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मातृभाषा से विज्ञान में उन्नति, निज भाषा उन्नति अहै

निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश

-गांधीजी ने कहा है विदेशी भाषा माध्यम ने बच्चो की तंत्रिकाओं पर भार डाला हैं उन्हें रट्टू तोता बनाया है।
इस कारण वह सृजन के लायक नही रहे।
भारत मे बालक मुख से पहला वाक्य माँ बोलता हैं क्योंकि वह उसी के गर्भ से जन्म लेता हैं अपनी माँ की गर्भ की अद्भुद क्षमता को पहचानता हैं ।वैसे ही हमारी मातृभाषा भी हैं ।
भाषा संवाद ,लेखन पठन- पाठन का मुख्य पहलू हैं और भाषा एक उदारवादिता का होना प्रगति में सहायक है फिर चाहे वह व्यक्ति विशेष या देश की ।

आज हम विश्व के किसी भी देश मे जाते है तो निश्चित: वहां की भाषा का ज्ञान थोड़ा बहुत होना आवश्यक हैं लेकिन हम ये देखते आये है कि विश्व के सभी देश अपनी मातृभाषा को ही महत्व देते है क्योंकि मातृभाषा संवाद के साथ एक दूसरे की भावनाओ को समझने का अटूट माध्यम है।

भारत जहाँ विविधताओं से परिपूर्ण एक विकसित राष्ट्र रहा हैं जहाँ अनेको धर्मवलम्बियों ने शरण ली।हमारे राष्ट्र में वैसे ही सभी स्थानों की बोलिया भी अलग अलग है । विभिन्न राज्यो के ग्रामीण अंचल भी अपनी बोलियों की विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं l

जिसमे मालवी ,निमाड़ी, राजस्थानी, गुजराती मराठी ,मद्रासी बंगाली, पंजाबी प्रमुखता लिए है ये भी एक दूसरे से संवाद कर शिक्षा ,व्यापार नोकरी सभी मे प्रगति के उन्नत द्वार खोलती है और ये सही भी हैं। जब जब अपनी कॉलोनी ,कार्यक्षेत्र या दुकानों पर जाते है निश्चित अपनी भाषा मे संवाद एक दूसरे की भावनाओ को प्रगाढ़ता से जोड़ता हैं और भविष्य में यही भाषा संवाद जीवन को सरल सहज बनाता हुआ विकास की संभावना बनाता हैं।

भारत मे सब भिन्न अति, ताही सौ उत्पात। विविध देस मतहू विविध ,भाषा विविध लखात
कवि रविन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार-यदि विज्ञान को जनसुलभ बनाना है तो मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।

मेने अंचल में सतत अट्ठारह वर्ष से जीवविज्ञान विषय में अध्यापन कराते हुए ये महसूस किया कि जनजातीय बोली भीली के मध्य पले बढ़े विद्यार्थी हिंदी को भी पूर्ण रूप उच्चारण करने व लिखने में परेशान हो उठते हैं तब पुस्तको में नामांकित चित्र या डायग्राम लैबल में भी उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैंl

क्योंकि सभी नामांकित चित्र इंग्लिश में होते है। वही अगर उन्हें चिकित्सकीय क्षेत्र में उच्च अध्ययन करना है तो निश्चित तौर पर अंग्रेजी माध्यम विद्यार्थियों को मानसिक रूप से अपने भविष्य को इस क्षेत्र में चिंतन में डाल देता हैं ऐसा भी कई बार हुआ कि हिंदी माध्यम विद्यार्थियों को कई चुनौती तकनीकी व चिकित्सकीय क्षेत्र में आती ही हैं।

अगर तकनीकी क्षेत्र में इंजीनियरिंग कर भी लिया तो उसे इंटरव्यू इंग्लिश में देना होता ऐसे में देश का होनहार युवा अंग्रेजी भाषा के आगे हारता हुआ दिखाई देता हैं।
सर आइजैक पिटमैन -के अनुसार यदि सर्वांग पूर्ण लिपि हैं तो वह देवनागरी हैं ।
विचारणीय हैं कि किस देश के व्यक्ति ने हमारी मातृभाषा से हमारी पहचान की ओर इंगित करती हैं ।

वही देवनागरी या लिपि ब्राह्मी सही मायनों में एक वैज्ञानिक भाषा हैं जिसके सतत उच्चारण से मस्तिष्क की क्षमता में वृद्धि होती हैं वही जीव्हा पर भी सकारत्मकता स्पष्टता मिलती हैं इसीलिए इसे ब्राह्मी लिपि कहा गया अथार्त ईश्वरीय लिपि ।

अगर हम धर्म ग्रंथो पर ध्यान दे तो सभी सँस्कृत में है औऱ समझने वाली बात ये हैं इस भाषा का मूल अर्थ अंग्रेजो ने ही समझा तभी तो उनके आगमन के बाद से हमारी शिक्षा का मूलस्वरूप ही बदल गया ओर यही कारण रहा नालन्दा विश्वविद्यालय में सँस्कृत भाषा मे शिक्षा दी जाती थी क्योंकि उसमें जीवन के मूल तत्व विज्ञान के रूप में समाहित थे ।

यही कारण भी रहा मुगलो द्वारा यहां की बौद्धिक विकास के शिक्षा के भव्य मंदिर को तहस नहस कर देने का ।बाद में अंग्रेजो ने भारत में अंग्रेजी भाषा के आगे भारतीयों का लगातार तिरस्कार किया उनका हमेशा नैतिक पतन किया व बार बार जताया कि अंग्रेजी नही स्वीकारी तो विकास की राह पर कभी चल ही नही पाओगे ।

उनकी मंशा थी कि देश का बच्चा भाषा व अंसख्य विषयो में उलझ गया तो विकास की सूचना तो दूर वह खुद ही भूल जाएगा और स्वयम का मूल अस्तित्व समाप्त कर लेगा। ये बात गलत नही आज जो बेरोजगारी ओर अवसाद से गुजरता युवा इन्ही कारणो की देन हैं।

खैर स्वतंत्रता में स्वायत्तता की कमी के चलते तिहोत्तर वर्षो बाद आज फिर एक आशा की किरण भारत को अपनी मातृभाषा में सरल व सहज तरीके से शिक्षा , नोकरी, कार्यक्षेत्र में अपनाते हुए नई शिक्षा नीति के रूप में आ रही हैं।

विश्व के एक सौ सत्तर देशों में किसी न किसी रूप में हिंदी भाषा अध्ययन कराई जाती हैं व विश्व के बत्तीस देशों में सँस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती हैं। अब विचार करने का विषय भारत देश के लिए है कि किस तरह हम अपने मूल भाषाई अस्तित्व को स्विकारते हुए स्वर्णीम भविष्य की राह बनाये।

जिम्मेदारी हमारी
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटत न होय को सुल

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