, यूनिफॉर्म, जूता, मोजा, हवा व पानी आदि बेचने की दुकान खोल ली है यानी बेहतरीन शोरूम बनाया हुआ है इसको सही भाषा में कहा जाए तो लूट-पाट का अड्डा बन गए हैं प्राइवेट स्कूल।
इनका नाम बदलकर शोरूम स्कूल रख देना मुनासिब होगा जनपद के तहसील टांडा में बने इंग्लिश मीडियम विद्यालय गरीब अभिभावकों को मुंह चिढा रहे है जहां पर स्कूल प्रबंधन द्वारा एडमिशन के नाम पर फीस वसूली की जा रही है जब बच्चों की पढ़ाई लगातार उसी स्कूल में हो रही है तो फिर परीक्षा के बाद अगली कक्षा में प्रवेश लेने पर री एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम वसूलने का क्या औचित्य है? कुछ अभिभावकों के द्वारा विरोध करने पर स्कूल प्रबंधन द्वारा उन्हें बच्चों को हटाने की धमकी दी जाती है .
यही नहीं बच्चों को विद्यालय से ही किताबें कापियां ड्रेस जूते मूजे भी मुहैया करवाए जाते हैं जबकि कापी किताबों पर 30 से 40ः डिस्काउंट मिलना चाहिए लेकिन यहां तो उलटी गंगा बह रही है अभिभावकों में सोशल मीडिया के माध्यम से कई स्कूलों के संचालकों पर मनमानी करने का आरोप लगाया है इसके अलावा स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रकाशको की किताबों की जगह पर कमीशन खोरी के चक्कर में प्राइवेट प्रकाशको की किताबें दी हैं जबकि शिक्षा विभाग के नियम के अनुसार सभी स्कूलों में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एनसीआरटी प्रकाशको की किताबें होनी चाहिए लेकिन शिक्षा विभाग की मिली भगत से इन विद्यालयों प्रबंधकों के हौसले बुलंद है.
जिससे इन विद्यालयों में प्राइवेट प्रकाशको की किताबें चल रही है जिसे लेकर अभिभावकों में काफी रोष है। अभिभावकों का कहना है कि बच्चो को पढ़ाना मजबूरी है और कापी व किताबों को खरीदना भी मजबूरी है इसी का फायदा स्कूल प्रबंधन उठाते हैं दाखिले के बाद कॉपी किताबों के नाम पर लोगों को हजारों का चूना लगा रहे हैं।
प्राइवेट स्कूल संचालकों का आज के दौर में एक ही उद्देश्य बन गया है कि अभिभावकों को लूट लो जितना लूटना है उन्हें पता है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि हमारे जिले का सिस्टम मुट्ठी गरम करने वाला बन गया है जानने के बाद भी कोई कार्यवाही अधिकारी नहीं करते हैं शिक्षा विभाग के नियमों की प्राइवेट स्कूल संचालक धज्जियां उड़ा रहे हैं। कानून को ठेंगा दिखाकर अपनी दुकानें ध्शोरूम सजाकर बच्चों के अभिभावकों की जेबों में डाका डाल रहे हैं।
चंद पन्नों की कॉपी व किताबों को सैकड़ो नहीं हजारों रुपए में बच्चों को दी जा रही है अब आगे देखने वाली बात होगी कि जिले का शिक्षा विभाग इस तरह के गोरखधंधे करने वालों के खिलाफ क्या कार्यवाही करता है और तो और लोकसभा तथा विधानसभा के जो जनप्रतिनिधि है वे भी इस पर चुप्पी साध लेते है क्योकि जनप्रतिनिधियों के पास भी स्कूल है ऐसे में किसी विद्यालय के खिलाफ ये जनप्रतिनिधि नहीं बोलते हैं।