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ब्रह्मा बाबा के 146वें जयंती को आध्यात्मिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया गया

टूंडला रामनगर. ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर पिताश्री ब्रह्मा बाबा के 146वें जयंती (जन्मोत्सव) 15 दिसम्बर, 2022 को आध्यात्मिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया गया केंद्र संचालिका ब्रम्हाकुमारी विजय बहन ने दादा लेखराज से प्रजापिता ब्रह्मा तक का अलौकिक सफर के बारे में बताया कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के साकार संस्थापक पिता श्री ब्रह्मा के नाम से आज जन-जन भिग्य हो चुका है.

सन 1937 से सन 19 69 तक की 33 वर्ष की अवधि में तपस्यारत रह वे संपूर्ण ब्रह्मा की उच्चतम स्थिति को प्राप्त कर आज भी विश्व सेवा कर रहे हैं उनके द्वारा किए गए असाधारण अद्वितीय कर्तव्य की मिसाल सृष्टि चक्र के 5000 वर्षों के इतिहास में कहीं भी मिल ही नहीं सकती ।

पिताश्री जी का दैहिक जन्म हैदराबाद सिंध में 15 दिसंबर 1876 को एक साधारण परिवार में हुआ था ।उनका शारीरिक नाम दादा लेखराज था उनके अलौकिक पिता निकट के गांव में एक स्कूल के मुख्य अध्यापक थे दादा लेखराज अपनी विशेष बौद्धिक प्रतिभा व्यापारिक कुशलता व्यवहारिक शिष्टता अथक परिश्रम श्रेष्ठ स्वभाव एवं जवाहरात की अचूक के बल पर सफल व प्रसिद्ध जवाहरी बने उनका मुख्य व्यापारिक केंद्र कोलकाता में था.

भक्ति भावना और नियम के पक्के भारत के व्यवसाय के कारण पिता श्री का संपर्क उच्च कुल के राज परिवारों से काफी घनिष्ठ हो गया विपुल धनसंपदा और मान प्रतिष्ठा पाकर भी उनके स्वभाव में नम्रता मधुरता और परोपकार की भावना बनी रही उन्होंने किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रलोभन के बस अपनी भक्ति भावना और धार्मिक नियमों को नहीं छोड़ा .

प्रभावशाली व्यक्तित्व और मधुर स्वभाव दादा प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक थे उनका मस्तिष्क उन्नत शरीर सुडौल मुख्य मंडल कांति युक्त और होठों पर सदा मुस्कान रहती थी 90 वर्ष की आयु में भी वे सीधे कमर बैठ सकते थे दूर तक देख सकते थे .

धीमी आवाज भी सुन सकते थे पहाड़ों पर चढ़ते थे बैडमिंटन खेल सकते थे और बिना किसी सहारे के चलते थे वह प्रतिदिन 18वा 20 घंटे कार्य करते थे इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका जीवन कैसे संयम नियम से युक्त तथा स्वस्थ रहा होगा आलस्य निराशा ने तो कभी उनका इस पर शक नहीं किया.

राजकुल उचित व्यवहार सिस्ट मधुर स्वभाव और उज्ज्वल चरित्र के कारण उनकी उच्च प्रतिष्ठा थी अलौकिक जीवन प्रारंभ दिव्य साक्षात्कार ओं द्वारा परमपिता परमात्मा शिव का दिव्य प्रवेश परिस्थितियों ही परम पुरुष का आवाहन करते हैं.

दादा के मुख द्वारा परमपिता शिव ने बताया कि सभी दुखों एवं समस्याओं का मूल अभिमान एवं छह मनोविकारओं काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार और आलस्य इन पर विजय पाना जरूरी है इसलिए हर एक को आहार व्यवहार संग इत्यादि को सात्विक बनाने के लिए कहा गया था यह बताया कि विश्व एक अभूतपूर्व चारित्रिक संकट के दौर से गुजर रहा है इसलिए आप सभी को ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है.

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