क्या मूल भाजपाईयों की उपेक्षा से जिले में खिल पायेगा कमल ?

- क्या मूल भाजपाईयों की उपेक्षा से जिले में खिल पायेगा कमल ?
- लोकसभा संयोजक और जिलाध्यक्ष तक ही सिमट कर रह जा रहे हैं सभी कार्यक्रम
- फसली और मौसमी भाजपाईयों में थोक वोट खोज रहे हैं लोकसभा संयोजक एवं प्रत्याशी के प्रबंधक
अम्बेडकरनगर। केन्द्र में तीसरी बार भाजपा सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,गृहमंत्री अमित शाह,रक्षामंत्री राजनाथ सिंह,राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित विचार परिवार लगातार बैठकें और मानिटरिंग कर प्रत्येक सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी को जिताने की जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। जिले में लोकसभा सीट पर 2014 को छोड़ दिया जाए तो कभी भी भारतीय जनता का प्रत्याशी नहीं जीत पाया है।
इसके पीछे बहुत से खिस्से कहानियां समाज में सुनने को मिल रही हैं। 2019 में लोकसभा सीट हारने के बाद से ही भाजपा लगातार इस सीट पर कब्जा जमाने की रणनीति बना रही है। लगभग 2 साल पहले से ही प्रदेश की हारी सीटों पर लोकसभा प्रवास योजना के तहत लोकसभा संयोजक,प्रभारी की नियुक्ति कर बूथ लेबल पर तैयारियां शुरू हो गयी थी लेकिन यह अम्बेडकरनगर का दुर्भाग्य कहा जाय या संयोग जो व्यक्ति निषाद पार्टी के टिकट पर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा था.
उसे लोकसभा का संयोजक बनाकर पूरे सिस्टम को पंगु बनाने का कार्य अंजाने में हुआ या किसी रणनीति के तहत आज भी ज्यादातर बूथों पर बूथ अध्यक्ष सही रूप से कार्य करते नहीं दिख रहे हैं। पन्ना प्रमुख की तो बात ही छोड़ दी जाए जो भी बड़ा नेता अथवा पदाधिकारी प्रदेश या केन्द्र से आता है उसे लोकसभा संयोजक ,प्रभारी और जिलाध्यक्ष के चहेतों तक ही सूचना देकर पूरे कार्यक्रम को निपटा दिया जा रहा है।
शुक्र इस बात की है कि नरेन्द्र मोदी का अतुलनीय व्यक्त्तिव पार्टी की शख्त विचारधारा और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ की भय और गुण्डा मुक्त सरकार पर विश्वास कर जनता बीजेपी को जिताने के लिए बेताब नजर आ रही है लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में जो उत्साह होना चाहिए वह कम होने के कारण कहीं चुनाव परिणाम पर भारी न पड़ जाए। नाम न छापने की शर्त पर एक दर्जन से ज्यादा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि जो भारतीय जनता पार्टी सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारे पर पूरे भारत में कार्य कर रही है.
उसे अम्बेडकरनगर में सब कुछ अपनों तक ही सीमित करके डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और,पं. दीन दयाल उपाध्याय के सपनों को चखना चूर करने का प्रयास जारी है। भाजपा के कर्णधारों ऐसे महानुभावों पर लट्टू बनकर घूम रहे हैं जो अपने परिवार का वोट दिलवाने में भी सक्षम नहीं दिख रहे हैं लेकिन उन्हीं में थोक भाव से वोट खोजते हुए मूल भाजपाईयों की उपेक्षा की जा रही है जब कि होना तो यह चाहिए था कि मूल भाजपाईयों के अनुभव का लाभ लेते हुए फसली और मौसमी भाजपाईयों का उपयोग करना चाहिए था।
रही बात अपने आप को मास्टर माइन्ड बताने वाले जिलाध्यक्ष की तो वे अब तक के कार्यकाल में यह ही नहीं समझ पाये कि कौन भाजपाई है? किससे संगठन का हित होगा? रही बात इनके इर्द-गिर्द घूमकर पार्टी और उनकी महिमा गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है। अब देखना है कि भाजपा का शीर्ष नेंतृत्व यह कब निर्णय कर पाता है। आखिर भाजपा का कमल 55 लोकसभा में किसके नेतृत्व में खिल पायेगा, क्यांकि जनता भाजपा को मतदान कर मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए बेताब है लेकिन अपनी कमियां के कारण कहीं जनपद पीछे न रह जाए?