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एक देश एक कानून -यूनिफॉर्म सिविल कोड़ ना हिजाब ना तलाक

निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश

प्रकृति सबको एकसमान रूप से अपनी छाँव में रखती धर्मानुसार कोई भेदभाव नही चहु ओर हरियाली का सम विस्तार रहता हैं । इसी कारण नियम भी नेचुरल लॉ पर बना होना आवश्यक है।

भारत धर्म संस्कृति की विविधताओं से परिपूर्ण एक देश है जहाँ संविधान के अनुरूप एक कानून व्यवस्था के साथ कई धार्मिक कानून भी अपनी परम्पराओ के अनुरूप लागू होते है।
हम देखते आये है कि जब हम विदेश में जाते है तो वहां की नागरिकता से लेकर वहां के नियमो का कठोरता से पालन करना पड़ता हैं उसके उपरांत भी वहां वो अधिकार प्राप्त नही हो पाते जो वहां के मूलनिवासीयो को प्राप्त होते है।

मुख्यतः देखा है कि कई बातों में समझौता करना ही पड़ता हैं जो सही भी हैं बाहरी तत्वों के कारण कोई भी अपने नियम व अनुशासन में क्यों बदलाव कर अपनी कानून व्यवस्था बिगाड़े।

लेकिन भारत मे ऐसा नही हैं विदित हो कि मुगल व ब्रिटिशर भारत मे आये व यहां दमनकारी नीतियों के साथ अपने धर्म व समाज की वँशवृद्दि हेतु नए नीति नियम बनाये हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान का निर्माण हुआ व नए अधिनियम ब्रिटिशर की अनुशंसा पर उनके अधीन रहते लागू हुए जो अब तक चल रहे थे फिर कई सरकारों ने वोट बैंक के चलते धर्मवलम्बियों को उनके धार्मिक नियमो को लागू करवाया ।

तब सरकारों को मानवीय दृष्टिकोण से ज्यादा अपने हितों को पूर्ण करना उनका महत्वपूर्ण पहलू था । लेकिन आज इन्ही धर्मवलम्बियों द्वारा बनाया कानून उन्ही धर्म की महिलाओं व बच्चो के लिए गले की हड्डी बन चुका हैं। जब संविधान अनुरुप कानून व धार्मिक कानून किसी की भावना व भारतीय मूल संस्कृति तत्वों को ठेस पहुचाये तो उनमें संशोधन के साथ नए कानून को लाया जा सकता हैं।

याद करे हम वर्ष 1985 में इन्दोर के एक वकील ने अपनी साठ वर्षीय पत्नी शाहबानों को तलाक दिया। चूंकि धर्मानुसार तलाक देना भी आसान सिर्फ तीन शब्दो में तलाक जिंदगी के अटूट बन्धन को तोड़ने के लिए काफी था । साथ ही उनके पांच बच्चे भी थे ।शाहबानों ने तलाक के बाद एलुमनी (गुजरा भत्ता) मांगा लेकिन कट्टर धर्म मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार ना ही वह गुजारे की हकदार रही ना ही तलाक के बाद उनके बच्चे ।

मतलब तलाक के साथ ही बच्चो से भी सम्बन्ध खत्म। इस बात पर शाहबानो ने उच्चतम न्यायालय में गुजारे भत्ते हेतु पुनः याचिका की जिसमे फिर वही असमंजस आया कट्टर धर्मावलमबी गुरु इस समय धर्म के नियमो को आड़े हाथों आये देख विरोध दर्ज कराने लगे क्योंकि इस धर्म मे बहुविवाह व तलाक एक आम सी बात हैं।

तब मुद्दा सरकार तक आया चूंकि 1986 मे जो सरकार थी उसने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति वोट बैंक के लिए एक नया अधिनियम बनाया क्योंकि उन्हें ना महिलाओं व बच्चो के हक की चिंता थी ना ही शासन के तहत अपने कर्तव्यों की। तब उन्होंने उन कट्टर धर्मवलम्बियों को खुश करने के लिए साथ मिलकर एक नया अधिनियम बनाया जो उस मुस्लिम महिलाओं के तलाक पर उन्हें कोई एलुमनी प्राप्त नही हो सकती।

