UP Chunav: दलों की लहर पर सवार होकर भी नैया पार नहीं लगा सके ये नेता
गोरखपुर : दल के साथ दावेदार भी दिलों में उतर पाएं ये जरूरी नहीं। चुनावी तारीखें बारहा इसकी तस्दीक करती रही हैं। दल विशेष की प्रचंड लहर में भी तमाम दावेदार जमानत तक नहीं बचा सके जबकि विपक्षी उम्मीदवार की जीत तारीख में दर्ज हो गई। दिलचस्प पहलू यह भी कि ऐसे दौर में कई निर्दल प्रत्याशी भी जीत की इबारत लिखने में कामयाब रहे।
जेपी आंदोलन के बाद इमरजेंसी से उबरी जनता 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ थी। जनता पार्टी के पक्ष में प्रचंड लहर थी। तत्कालीन विधानसभा की 425 में से 422 सीटों पर उतरी जनता पार्टी ने 352 सीटें जीतीं। हालांकि पार्टी के चार प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा सके।
बदायूं जिले की गुन्नौर सीट से जनता पार्टी के प्रत्याशी ऋषिपाल सिंह को 65,592 में से महज 7997 वोट मिले जबकि निर्दल प्रत्याशी शिवराज सिंह ने 40307 वोट पाकर जीत दर्ज की। ऋषिपाल जमानत भी गवां बैठे। महराजगंज के पनियरा क्षेत्र से जनता पार्टी की कमला सहाय 6569 वोट तीसरे स्थान पर रहीं और उनकी जमानत जब्त हो गई। 32639 वोट पाकर निर्दल उम्मीदवार गुंजेश्वर ने जीत दर्ज की।
1977 के ही चुनाव में मुजफ्फरनगर के बघरा विधानसभा क्षेत्र में तीसरे नंबर पर रहे जनता पार्टी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह भी जमानत नहीं बचा सके। यहां निर्दल उम्मीदवार बाबू सिंह ने जीत दर्ज की। गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर जनता पार्टी ने राम कृष्ण यादव को उतारा था। राम कृष्ण को महज 7535 वोट मिले और जमानत जब्त हो गई।
इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र सिंह यादव विजयी रहे। 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के बिखराव का लाभ कांग्रेस को मिला। नए कलेवर के साथ मैदान में उतरी कांग्रेस का नाम बदलकर कांग्रेस (आई) हो और चुनाव निशान गाय बछड़ा की जगह हाथ का पंजा। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली इस कांग्रेस को जनता ने हाथों हाथ लिया और पार्टी ने 309 सीटें जीतकर एक बार फिर यूपी विधानसभा में जोरदार वापसी की।
हालांकि इंदिरा लहर वाले इस चुनाव में भी कांग्रेस के 10 प्रत्याशी जमानत नहीं बचा सके। इसी चुनाव में जनता पार्टी से टूटकर भाजपा अस्तित्व में आई और अपने पहले चुनाव में चार सौ सीटों पर लड़कर 10 सीटों पर जीत दर्ज की।
1991 का यूपी विधानसभा चुनाव पूरे देश की राजनीति के लिए एक नया अध्याय बनकर उभरा। राम मंदिर आंदोलन से बनी हवा के साथ उभरी भाजपा ने प्रदेश की 419 में से 415 सीटों पर प्रत्याशी उतारे जिनमें 221 विजयी रहे और पूर्ण बहुमत के साथ पार्टी सरकार में आ गई।
हालांकि इस चुनाव में भी भाजपा के 41 प्रत्याशी जीत से कोसों दूर रहे और जमा तक नहीं बचा सके। यूपी विधानसभा चुनाव के इतिहास में 2017 में दूसरा मौका आया जब किसी गैर कांग्रेसी पार्टी ने तीन सौ सीटों का आंकड़ा पार किया। माना गया कि भाजपा यह चमत्कार मोदी लहर के कारण कर सकी। कुल 403 में से 384 प्रत्याशी मैदान में थे।
इनमें 312 ने धमाकेदार जीत दर्ज की लेकिन इस मोदी लहर में भी भाजपा के पांच प्रत्याशी जमानत नहीं बचा सके। हाथरस के सादाबाद से भाजपा प्रत्याशी प्रीति चौधरी, बदायूं के सहसवान से आशुतोष वार्ष्णेय, रायबरेली में अनीता श्रीवास्तव, अमेठी के गौरीगंज में उमाशंकर पाण्डेय और कुंडा में भाजपा के जानकी शरण जमानत बचाने में नाकाम रहे।
कुंडा में सभी दलों पर भारी पड़े निर्दल राजा भैया
2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच कुंडा विधानसभा क्षेत्र में निर्दल प्रत्याशी रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ सभी दलों पर भारी रहे। इस सीट पर पड़े कुल करीब दो लाख वोट में एक लाख 36 हजार वोट राजा भैया के खाते में गए। इस सीट पर भाजपा और बसपा समेत अन्य पांच प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई जबकि करीब चार हजार वोट नोटा पर पड़े।
लोकसभा चुनाव हारकर राम लहर में भी विस जीते एनडी तिवारी
राम मंदिर मुद्दे को लेकर मैदान में उतरी भाजपा ने 1991 में जोरदार प्रदर्शन किया और सरकार बनाने में भी कामयाब रही। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी हल्द्वानी सीट से 32 सौ वोट से जीत दर्ज की। इस सीट पर भाजपा के तिलकराज को छोड़ अन्य 21 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। हालांकि इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में तिवारी नैनीताल सीट से भाजपा के ही युवा प्रत्याशी बलराज पासी से हार गए थे।