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“टाटा” भारत का अनमोल रतन जो पैदल चला लेकिन देश को उड़ना सिखा गया, हिन्दुस्तान के हर घर पर था जिसका राज…

Digital Team :

रतन टाटा सिर्फ नाम ही काफी है… एक ऐसा बिजनेस टायकून जिसने देश के हर घर पर राज किया. टाटा नमक से लेकर आसमान में उड़ते महाराजा तक एकक्षत्र राज…बुधवार रात देश को अलविदा कह गया….

वो एक रिबेल थे… उन्होंने जो भी ठाना उसे हासिल किया..उन्हें जब परिवार ने कार पर चढ़कर ऑफिस जाने की परमीशन नहीं दी तो उन्होंने साइकिल पर चढ़ने से मना कर पैदल चलना शुरू कर दिया..जब उन्होंने मुंबई की सड़क पर एक परिवार को मोटरसाइकिल पर भीगता देखा तो लखटकिया कार नैनो बना दी. यही नहीं …जब उनकी टाटा मोटर्स की कार को फोर्ड के मालिक ने खरीदने से मना किया तो उन्होंने महज 10 साल के अंदर वो फोर्ड की जगुआर और लैंडरोवर खरीद ली..जी ये थे हमारे अनमोल रतन टाटा. जिन्होंने काम इतनी खामोशी से किया कि उनकी सफलता ने दुनिया में शोर मचाया.

दादी की वजह से लौटे थे भारत

वो आर्किटेक्ट बनना चाहते थे..उन्होंने स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्ट की पढ़ाई भी की.. ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने अमेरिका में नौकरी की. वो भारत नहीं लौटना चाहते थे..लेकिन दादी जिनसे वो काफी करीब थे वह उन्हें भारत में देखना चाहती थीं. 25 साल की उम्र में वो भारत लौट आए.. भारत लौटना उनके लिए दुख स्वपन जैसा था. ऐसा नहीं था कि उनके नाम के साथ टाटा लगा था तो उन्हें सबकुछ थाली में परोस कर दिया गया हो.

अपनी ही कंपनी में आम कर्मचारी की तरह किया काम

अमेरिका से लौटने के 15 दिन बाद ही उन्हें जमेशदपुर भेज दिया गया- जहां उन्होंने अपनी ही फैक्ट्री में फ्लोर पर काम दूसरे कर्मचारियों की तरह काम किया..उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उस समय तो वो काम और एक्सपीरिएंस बहुत ही बेकार लगता था… लेकिन आज जब पलट कर देखता हूं तो उसने मुझे एक अच्छा इंसान बनाया. मैं समझ सका कि एक इंप्लाई का दर्द क्या होता है.. एक आम कर्मचारी की तरह वो सिर्फ कुछ दिनों के लिए नहीं थे बल्कि वह कुछ महीनों तक फ्लोर पर काम करते रहे..वो किसी भी आम इंप्लाई की तरह ट्रीट किए जाते थे और छह महीने तक उन्होंने अपनी ही कंपनी में कर्मचारियों के साथ कैंटीन में ही खाना खाया था..जब उनसे पूछा गया कि आप तो टाटा हैं, इसका आपको फायदा नहीं मिला? उन्होंने कहा नहीं…ये टाटा तो मेरी लिए नुकसान पहुंचाने वाला था..

‘रतन का जाना देश को खालीपन दे गया’

उड़ने के शौकीन टाटा को जमशेदपुर में ही जमशेद जी टाटा का साथ मिला…जिनसे उन्होंने देश से प्यार और देश पर कुर्बान होना सीखा.. रतन का जाना देश को एक खालीपन दे गया है..ये शायद कभी नहीं भर पाएगा..देश को अपनी सारी जिंदगी देने वाला ये बिजनेस टायकून अपने प्रिंसिपल से सैक्रीफाइज नहीं करना जानता था.

लेकिन ये बात थोड़ी निराश करती है कि जिसने अपनी पूरी जिंदगी देश को दी उसका अपना कोई नहीं था..3400 करोड़ की संपत्ति का मालिक देश की आंखें नम कर गया है…उन्होंने शादी नहीं की थी.. वह कहते हैं ऐसा नहीं कि उन्होंने प्यार नहीं किया, चार बार उन्होंने इश्क किया. लेकिन उनका एक भी प्यार मुकाम तक नहीं पहुंच पाया और वो दो कमरे के घर में अकेले रहे. वह कहते हैं, कई बार ऐसा होता है मुझे पत्नी या परिवार के न होने पर कमी महसूस होती है..अकेलापन लगता है ..परिवार के लिए तरसता हूं..लेकिन कभी कभी आजादी का आनंद लेता हूं..

अपने आखिरी दिनों में वो अपने युवा साथी शांतनु के साथ रह रहे थे..शांतनु ने अपने सबसे प्यारे दोस्त के जाने पर लिखा है इस प्यार की कीमत शोक है.. इस दोस्ती से जो खालीपन अब मुझमें रह गया है..इस प्यार की कीमत वो दुख है जो जीवनभर मेरे साथ रहेगा..अलविदा मेरे प्रिय प्रकाश के स्तंभ…

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