ऐसे में शाहबानों तलाक का केस हार गई । ये कोई नई बात भी नही इस तरह की पोलीगेमी या बहुविवाह प्रथा जनजतीय अंचल में भी आम बात है लेकिन इन सबमे सबसे ज्यादा नुकसान बच्चो को होता हैं। ये सत्य हैं कि इस वर्ग में बहुत कम प्रतिशत महिलाओं का सुरक्षित हैं ना ही शिक्षा के क्षेत्र में ।

बच्चे भी सरकार की विकास की योजनाओ की धज्जियां उड़ाते हुए हम दो हमारे दो की सीमा लांघ कर पंक्तिबद्ध मिलते है। हाल ही में शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी धार्मिकता आड़े लाना फिर चाहे वह हिजाब -खिजाब क्यों ना हो।

जैसे भारत अपराध दंड संहिता सभी जगह एक समान हैं लेकिन इनमे भी कई जगह ईसाई पर्सनल लॉ व मुसलिम पर्सनल लॉ धर्मावलम्बी आड़े ले आते है और अपने गुनाहों को एक पाले से अपने पाले में ड़ालकर कई गुनाहों को खुलकर अंजाम देते है।

लेकिन अनुच्छेद-25जहा धार्मिक स्वतंत्रता की रीति नीति की बात करती हैं तो वही अनुच्छेद -13 धार्मिक स्वतंत्रता से एक दूसरे को तकलीफ न पहुचे ।
वही अनुच्छेद -15 लड़का लड़की में भेदभाव नही हो सभी एक समान हैं।इन सबमे सबके हितों का ध्यान हिन्दू पर्सनल लॉ में अच्छे से रखा व इसमें शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया।
आज फिर वही हिजाब देश के विकास में फिर आड़े आया क्या एक दो धर्म अपनी दम्भकारी नीतियों के बल पर अनुसार भारत को चलायेंगे ।

जिसके चलते शिक्षा तो नाममात्र की हो रही उस पर आंदोलन – विरोध में समय ज्यादा खराब हो रहा । कोरोनाकाल में अगर देश तो क्या विश्व भी आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से जूझ रहा ऐसे में ये प्रथा कुप्रथा के रूप में देश की गरिमा को आहत कर रही हैं। कुछ नही इन धर्माविलम्बियों में महिलाओं का शोषण वैसे भी हमेशा पुरुषों द्वारा होता आया है ।

जब कानून की देवी के हाथ मे तराजू के दोनों पलड़े समान है तो अलग अलग कानून से उसे असंतुलित किया जाना क्या सही है? अब वक्त आ गया हैं जब भारत मे एक देश एक कानून अथार्त यूनिफॉर्म सिविल कोड का लागू होना आवश्यक हो गया है हालांकि इसमें अब तक कई तानो बानो को सरकार को सुलझाना पड़ेगा।

जब भारतीय साउदी अरब हो या अमेरिका या जापान जब वहा जाते है तो वहां के नियमो का पालन करने पर ही वहां रह सकते हैं । कुछ ऐसे ही कानून में सख्त बदलाव की अब जरूरत हैं जिसमे किसी भी महिला या बच्चे का हक उसे पूर्ण रूप से मिलेगा जिसमे अगर तलाक भी होगा तो महिला व बच्चे को उसका हक मिलेगा ।जिम्मेदारी हमारी भारत मे समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना अतिआवश्यक हैं ।

इसमें किसी भी धर्म की परम्परा को ठेस भी नही पहुचेगी ओर सभी को हक़ एक समान कानून के तहत सबको प्राप्त होगा चाहे विवाह हो या तलाक हो या वारिस या फिर गोद लेने का कानून सब एक कानून के साथ क्रियान्वित करे जायेगे।इसकी परिणति को समझे और समर्थन करे

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